- 1020 Posts
- 2122 Comments
‘सैर कर दुनिया की गाफिल, जिन्दगानी फिर कहां? जिन्दगी गर कुछ रही, तो नौजवानी फिर कहां’ प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् और हिंदी साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन के ये शब्द बताते हैं कि दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु घुमक्कड़ी है. घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता. दुनिया दुख में हो चाहे सुख में, सभी समय यदि सहारा पाती है तो घुमक्कड़ों की ही ओर से.
Read: जया में ही है महिलाओं के लिए हमदर्दी
राहुल सांकृत्यायन का जीवन
आधुनिक हिंदी साहित्य के महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी का जन्म 9 अप्रैल, 1893 को आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) जिले के पंदहा गांव में हुआ. उनका बचपन का नाम केदारनाथ पांडे था. राहुल सांकृत्यायन के पिता का नाम गोवर्धन पांडे और माता का नाम कुलवन्ती था. भाइयों में ज्येष्ठ राहुल जी थे. बचपन में ही इनकी माता का देहांत हो जाने के कारण इनका पालन-पोषण इनके नाना श्री राम शरण पाठक और नानी ने किया था.
राहुल सांकृत्यायन को प्राथमिक शिक्षा के लिए गांव के ही एक मदरसे में भेजा गया. राहुल जी का विवाह बचपन में कर दिया गया. यह विवाह राहुल जी के जीवन की एक बहुत बड़ी घटना थी जिसकी वजह से राहुल जी ने किशोरावस्था में ही घर छोड़ दिया था. घर से भाग कर ये एक मठ में साधु हो गए. लेकिन अपनी यायावरी स्वभाव के कारण ये वहां भी टिक नहीं पाए. चौदह वर्ष की अवस्था में ये कलकत्ता भाग आए. इनके मन में ज्ञान प्राप्त करने के लिए गहरा असंतोष था इसीलिए वह भारत में कहीं एक जगह नहीं टिकते थे.
राहुल जी का समग्र जीवन ही रचनाधर्मिता की यात्रा थी. जहां भी वे गए वहां की भाषा व बोलियों को सीखा. वह लोगों में इस तरह से घुलमिल गए कि वहां की संस्कृति, समाज व साहित्य अपने दिलों के अंदर बसा लिया. राहुल सांकृत्यायन उस दौर की उपज थे जब ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत भारतीय समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था और राजनीति सभी संक्रमणकालीन दौर से गुजर रहे थे.
राहुल सांकृत्यायन का विश्व भ्रमण
राहुल जी ने अपनी जिज्ञासु व घुमक्कड़ प्रवृत्ति के चलते घर-बार त्याग कर साधु वेषधारी सन्यासी से लेकर वेदान्ती, आर्यसमाजी व किसान नेता एवं बौद्ध भिक्षु से लेकर साम्यवादी चिन्तक तक का लम्बा सफर तय किया. सन् 1930 में श्रीलंका जाकर वे बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गए एवं तभी से वे ‘रामोदर साधु’ से ‘राहुल’ हो गए और सांकृत्य गोत्र के कारण सांकृत्यायन कहलाए. राहुल सांकृत्यायन ने लंका में 19 मास प्रवास किया.
श्रीलंका के अलावा राहुल सांकृत्यायन ने इंग्लैण्ड और यूरोप की यात्रा की. दो बार लद्दाख यात्रा, दो बार तिब्बत यात्रा, जापान, कोरिया, मंचूरिया, सोवियत भूमि (1935 ई.), ईरान में पहली बार, तिब्बत में तीसरी बार 1936 ई. में, सोवियत भूमि में दूसरी बार 1937 ई. में, तिब्बत में चौथी बार 1938 ई. में यात्रा की. उनकी अद्भुत तर्कशक्ति और अनुपम ज्ञान भण्डार को देखकर काशी के पंडितों ने उन्हें महापंडित की उपाधि दी एवं इस प्रकार वे केदारनाथ पाण्डे से महापंडित राहुल सांकृत्यायन हो गए.
दर्शन के ज्ञाता हैं राहुल सांकृत्यायन
36 भाषाओं के ज्ञाता राहुल ने उपन्यास, निबंध, कहानी, आत्मकथा, संस्मरण व जीवनी आदि विधाओं में साहित्य सृजन किया परन्तु अधिकांश साहित्य हिन्दी में ही रचा. राहुल तथ्यान्वेषी व जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे सो उन्होंने हर धर्म के ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया. अपनी दक्षिण भारत यात्रा के दौरान संस्कृत-ग्रन्थों, तिब्बत प्रवास के दौरान पालि-ग्रन्थों, तो लाहौर यात्रा के दौरान अरबी भाषा सीखकर इस्लामी धर्म-ग्रन्थों का अध्ययन किया. इस तरह से एक प्रतिष्ठित बहुभाषाविद होने के नाते विश्व-दर्शन के क्षेत्र में साहित्यिक योगदान दिया.
राहुल सांकृत्यायन की घुमक्कड़ी प्रवृति
राहुल सांकृत्यायन बचपन से ही घुमक्कड़ स्वभाव के रहे. सन् 1923 से उनकी विदेश यात्राओं का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर इसका अंत उनके जीवन के साथ ही हुआ. ज्ञानार्जन के उद्देश्य से प्रेरित राहुल जी ने अपनी यात्रा के अनुभवों को आत्मसात करते हुए ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ भी रचा. युवाओं में घुमक्कड़ की जिज्ञासा को जगाने के लिए वह कुछ इस तरह से कहते थे कि ‘कमर बांध लो भावी घुमक्कड़ों, संसार तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है’. उनके शब्दों में – ‘‘समदर्शिता घुमक्कड़ का एकमात्र दृष्टिकोण है और आत्मीयता उसके हरेक बर्ताव का सार.’’
राहुल जी की प्रकाशित रचना
कहानी संग्रह: सतमी के बच्चे (1939) ‘वोल्गा से गंगा’ (कहानी संग्रह, 1944 ई.) ‘बहुरंगी मधुपुरी’ (कहानी, 1953 ई.) आदि
उपन्यास: ‘सिंह सेनापति’ (1944 ई.), ‘जीने के लिए’ (1940 ई.), ‘मधुर स्वप्न’ (1949 ई.) ‘जय यौधेय’ (1944 ई.) आदि.
जीवनी: ‘कार्ल मार्क्स’ (1954 ई.), ‘स्तालिन’ (1954 ई.), ‘माओत्से तुंग’ (1954 ई.)
Read:
Tags: rahul sankrityayan, rahul sankrityayan in hindi, rahul sankrityayan profile in hindi, rahul sankrityayan profile, Mahapandit Rahul Sankrityayan, Father of Hindi Travel literature, biography on Rahul Sankrityayan, राहुल सांकृत्याय, घुमक्कड़ जिज्ञासा.
Read Comments