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भारत के इतिहास में कुछ तारीखें ऐसी हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता. 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन पंजाब में अमृतसर के जलियांवाला बाग में ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर द्वारा किए गए निहत्थे मासूमों की हत्या भारतीय इतिहास का काला दिन है.
जरनल डायर के शब्द……………….
देर तक गोलीबारी कराने का कारण: हंटर समिति के सामने रखे बयानों के आधार पर जरनल डायर ने इतनी देर तक गोलीबारी कराने का कारण इस प्रकार बताया….“जबरदस्त खतरे की सम्भावना होने पर ही वीरता की पूरी भावना जाग्रत हो सकती है. मैंने मामले पर हर दृष्टि से विचार किया था और कर्तव्य तथा सैनिकवृत्ति दोनों ने मुझे गोलीबारी के लिए प्रेरित किया और इस विषय में मेरे मन में द्वंद नहीं था. मैं यह बराबर यह सोच रहा था कि कल यह भीड़ ‘डंडा फौज’ (लाहौर में उन दिनों दंगाइयों ने अपना यही नाम रखा था) का रूप ले लेगी. इसलिए मैंने गोली चलवाई और भीड़ के तितर-बितर हो जाने तक उसे जारी रखा. मैं समझता हूं कि आवश्यक नैतिक और व्यापक प्रभाव उत्पन करने के लिए और अपने कार्य का औचित्य सिद्ध करने के लिए ऐसा प्रभाव उत्पन्न करना मेरा कर्त्तव्य था. कम से कम जितनी गोलीबारी आवश्यक थी उतनी ही की गई. यदि कोई दूसरी फौज होती तो हताहतों की संख्या और भी होती. उस समय प्रश्न केवल भीड़ के तितर बितर करने का नहीं था, बल्कि सैनिक दृष्टि से न केवल उन लोगों पर, जो मौजूद थे वरन मुख्यतया समस्त पंजाब में पर्याप्त नैतिक असर पैदा करने का था. जरूरत से ज्यादा सख्ती का कोई सवाल ही नहीं उठता.”
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मरते समय जरनल डायर के शब्द………….
कहा जाता है कि इस जघन्य नर-संहार के बाद जनरल डायर एक भी रात चैन से नहीं सो पाया. उसका स्वास्थ्य लगातार खराब होता गया उसे लकवा मार गया जिससे वह मरते दम तक नहीं उबर पाया. 23 जुलाई, 1927 को ब्रिस्टल में उसकी मृत्यु हो गई. अपने जीवन के अंतिम दिनों में उसके शब्द इस प्रकार थे – कुछ कहते हैं कि मैने अच्छा किया तो कुछ लोग कहते हैं कि मैंने बुरा किया, लेकिन मैं मरना चाहता हूं ताकि मैं अपने ईश्वर से जाकर पूछ सकूं कि मैंने अच्छा किया या बुरा?
इस भयंकर नरसंहार के बाद जब जनरल डायर लंदन पहुंचा तो वहां नायक के रूप में उसका गर्मजोशी से स्वागत किया गया. उसे भारत का मुक्तिदाता कहा जाने लगा. पोस्ट अखबार ने जनरल डायर के लिए फंड की अपील जारी की जो उसके सम्मान में दिया गया. अपने घृणित कृत्य के लिए जनरल डायर को कई हजार पाउंड पुरस्कार के तौर पर भी दिए गए.
वैसे लोगों में आम धारणा है कि ऊधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया था, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि भारत के इस सपूत ने डायर को नहीं, बल्कि माइकल डायर को मारा था जो पंजाब प्रांत का गवर्नर था. वैसे माइकल डायर के आदेश पर ही जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं. ऊधम सिंह इस घटना के लिए माइकल डायर को जिम्मेदार मानते थे.
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उधमसिंह अपने काम को अंजाम देने के उद्देश्य से 1934 में लंदन पहुंचे. वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा सही समय का इंतजार करने लगे. 13 मार्च, 1940 को डायर लंदन के काक्सटन हाल में एक सभा में शामिल होने के लिए गया. उधमसिंह ने एक मोटी किताब के पन्नों को रिवाल्वर के आकार में काटा और उसमें रिवाल्वर छिपाकर हाल के भीतर घुसने में कामयाब हो गए. सभा के अंत में मोर्चा संभालकर उन्होंने डायर को निशाना बनाकर गोलियां दागनी शुरू कर दीं.
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