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स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की याद में किसान दिवस

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Chaudhary Charan Singh Profile in Hindi

किसान हर देश की प्रगति में विशेष सहायक होते हैं. एक किसान ही है जिसके बल पर देश अपने खाद्यान्नों की खुशहाली को समृद्ध कर सकता है. देश मे राष्ट्रपिता गांधी जी ने भी किसानों को ही देश का सरताज माना था. लेकिन देश की आजादी के बाद ऐसे नेता कम ही देखने में आए जिन्होंने किसानों के विकास के लिए निष्पक्ष रूप में काम किया. ऐसे नेताओं में सबसे अग़्रणी थे देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह.


CHAUDHARY CHARAN SINGHपूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह को किसानों के अभूतपूर्व विकास के लिए याद किया जाता है. चौधरी चरण सिंह की नीति किसानों व गरीबों को ऊपर उठाने की थी. उन्होंने हमेशा यह साबित करने की कोशिश की कि बगैर किसानों को खुशहाल किए देश व प्रदेश का विकास नहीं हो सकता. चौधरी चरण सिंह ने  किसानों की खुशहाली के लिए खेती पर बल दिया था. किसानों को उपज का उचित दाम मिल सके इसके लिए भी वह गंभीर थे. उनका कहना था कि भारत का संपूर्ण विकास तभी होगा जब किसान, मजदूर, गरीब सभी खुशहाल होंगे.


चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले में हुआ था. चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्यों को विरासत में चरण सिंह को सौंपा था.


चौधरी चरण सिंह को परिवार में शैक्षणिक वातावरण प्राप्त हुआ था. स्वयं इनका भी शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान रहा. चौधरी चरण सिंह की प्राथमिक शिक्षा नूरपुर ग्राम में ही पूर्ण हुई, जबकि मैट्रिकुलेशन के लिए इन्हें मेरठ के सरकारी उच्च विद्यालय में भेज दिया गया. 1923 में 21 वर्ष की आयु में इन्होंने विज्ञान विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली. दो वर्ष के पश्चात् 1925 में चौधरी चरण सिंह ने कला स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की. फिर विधि की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने गाज़ियाबाद में वक़ालत करना आरम्भ कर दिया.


1929 में पूर्ण स्वराज्य उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया.1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत नमक कानून तोडने का आह्वान किया गया.गांधी जी ने ‘‘डांडी मार्च‘‘ किया. आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया. परिणामस्वरूप चरण सिंह को 6 माह की सजा हुई. जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतन्त्रता संग्राम में समर्पित कर दिया. 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफतार हुए फिर अक्टूबर1941 में मुक्त किये गये.


आजादी के बाद चौधरी चरण सिंह पूर्णत: किसानों के लिए लड़ने लगे. चरण सिंह की मेहनत के कारण ही ‘‘जमींदारी उन्मूलन विधेयक” साल 1952 में पारित हो सका. इस एक विधेयक ने सदियों से खेतों में खून पसीना बहाने वाले किसानों को जीने का मौका दिया.


दृढ़ इच्छा शक्ति के धनी चौधरीचरण सिंह ने प्रदेश के 27000 पटवारियों के त्यागपत्र को स्वीकार कर ‘लेखपाल‘ पद का सृजन कर नई भर्ती करके किसानों को पटवारी आतंक से मुक्ति तो दिलाई ही, प्रशासनिक धाक भी जमाई. लेखपाल भर्ती में 18 प्रतिशत स्थान हरिजनों के लिए चौधरी चरण सिंह ने आरक्षित किया था.


चौधरी चरण सिंह स्वतंत्र भारत के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में 28 जुलाई, 1979 को पद पर आसीन हुए थे. मोरारजी देसाई की सरकार के पतन में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी. लेकिन वह अधिक समय तक इस पद पर बने नहीं रह सके.


1977 में चुनाव के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो किंग मेकर जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृह मंत्री बनाया गया. इसी के बाद मोरारजी देसाई और चरण सिंह के मतभेद खुलकर सामने आए. मोरारजी देसाई ने जब चौधरी चरण सिंह को भाव देना बंद कर दिया तो उन्होंने बग़ावत कर दी. इस प्रकार 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए. यह तो स्पष्ट है कि यदि इंदिरा गांधी का समर्थन चौधरी चरण सिंह को न प्राप्त होता तो वह किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे. पर कुछ समय बाद ही इंदिरा गांधी ने भी अपना समर्थन वापस ले लिया.


इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त, 1979 को बिना बताए समर्थन वापस लिए जाने की घोषणा कर दी. अब यह प्रश्न नहीं था कि चौधरी साहब किसी भी प्रकार से विश्वास मत प्राप्त कर लेंगे. वह जानते थे कि विश्वास मत प्राप्त करना असम्भव था. यहाँ पर यह बताना प्रासंगिक होगा कि इंदिरा गांधी ने समर्थन के लिए शर्त लगाई थी. उसके अनुसार जनता पार्टी सरकार ने इंदिरा गांधी के विरुद्ध जो मुक़दमें क़ायम किए हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए. लेकिन चौधरी साहब इसके लिए तैयार नहीं हुए थे.


इस प्रकार की गलत सौदेबाज़ी करना चरण सिंह को क़बूल नहीं था. इसीलिए उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी गंवाना बर्दाश्त कर लिया. वह जानते थे कि उन्होंने जिस ईमानदार नेता और सिद्धान्तवादी व्यक्ति की छवि बना रखी है, वह सदैव के लिए खण्डित हो जाएगी. अत: संसद का एक बार भी सामना किए बिना चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद का त्याग कर दिया.


उत्तर प्रदेश के किसान चरण सिंह को अपना मसीहा मानने लगे थे. उन्होंने समस्त उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए कृषकों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया. उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में कृषि मुख्य व्यवसाय था. कृषकों में सम्मान होने के कारण इन्हें किसी भी चुनाव में हार का मुख नहीं देखना पड़ा.


चौधरी चरण सिंह राजनीति में स्वच्छ छवि रखने वाले इंसान थे. वह अपने समकालीन लोगों के समान गांधीवादी विचारधारा में यक़ीन रखते थे. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी टोपी को कई बड़े नेताओं ने त्याग दिया था लेकिन चौधरी चरण सिंह इसे जीवन पर्यन्त धारण किए रहे. लोगों का मानना था कि चरण सिंह से राजनीतिक ग़लतियां हो सकती हैं लेकिन चारित्रिक रूप से उन्होंने कभी कोई ग़लती नहीं की. उनमें देश के प्रति वफ़ादारी का भाव था. वह कृषकों के सच्चे शुभचिन्तक थे. इतिहास में इनका नाम प्रधानमंत्री से ज़्यादा एक किसान नेता के रूप में जाना जाएगा.


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