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Dadabhai Naoroji: गुलामी की बेड़ियों को शिथिल करने वाले पहले राजनीतिज्ञ

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1857 का विद्रोह देश के इतिहास में पहला स्वतंत्रता संग्राम था. यहीं से आजादी की नींव रखी गई थी. यही वह आंदोलन था जिसके बाद लोगों को एहसास हुआ कि वह पराधीनता में जीवन व्यतीत कर रहे हैं. उन्हीं लोगों में से एक थे दादाभाई नौरोजी जिन्हें भारत में राजनीति का जन्मदाता कहा जाता है.


दादाभाई नौरोजी को 1855 ई. में अध्यापन कार्य छोड़कर व्यापारिक उद्देश्य से इंग्लैंड जाना पड़ा. इंग्लैंड में पहुंचते ही उन्हें आभास हुआ कि स्वतंत्रता क्या चीज होती है. वहां उन्हें भारत की गरीबी और पराधीनता का अनुभव हुआ. तभी से वह अपने देश की गरीबी दूर करने और गुलामी की बेड़ियों को शिथिल करने के प्रयत्न में लग गए.


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दादाभाई उन पहले व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने लोगों को यह समझाया कि अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की वजह से ही फल फूल रही है. लेकिन इसकी वजह से भारत को काफी नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. दादाभाई नौरोजी ने तथ्यों और आंकड़ों से सिद्ध किया कि अंग्रेजी राज में भारत का बहुत आर्थिक नुकसान हो रहा है. भारत दिन-पर-दिन निर्धन होता जा रहा है. उनकी बातों से लोगों को यह विश्वास हो गया कि भारत को अब स्वतंत्र हो जाना चाहिए. वे पहले भारतीय थे, जिन्होंने कहा कि भारत भारतवासियों का है. उनकी बातों से तिलक, गोखले और गांधीजी जैसे नेता भी प्रभावित हुए.


dadabhai naorojiद ग्रैंड ओल्डमैन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर दादा भाई नौरोजी ने न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी जाकर भारत के विरोध को दर्ज कराया. दादाभाई ब्रिटिश संसद में चुने जाने वाले पहले एशियाई थे. संसद सदस्य रहते हुए उन्होंने ब्रिटेन में भारत के विरोध को प्रस्तुत किया. उन्होंने भारत की लूट के संबंध में ब्रिटिश संसद में थ्योरी पेश की. इस ड्रेन थ्योरी में भारत से लूटे हुए धन को ब्रिटेन ले जाने का उल्लेख था. वह भारत की गरीबी और नौकरशाही के अत्याचार का परिचय इंग्लैंड की जनता को कराना चाहते थे. इसका उन्होंने भरपूर प्रयत्न किया. दादाभाई ने इंग्लैंड में स्थान-स्थान पर भाषण दिए, पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा भारतीय स्वराज्य के पक्ष में प्रचार किया.


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उनका भारत के प्रति प्रेम इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह जब ब्रिटिश संसद के लिए सदस्य चुने गए तो उन्होंने संसद में कहा, ‘मैं धर्म और जाति से परे एक भारतीय हूं’. दादाभाई अपनी वाक कला से लोगों को अचंभित करते थे. वह कहा करते थे कि जब एक शब्द से काम चल जाए तो दो शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए.


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापकों में से एक दादाभाई नौरोजी का जन्म 4 सितंबर, 1825 को ब्रिटिश राज अधीन तत्कालीन बंबई में हुआ था. दादाभाई पारसी परिवार से थे. मात्र ग्यारह वर्ष की अवस्था में दादाभाई नौरोजी का विवाह गुलबाई से हो गया था. दादाभाई नौरोजी ने स्कॉटलैंड यूनिवर्सिटी से संबद्ध एल्फिंसटन कॉलेज से गणित और प्राकृतिक विज्ञान की पढ़ाई पूरी की. 1850 में जब दादाभाई नौरोजी मात्र 25 वर्ष के थे तब उन्हें इसी संस्थान में अध्यापक के तौर पर नियुक्त किया गया. वह पहले ऐसे भारतीय बने जिन्हें ब्रिटेन में महत्वपूर्ण अकादमिक पद प्रदान किया गया. दादाभाई नौरोजी कपास के व्यवसायी और प्रतिष्ठित निर्यातक भी थे.


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कांग्रेस के ‘वृद्धपितामह’ कहे जाने वाले दादाभाई ने पूरा जीवन अपने देश के उत्थान के लिये प्रयत्न करने में लगा दिया. देश के नागरिकों को जागरुक करने के लिए उन्होंने कई किताबें भी लिखीं. उनके महत्व को इसी तरह से समझा जा सकता है कि जब उनका निधन हुआ तब लोगों ने उनके काम को याद करके अंग्रेजों के खिलाफ अपनी लड़ाई को जारी रखा.

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