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भारतीय सिनेमा में अकसर देखा गया है कि फिल्मों में नायिकाओं से ज्यादा नायक को तवज्जो दी जाती रही है. लेकिन कुछ नायिकाएं ऐसी हैं जिन्होंने पुरुषवादी पटकथा से अलग अपनी एक पहचान बनाई है. वह चाहे 1957 में आई ‘मदर इंडिया’ की नरगिस हों, ‘मुग़ल-ए-आजम’ की मधुबाला हों या ‘अर्थ’ की शबाना आजमी हों. फिल्म ‘अर्थ’ बॉलीवुड के इतिहास में अपनी तरह की इकलौती फिल्म है क्योंकि इस फिल्म में नायिका को पुरुष के कन्धे की जरूरत नहीं समझी गई. अभिनेत्री शबाना आजमी (Shabana Azmi) ने महिलाओं पर केंद्रित कई फिल्मों में काम किया है.
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शबाना ने ग्लैमरस अभिनेत्रियों की भीड़ में स्वयं को अलग साबित किया. स्मिता पाटिल और शबाना आजमी उस दौर की समानांतर फिल्मों की जरूरत बन गईं. अर्थ, निशांत, अंकुर, स्पर्श, मंडी, मासूम, पेस्टॅन जी में शबाना आजमी (Shabana Azmi) ने अपने अभिनय की अमिट छाप दर्शकों पर छोड़ी. इन गंभीर फिल्मों के साथ-साथ शबाना ने मुख्य धारा की कमर्शियल फिल्मों में भी अपनी उपस्थिति बनाए रखी. अमर अकबर एंथोनी, परवरिश, मैं आजाद हूं जैसी व्यावसायिक फिल्मों में अपने अभिनय के रंग भरकर शबाना आजमी ने सुधी दर्शकों के साथ-साथ आम दर्शकों के बीच भी अपनी पहुंच बनाए रखी.
वह आज भी महिला किरदारों को मजबूती देने के पक्षधर हैं. उनका मानना है कि 60 के दशक में ‘मैं चुप रहूंगी’ जैसी फिल्में बनती थीं. जिनमें फिल्म की जो मुख्य किरदार थी वो अपने पर हुए हर जुल्म और अत्याचार के बाद भी चुप रहती है. हालांकि बदलते वक्त के साथ महिला पात्र भारतीय फिल्मों में मजबूत हुई हैं, लेकिन अभी इस दिशा में और प्रयास किए जाने की जरूरत है.
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शबाना आजमी को मिले पुरस्कार
शबाना आजमी (Shabana Azmi) को पांच बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है जो एक रिकॉर्ड है. उन्हें पहली बार 1975 में फिल्म अंकुर, फिर 1983 में अर्थ, 1984 में खंडहर, 1985 में पार और 1999 में फिल्म “गॉडमदर” के लिए यह सम्मान दिया गया था.
शबाना आजमी को चार बार फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया है. उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया है. 1978 में स्वामी, 1983 में अर्थ, 1985 में भावना और 1999 में फिल्म “गॉडमदर” के लिए यह पुरस्कार दिया गया था. साल 1988 में शबाना आजमी को पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है.
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film Arth Shabana Azmi
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