- 1020 Posts
- 2122 Comments
हिंदुस्तान की भूमि पर ऐसे कई क्रांतिकारियों और आंदोलनकारियों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने बल पर अंग्रेजी हुकूमत को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया. ऐसे ही एक वीर थे बिरसा मुंडा. धर्मान्तरण, शोषण और अन्याय के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति का संचालन करने वाले महान सेनानायक बिरसा मुंडा की आज जयंती है. बिरसा मुंडा की गणना उन महान क्रांतिकारियों में की जाती है जिन्होंने आदिवासियों को संगठित करके अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष किया.
बिरसा मुंडा का जीवन
बिरसा मुंडा का जन्म 1875 में लिहातु, जो रांची में पड़ता है, में हुआ था. यह कभी बिहार का हिस्सा हुआ करता था पर अब यह क्षेत्र झारखंड में आ गया है. साल्गा गांव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा इंग्लिश मिडिल स्कूल में पढ़ने आए. सुगना मुंडा और करमी हातू के पुत्र बिरसा मुंडा के मन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बचपन से ही विद्रोह था.
सचिन को नहीं ‘क्रिकेट’ को अंतिम विदाई !
अपनी जाति की दुर्दशा, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक अस्मिता को खतरे में देख युवावस्था में बिरसा मुंडा के मन में क्रांति की भावना जाग उठी थी. उन्होंने मन ही मन यह संकल्प लिया कि मुंडाओं का शासन वापस लाएंगे तथा अपने लोगों में जागृति पैदा करेंगे. बिरसा ने गांव-गांव घूमकर लोगों को अपना संकल्प बताया. उन्होंने ‘अबुआ: दिशोम रे अबुआ: राज’ (हमार देश में हमार शासन) का बिगुल फूंका. बिरसा का संघर्ष देखकर जन-सामान्य का उनमें में काफी दृढ़ विश्वास हो चुका था, इससे बिरसा को अपने प्रभाव में वृद्धि करने में मदद मिली. लोग उनकी बातें सुनने के लिए बड़ी संख्या में एकत्र होने लगे. बिरसा ने लोगों को हिंसा और मादक पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी. उनकी बातों का प्रभाव यह पड़ा कि ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी.
चाचा नेहरू के ‘बाल’ बने श्रमिक
विरसा मुंडा भारतीय संस्कृति के पक्षधर थे. उन्होंने भारतीय संस्कृति की रक्षा करने के लिए धर्मान्तरण करने वाले ईसाई मिशनरियों का सदा विरोध किया. ईसाई धर्म स्वीकार करनेवाले हिन्दुओं को उन्होंने अपनी सभ्यता एवं संस्कृति की जानकारी दी और अंग्रेजों के षडयन्त्र के प्रति सचेत किया. इसके लिए उन्होंने हिंदु धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार करना शुरू कर दिया.
आज भी झारखण्ड, उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल के आदिवासी बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजते हैं. अपने 25 वर्ष के अल्प जीवनकाल में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ जाकर आदिवासियों में स्वदेशी तथा भारतीय संस्कृति के प्रति जो प्रेरणा जगाई वह अतुलनीय है.
Read More:
Read Comments