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भारतीय आयुर्वेद की प्रणाली बेहद प्राचीन है. इसका प्रमाण हमें धर्मग्रंथों में भी मिलता है. भारतीय प्राचीन चिकित्सा प्रणाली के कुछ बेहद कम पुख्ता सबूतों में से एक है भगवान धनवंतरि का उदय और उनकी पूजा. भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है.
भगवान धनवंतरि
भगवान धनवंतरि को देवताओं का चिकित्सक भी कहा जाता है. इस दिन ही धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस का भी पर्व मनाया जाता है. उन्हें शल्य चिकित्सा का प्रवर्तक माना जाता है तथा सुश्रुत संहिता तथा चरक संहिता में इनको इस विधा में निपुण बताया गया है.
भगवान धनवंतरि का स्वरूप
भगवान धनवंतरि समुद्र मंथन से प्रकट हुए, हिंदू शास्त्रों में भगवान धनवंतरि की परिकल्पना चार भुजाओं वाले तेजवान व्यक्तित्व के रूप में की गई है. इनके एक हाथ में अमृत कलश, एक हाथ में शंख व एक हाथ में आयुर्वेद तंत्र लिपिबद्ध रूप में है. चौथे हाथ में वनस्पतियां भी दिखाई देती हैं. धनवंतरि मानव को रोगों से बचाने और उसे स्वस्थ रखने के लिए चिकित्सा शास्त्र आयुर्वेद के ज्ञान को भी अपने साथ लाए थे.
आयुर्वेद ने स्वस्थ शरीर को ही धन माना है. इसीलिए स्वास्थ्य पहले है धन-दौलत बाद में. अतएव धनतेरस के मौके पर स्वास्थ्य की रक्षा के साथ ही सुख-सुविधाएं प्रदान करने वाली वस्तुओं की खरीददारी का भी प्रचलन है. क्योंकि कहा गया है कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया.
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