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भारतीय राजनीति में नेहरू-गांधी एक ऐसा परिवार है जिसने प्रेम प्रसंग को राजनीति में जगह दी. मिसाल के तौर पर जवाहरलाल नेहरू और एडविना माउंटबेटन के प्रेम प्रसंग. नेहरू के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी का प्रेम प्रसंग भी काफी मशहूर राहा.
कहते हैं कि फिरोज और इंदिरा की मुलाकात मार्च, 1930 में हुई थी जब आजादी की लड़ाई के क्रम में एक कॉलेज के सामने धरना दे रही कमला नेहरू बेहोश हो गई थीं और फिरोज गांधी ने उनकी देखभाल की थी. मिलने का यह सिलसिला काफी आगे तक गया. कहा जाता है फिरोज कमला नेहरू की हालत जानने के लिए उनके घर जाया करते थे इसी बहाने उनकी मुलाकात इंदिरा गांधी से भी हो जाती थी. 1936 को जब कमला नेहरू का देहांत हुआ तब भी फिरोज गांधी उनके पास थे. फिरोज गांधी के भीतर सेवा और संवेदना का आत्मीय तत्व था शायद यही वजह है कि युवा इंदिरा उनकी ओर आकृष्ट हुईं.
राजनीति के मैदान में ‘खिलाड़ी’
इलाहाबाद में रहने के दौरान फिरोज गांधी के रिश्ते नेहरू परिवार से बेहद मधुर हो गए थे. वे अक्सर आनंद भवन आते जाते थे. यहीं से उनकी निकटता इंदिरा गांधी की तरफ बढ़ने लगी. 1942 में दोनों ने शादी कर ली.
इंदिरा गांधी ने फिरोज गांधी से प्रेम-विवाह पिता नेहरु की मर्जी के विरुद्ध जाकर किया था लेकिन महात्मा गांधी के हस्तक्षेप बाद पिता नेहरू ने इस शादी को अपनी स्वीकृति दे दी. तब उसमय महात्मा गांधी ने अपना उपनाम फिरोज को दिया. इसके तत्काल बाद भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ जिसमें इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी ने एक साथ जेल भी काटी. हालांकि बाद के दौर में दोनों के बीच यह रिश्ता जटिल हो गया. फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी दोनों अपनी निजी जिंदगी में संतुलन नहीं बैठा पाए. दो दशक से परवान चढ़ा प्रेम धीरे-धीरे छिन्न-भिन्न हो गया. 1949 में इंदिरा गांधी अपने बच्चों को लेकर पिता का घर संभालने चली आईं जबकि फिरोज लखनऊ में बने रहे. यहीं से फिरोज गांधी ने नेहरू सरकार के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और कई बड़े घोटालों को उजागर किया.
बाद के वर्षों में फिरोज गांधी की तबीयत खराब होने लगी. उस दौरान उनकी देखभाल के लिए इंदिरा गांधी मौजूद थीं. 8 सितंबर, 1960 को दिल के दौरे के कारण फिरोज चल बसे.
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