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ऐसा कहा जाता है कि महात्मा बुद्ध के बाद यदि किसी महापुरुष ने धर्म समाज, राजनीति और अर्थ के धरातल पर क्रांति से साक्षात्कार कराने की सत्य-निष्ठा और धर्माचरण से कोशिश की तो वे उपेक्षितों के मुक्तिदाता डॉ. भीमराव अंबेडकर थे. अंबेडकर ने अपना सारा जीवन समाज के उपेक्षित, दलित, शोषित और निर्बल वर्गों को उन्नत करने में लगा दिया था. सूर्य के प्रकाश-सा तेजस्वी चरित्र, चंद्र की चांदनी-सा सम्मोहक व्यवहार, ऋषियों-सा गहन गम्भीर ज्ञान, संतों-सा शांत स्वभाव डॉ. भीमराव अंबेडकर के चरित्र के लक्षण थे.
भीमराव अंबेडकर का जीवन
भारतीय संविधान की रचना में महान योगदान देने वाले डाक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था. इनका परिवार महार जाति से संबंध रखता था जिन्हें लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे. लेकिन भीमराव अंबेडकर जी का बचपन से ही शिक्षा के प्रति रुझान था.
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बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के पश्चात आर्थिक कारणों से वह सेना में भर्ती हो गए. उन्हें लेफ्टिनेंट के पद पर बड़ौदा में तैनाती मिली. नौकरी करते उन्हें मुश्किल से महीना भर ही हुआ था कि एक दिन अचानक पिता की बीमारी का समाचार मिला. वह अपने अधिकारी के पास गए और अवकाश स्वीकृत करने की प्रार्थना की. अधिकारी ने कहा कि एक वर्ष की सेवा से पूर्व किसी दशा में अवकाश स्वीकृत नहीं किया जा सकता. सुनकर भीमराव असमंजस में पड़ गए. भीमराव ने पुन: अनुनय-विनय की, किंतु नियमों के अनुसार अधिकारी उन्हें अवकाश नहीं दे सकता था. विवश होकर भीमराव ने त्यागपत्र लिखकर वर्दी उतार दी. अधिकारी के पास अन्य कोई विकल्प नहीं था. उसने उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया. भीमराव पिता की सेवा के लिए अंतिम समय में उनके पास पहुंच गए. पिता के निधन के पश्चात अपने मित्र की प्रेरणा और महाराजा बड़ौदा की आर्थिक मदद से भीमराव उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए. वहां के कोलंबिया विश्व विद्यालय में प्रवेश लेकर उन्होंने अपनी अध्ययनशीलता का परिचय दिया. उन्होंने अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. अर्थशास्त्र में शोध तथा कानून की पढ़ाई के लिए भीमराव इंग्लैंड गए. हालांकि वहां उन्हें पग-पग पर अपमान का सामना करना पड़ा.
1917 में अंबेडकर जी भारत लौटे और देश सेवा के महायज्ञ में अपनी आहुति डालनी शुरू की. यहां आकर उन्होंने मराठी में ‘मूक नायक‘ नामक पाक्षिक पत्र निकालना शुरू किया साथ ही वह ‘बहिष्कृत भारत’ नामक पाक्षिक तथा ‘जनता’ नामक साप्ताहिक के प्रकाशन तथा संपादन से भी जुड़े. उन्होंने विचारोत्तेजक लेख लिखकर लोगों को जगाने का प्रयास किया.
विदेशी जमीन पर ‘शिखर’ की अग्निपरीक्षा
सामाजिक सुधारक
भीमराव अंबेडकर का जन्म ऐसे समय में हुआ जब समाज में समाज में जाति-पाति, छूत-अछूत, ऊंच-नीच आदि विभिन्न सामाजिक कुरीतियों का प्रभाव था. लेकिन भीमराव अंबेडकर के प्रयास से स्वतंत्र भारत में छुआछूत को अवैध घोषित किया गया. संविधान के मुताबिक कुएं, तालाबों, स्नान घाटों, होटल, सिनेमा आदि पर जाने से लोगों को इस आधार पर रोका नहीं जा सकता कि अछुत हैं. संविधान में लिखित ‘डायरेक्टिव प्रिंसीपुल्स’ में भी इन बातों पर जोर दिया गया.
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