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अजमेर (Ajmer) स्थित विश्व प्रसिद्घ सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chisti) की दरगाह (Shrine) पर सालाना रुप से मनाए जाने वाले उर्स (Urs) को लेकर जायरीनों में काफी उत्साह है. उर्स में शामिल होने के लिए बड़ी तादाद में जायरीन अजमेर पहुंच रहे हैं. उर्स के दौरान भारत (India) ही नहीं, बल्कि विभिन्न देशों के जायरीन अजमेर पहुंचकर दरगाह में हाजिरी लगाते हैं. यह जायरीन किसी भी धर्म (Religion ) और जाति के हो सकते है.
यह उर्स इस्लामी कैलेंडर (Islamic calendar) के अनुसार रजब माह में पहली से छठी तारीख तक मनाया जाता है. छठी तारीख को ही ख्वाज़ा साहब की पुण्यतिथि (Anniversary) मनायी जाती है. उर्स के दिनों में यहां के महफिलखाने में देश-विदेश से आए मशहूर कव्वाल (Kawwal) अपनी कव्वालियां पेश करते हैं. उर्स के मौके पर लाखों की संख्या में लोग चादर चढ़ाने अज़मेर आते हैं. इस दौरान अज़मेर शरीफ़ की रौनक देखते ही बनती है. दरगाह और उसके आस-पास का पूरा इलाका सुगंध से महक उठता है. यह दरगाह शरीफ़ वास्तव में एक ऐसी जगह है जहां हर आम और खास मनुष्य अपने सारे दुःखों को भूल जाता है और जाते समय अपनी झोलियां खुशियों से भरकर ले जाता है.
हज़रत ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्ला अलैह एक अति प्रसिद्ध सूफी सन्त थे. इन्होंने 12वीं शताब्दी में अजमेर में चिश्ती पंथ की शुरूआत की थी. ख्वाज़ा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ईरान (Iran) में सन् 1141 ई0 में हुआ था. बचपन से ही उनका मन सांसारिक चीजों में नहीं लगता था. वह परिवार से अलग हट कर रूहानी दुनियां से जुड़े रहते थे. वह मानव जगत की सेवा को ही अपने जीवन का एकमात्र धर्म मानते थे. 50 वर्ष की आयु में ही ख्वाज़ा जी भारत आ गए यहां उनका मन अजमेर में ऐसा रमा कि वे फिर यहीं के होकर रह गए और यहीं पर भक्तों की सेवा में लग गए. वह हमेशा खुदा से अपने भक्तों का दुःख-दर्द दूर करके उनके जीवन को खुशियों से भरने की दुआ मांगते थे. ख्वाज़ा साहब ने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई और खुदा की इबादत में गुजार दिया. हर छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सभी लोग अपनी परेशानियां और दुःख लेकर उनके पास आते और अपनी झोलियों में खुशियां और सुकून भर ले जाते थे. ख्वाज़ा साहब ने दुनियां के लोगों का भला करते हुए सन् 1230 ई0 में इस जहां से रूख़्सत ले ली थी.
दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्त्व है. ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह-ख्वाजा साहब या ख्वाजा शरीफ अजमेर आने वाले सभी धर्मावलंबियों के लिये एक पवित्र स्थान है. मक्का के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में इसका दूसरा स्थान है. इसका निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है. इसलिए इसे भारत का मक्का भी कहा जाता है. हर वर्ष सभी धर्मों के लाखों लोग इस दरगाह में मन्नत मांगने आते हैं और मुराद पूरी होने पर अपनी हैसियत के अनुसार चादर चढ़ाते हैं. इनके भक्तों मे गरीब से गरीब और अमीर से अमीर लोग होते हैं. खिलाड़ियों और फिल्मी दुनियां (Film World) की कोई न कोई बड़ी हस्ती अपनी मुराद पूरी करने के लिए इस दरगाह पर दस्तक देती रहती है. कोई भी बड़ा काम करने के लिए हर क्षेत्र से लोग यहां पर आकर चादर भेंट करते हैं.
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