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अगर यह कहा जाए कि देश इस समय बड़ी तेजी से राजनीतिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. जहां एक तरफ सालों से धूल फांक रहे बिल या विधेयक को पास किया जा रहा है, तो दूसरी तरफ सियासत में कुछ ऐसे लोगों ने कदम रख लिया है जो व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर लोगों से समर्थन मांग रहे हैं और कहीं न कहीं पारंपरिक पार्टियों को एक सीख भी दे रहे हैं.
साधारण सा दिखने वाला चेहरा, घिसी मोहरी वाली पैंट, साइज से थोड़ी ढीली शर्ट और पैरों में पड़ी फ्लोटर सैंडिलें, बताती हैं कि यह कोई आम आदमी है लेकिन यही आम आदमी पिछले एक सालों में कब खास हो गया किसी को पता ही नहीं चला. आज यही आम आदमी भारत की राजधानी दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने जा रहा है जिसका नाम है अरविंद केजरीवाल.
अरविंद केजरीवाल की प्रोफाइल
अरविंद केजरीवाल का जन्म 1968 में हरियाणा के हिसार में हुआ. उनके पिता विंदराम केजरीवाल जिंदल स्टील में इंजीनियर थे. अरविंद सरकार के कार्यों में अधिक से अधिक पारदर्शिता के लिए आंदोलन करते रहे हैं.
पूछते हैं वो कि ‘गालिब’ कौन है
अरविंद केजरीवाल ने 1989 में आईआईटी खड़गपुर से मैकेनिकल (यांत्रिक) इंजीनियरिंग में स्नातक (बीटेक) की उपाधि प्राप्त की. अरविंद केजरीवाल ने इसके बाद टाटा स्टील कंपनी में काम किया लेकिन यहां से उन्होंने भ्रष्टाचार और लोगों की निष्क्रियता की वजह से काम छोड़ दिया. टाटा स्टील कंपनी के साथ अपनी नौकरी छोड़ने के बाद, वह मिशनरीज ऑफ चैरिटी और पूर्वी व पूर्वोत्तर भारत में रामकृष्ण मिशन के साथ काम करने लगे.
साल 1992 अरविंद के लिए बहुत ही कामयाब रहा. अरविंद केजरीवाल 1992 में सिविल सर्विसेज क्वालिफाई करके भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में आ गए, और उन्हें दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्त किया गया. उन्होंने कुछ विदेशी कंपनियों के काले कारनामे पकड़े कि किस तरह वे भारतीय आयकर कानून को तोड़ती हैं. उन्हें धमकियां मिलीं और फिर तबादला भी हो गया, जिसके बाद उनका सरकारी सेवा से मोहभंग हो गया. जल्द ही उन्होंने महसूस किया कि सरकार में बहुप्रचलित भ्रष्टाचार का कारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है.
अपनी आधिकारिक स्थिति पर रहते हुए ही उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू कर दी. अरविंद केजरीवाल ने आयकर विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की. प्रारंभ में, अरविंद ने आयकर कार्यालय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जनवरी 2000 में, उन्होंने काम से विश्राम ले लिया और दिल्ली आधारित एक नागरिक आन्दोलन ‘परिवर्तन’ नामक संस्था की स्थापना की, जो एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए काम करती है. इस संस्था के जरिए अरविंद और उनके दोस्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं.
2006 में केजरीवाल ने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से परिवर्तन से जुड़ गए. अब केजरीवाल का नाम किसी के लिए अनजान नहीं है और अन्ना हजारे के साथ उनका नाम अन्ना के मुख्य सलाहकार के तौर पर जुड़ा है. 6 फरवरी, 2007 को, अरविंद को वर्ष 2006 के लिए लोक सेवा में सीएनएन आईबीएन ‘इन्डियन ऑफ़ द ईयर’ के लिए नामित किया गया. 2006 में उन्हें उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए ‘रमन मैग्सेसे अवार्ड’ से सम्मानित किया गया.
आरटीआई पर केजरीवाल के कार्य
आज जिस सूचना के अधिकार को नागरिक का सबसे बड़ा हथियार माना जा रहा है, उसका श्रेय भी अरविंद केजरीवाल को ही जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, अरविंद ने सूचना अधिकार अधिनियम के लिए अभियान शुरू किया और कुछ सालों के संघर्ष के बाद उसमें सफलता भी मिली. दिल्ली में सूचना अधिकार अधिनियम को 2001 में पारित किया गया और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद ने 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया. साल 2006 में केजरीवाल ने लोगों में सूचना का अधिकार के इस्तेमाल करने को लेकर जागरुकता अभियान भी चलाया.
अन्ना की लड़ाई में प्रमुख सिपाही
ऐसा कहा जाता है कि 2011 में हुए जनलोकपाल आंदोलन अरविंद केजरीवाल की ही सोच है. प्रसिद्ध समाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे तो बस केवल मुखौटा थे. पूरे आंदोलन का संचालन केजरीवाल की देखरेख में हुआ. सितंबर 2010 में जब भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल बिल का मसौदा तैयार किया गया था तभी अरविंद ने सोच लिया था कि वो लोगों को एक साथ जुटाएंगे. फिर उन्होंने अन्ना से संपर्क किया जिसके बाद अन्ना चार अप्रैल 2011 को अनशन पर बैठने के लिए तैयार हो गए.
केजरीवाल आंदोलन में शुरू होने से लेकर अंत तक एक प्रमुख सेनापति के रूप में काम करते रहे. यही वजह रही कि आंदोलन के पहले अप्रैल और उसके बाद अगस्त 2011 में भारी सफलता मिली.
आम आदमी पार्टी
अरविंद केजरीवाल ने जनलोकपाल आंदोलन से अगल हटकर आम आदमी पार्टी के नाम से जब एक राजनीतिक पार्टी बनाई उसके बाद किसी ने नहीं सोचा था कि पार्टी बनने के एक साल बाद ‘आप’ को दिल्ली में इतनी बड़ी सफलता मिलेगी.
शुरुआत में अरविंद ने पार्टी बनाने के बाद देश की राष्ट्रीय पार्टियों के असली चेहरे को सामने लाने के किए छापामार शैली अपनाई. अरविंद दिल्ली में बिजली और पानी के बढ़े हुए बिल के खिलाफ अनिश्चितकालीन अनशन पर बैठे. भ्रष्टाचार और महंगाई के खिलाफ आवाज बुलंद की. घर-घर जाकर उन्होंने अपनी पार्टी का प्रचार किया और पार्टी को एक विकल्प के रूप में तैयार किया. परिणाम आपके सामने है. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप को 70 में से 28 सीटें हासिल हुईं.
साहस और पराक्रम का बेजोड़ नमूना
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने जितने साल राजनीति में बिताए हैं लगभग उतनी ही उम्र अरविंद केजरीवाल की है. केजरीवाल के यह घोषणा करते ही कि जहां से शीला दीक्षित चुनाव लड़ेंगी वहीं से वे भी लड़ेंगे, लोग कहने लगे कि वे राजनीतिक आत्महत्या पर आमादा हैं. इसके बावजूद भी वह दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस की कद्दावर नेता शीला दीक्षित से भिड़े. उन्होंने 15 साल से सत्ता पर काबिज शीला दीक्षित को 25 हजार वोटों से पटकनी देकर सबको आश्चर्य में डाल दिया.
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