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शास्त्रीय संगीत के पुरोधा पंडित भीमसेन जोशी का निधन

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भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान विद्वान और किराना घराने से संबंधित विश्व विख्यात गायक भीमसेन जोशी का आज लंबे समय की बीमारी के बाद निधन हो गया. भारत रत्न से सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी 89 वर्ष के थे. वृद्धावस्था की परेशानियों के कारण उनके गुर्दे और श्वसन तंत्र ने काम करना बंद कर दिया था, जिसके बाद उन्हें जीवन रक्षक तंत्र पर रखा गया था.


bhimsen joshi 1भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी 1922 को कर्नाटक के गडक शहर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता गुरुराज जोशी एक स्कूल शिक्षक थे. पंडित जोशी को बचपन से ही संगीत का बहुत शौक था. वह किराना घराने के संस्थापक अब्दुल करीम खान से बहुत प्रभावित थे.


गुरु की तलाश में वर्ष 1936 में पंडित भीमसेन जोशी ने जाने-माने खयाल गायक और अब्दुल करीम खान के शिष्य सवाई गंधर्व पंडित रामभन कुंडगोलकर से गडग के नजदीक कुंडगोल में संगीत की विभिन्न विधाओं का एक समर्पित शिष्य की तरह प्रशिक्षण प्राप्त किया. वहां उन्होंने सवाई गंधर्व से कई वर्षों तक खयाल गायकी की बारीकियां भी सीखीं. पंडित भीमसेन जोशी ने अपनी विशिष्ट शैली विकसित करके किराना घराने को समृद्ध किया और दूसरे घरानों की विशिष्टताओं को भी अपने गायन में समाहित किया.


जनवरी, 1946 में पुणे में एक कंसर्ट से उन्हें पहचान मिलनी शुरु हो गई. यह उनके गुरू स्वामी गंधर्व के 60वें जन्मदिन के मौके पर आयोजित एक समारोह था. उनकी ओजस्वी वाणी, सांस पर अद्भुत नियंत्रण और संगीत की गहरी समझ उन्हें दूसरे गायकों से पूरी तरह अलग करती थी.


1943 में वो मुंबई पहुंच गए और एक रेडियो आर्टिस्ट की हैसियत से काम किया. सिर्फ़ 22 साल की उम्र में उनका पहला एलबम लोगों के सामने आया. संगीत की दुनिया में तो उन्होंने एक से एक कीर्तिमान स्थापित किए लेकिन 1985 में बने वीडियो मिले सुर मेरा तु्म्हारा की वजह से तो वो भारत के हर घर में पहचाने जाने लगे.


पंडित जोशी को लोग गीत ‘पिया मिलन की आस’, ‘जो भजे हरि को सदा’ और ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ आदि के लिए याद करते हैं. उन्होंने कई फिल्मों में सदाबहार गानों के लिए अपनी आवाज दी.


1972 में उन्हें ‘पद्म श्री’ से नवाज़ा गया और उसके बाद से पुरस्कार मिलने का सिलसिला जारी रहा. भीमसेन जोशी को पद्मश्री (1972), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1976), पद्म भूषण (1985) और पद्म विभूषण (1999) जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है. और वर्ष 2008 में उन्हें सरकार की तरफ से भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्नपुरस्कार से सम्मानित किया गया.


यह पंडित भीमसेन जोशी जी की मेहनत और कुशलता का ही परिणाम है कि आज भारतीय शास्त्रीय संगीत की विश्व भर में पहचान बनी हुई है. भारत अपने इस रत्न को हमेशा याद रखेगा और उसकी कमी को महसूस करेगा.

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