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यूं ही नहीं बना बिरला ‘एंपायर’

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बिरला उन कारोबारियों में से थे जो स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी की गतिविधियों के लिए धन उपलब्ध कराने के लिए हर समय तैयार रहते थे.


दीपक भारद्वाज मर्डर मिस्ट्री


Ghanshyam Das Birla Life

घनश्याम दास बिरला का जन्म 10 अप्रैल, 1894 को पिलानी गांव राजस्थान में हुआ. उस समय यह राज्य राजपूताना के नाम से प्रचलित था. इनके दादा शिव नारायण बिरला ने गिरवी रखने के पारंपरिक व्यवसाय से अलग हटकर अन्य व्यापारिक क्षेत्रों में प्रसार किया. आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने पिता बी. डी. बिरला की प्रेरणा व सहयोग से घनश्याम दास बिरला ने पिलानी को छोड़ कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में कॉटन व्यापार जगत में प्रवेश किया. कलकत्ता से वापस आने के बाद उन्होंने पिलानी में एक हवेली बनाई जो अभी भी बिरला हवेली के नाम से मशहूर है. घनश्याम दास बिरला (Ghanshyam Das Birla) के पिता बलदेवदास बिरला नवलगढ़ बिरला परिवार से गोद लिए हुए दत्तक पुत्र थे.


किशोरावस्था में ही घनश्याम दास बिरला ने अपने ससुर एम. सोमानी की मदद से व्यवसाय का काम शुरू किया. 1919 में घनश्याम दास बिरला (Ghanshyam Das Birla) ने 50 लाख रुपए के निवेश के साथ ‘बिरला ब्रदर्स लिमिटेड’ की स्थापना की. इसी साल उन्होंने ग्वालियर में कपड़ा मिल की नींव रखी. कुछ ही समय बाद जी. डी. बिरला ने दिल्ली की एक पुरानी कपड़ा मिल भी खरीद ली. इस तरह से उद्योगपति के रूप में यह घनश्याम दास बिरला का पहला अनुभव था. इसके बाद 1923 से 1924 में उन्होंने केसोराम कॉटन मिल्स खरीद ली. सन 1926 में वह सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के लिए चुने गए.


Birla Empire

सन 1940 में वाहन के क्षेत्र में घनश्याम दास बिरला ने कदम रखा जिसके बाद उन्होंने ‘हिंदुस्तान मोटर्स’ स्थापित किया जो आज भारत की बड़ी कार निर्माण कंपनी बन चुकी है. आजादी के बाद घनश्याम दास ने चाय और टेक्स्टाइल के क्षेत्र मे भारी निवेश किया. उन्होंने बिरला समूह को और अधिक विस्तार देने के लिए सीमेंट, केमिकल्स और स्टील के क्षेत्र में भी हाथ आजमाया और कामयाब भी रहे. यह घनश्याम दास बिरला (Ghanshyam Das Birla) के ही प्रयास थे कि आज बिरला की यही कंपनियां देश की अग्रणी कंपनियों में से एक हैं.


Ghanshyam Das Birla with Mahatma Gandhi

घनश्याम दास बिरला (Ghanshyam Das Birla) महात्मा गांधी के अटूट समर्थक थे. वह खुद तो स्वतंत्रता आंदोलन के लिए धन देते ही थे साथ ही दूसरे पूंजीपतियों से राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन करने एवं कांग्रेस के हाथ मजबूत करने की अपील भी करते थे.


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