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भारतीय समाज में रिश्तों का महत्व बहुत ज्यादा होता है. यहां रिश्ते सिर्फ नाम के नहीं जान के होते हैं. भारतीय समाज में परिवार को सबसे ऊपर माना जाता है. इसी परिवार की एक कड़ी होते हैं भाई और बहन. भाई और बहन के पावन रिश्ते के हिंदू समाज में दो अहम पर्व माने गए हैं जिनमें से एक है भैयादूज.
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जिस तरह एक पिता जीवन भर अपने बच्चों का भला सोचता है उसी तरह एक भाई भी जीवनभर अपनी बहन की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध होता है. भैया दूज और रक्षा बंधन जैसे त्यौहार इस बात को हमेशा याद दिलाते हैं. जिस तरह रक्षाबंधन के दिन बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं उसी तरह भैयादूज के दिन बहन भाई के माथे पर तिलक कर धागा बांधती और उसकी लंबी उम्र की दुआ करती हैं. मान्यता है कि इस दिन बहन के घर भोजन करने से भाई को यम (मौत) बाधा नहीं सताती व उसकी कीर्ति बढ़ती है.
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भैयादूज पूजन विधि
बहनों को इस दिन नित्य कृत्य से निवृत्त हो अपने भाई के दीर्घ जीवन, कल्याण एवं उत्कर्ष हेतु तथा स्वयं के सौभाग्य के लिए अक्षत (चावल) कुंकुमादि से अष्टदल कमल बनाकर इस व्रत का संकल्प कर मृत्यु के देवता यमराज की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए. इसके पश्चात यमभगिनी यमुना, चित्रगुप्त और यमदूतों की पूजा करनी चाहिए. तदंतर भाई को तिलक लगाकर भोजन कराना चाहिए. इस विधि के संपन्न होने तक दोनों को व्रती रहना चाहिए.
भैयादूज व्रत कथा
मान्यता है कि भाई-बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक इस त्योहार की नींव परम पिता ब्रह्मा के आदेश पर सूर्य पुत्र राजा यम को प्रसन्न करने के लिए उसकी बहिन यमी (यमुना) ने रखी थी. यह त्यौहार दीपोत्सव का उपसंहार होता है. मान्यता के अनुसार भैया दूज के दिन भाई-बहन यमुना में स्नान कर एक दूसरे की सुख-समृद्धि व दीर्घायु के लिए कामना करते हैं.
प्राचीन कथा के अनुसार भगवान सूर्य नारायण की पत्नी के दो संतानें थीं, जिनके नाम यम और यमी थे. यम ने तो यम लोक बसा कर दंड देने का कार्य संभाल लिया. इसके बाद उसे काल देवता के नाम से भी पुकारा जाने लाग. वहीं यमी अर्थात यमुना कृष्ण-अवतार से पहले धरती पर आईं और मथुरा स्थित विशरांत घाट पर जल के बीच महल बनाकर तपस्या करने लगीं. यमराज अपने राज-पाट में व्यस्त होकर अपनी बहन यमी अर्थात यमुना को भूल गए.
यमुना अपने भाई को बार-बार घर आने का संदेश भेजती थीं, परंतु वह हर बार निराश होतीं. आखिर एक दिन बहन का प्यार भाई को बहन के घर खींच ही लाया. यमराज अपनी बहन यमुना के घर आ पहुंचे. यमुना अपने भाई को दरवाजे पर देखकर बहुत खुश हुईं व भाई के माथे पर तिलक लगाकर आरती उतारी और अपने हाथों से स्वादिष्ट भोजन खिलाया. यमराज अपनी बहन के प्यार से इतने खुश हुए कि उन्होंने बहन से उनसे कुछ मांगने का आग्रह किया. यमुना भाई के आने से इतनी खुश थीं कि उसे किसी चीज की आवश्यकता नहीं थी. फिर भी वह अपने भाई के आग्रह को टाल नहीं सकीं और उन्होंने यम से वरदान मांगा कि वह हर वर्ष इस दिन उनके घर आएंगे और उनका आतिथ्य स्वीकार करेंगे साथ ही आज के दिन को सदा भाई-बहन के पर्व के रूप में मनाया जाए.
बहन के आतिथ्य से प्रसन्न होकर यम ने वरदान दिया कि आज के बाद जो भाई कार्तिक मास की दूज को बहन के घर जाकर भोजनकरेगा वह सुख-समृद्धि को प्राप्त करेगा.
उस दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया थी. तब से ही यह दिन भैया दूज के त्यौहार बन गया. इस दिन हर बहन अपने भाई को घर बुलाकर सामर्थ्य के अनुसार भोजन कराती है व माथे पर तिलक लगाकर उसे धागा बांधकर उसकी सलामती की दुआ करती है. भाई भी अपनी बहन को इच्छा अनुसार भेंट अर्पित करता है व वचन देता है कि वह सदा उसकी रक्षा करेगा.
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