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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को राजनीति पाठ पढ़ाने वाले गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) का जन्म 9 मई, 1886 को तत्कालीन बंबई प्रेसिडेंसी के अंतर्गत महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले में हुआ था. एक गरीब ब्राह्मण परिवार से संबंधित होने के बावजूद गोपाल कृष्ण गोखले की शिक्षा-दीक्षा अंग्रेजी भाषा में हुई ताकि आगे चलकर वह ब्रिटिश राज में एक क्लर्क के पद को प्राप्त कर सकें. वर्ष 1884 में एल्फिंस्टन कॉलेज से स्नातक की उपाधि ग्रहण करने के साथ ही गोपाल कृष्ण गोखले का नाम उस भारतीय पीढ़ी में शुमार हो गया जिसने पहली बार विश्वविद्यालय की शिक्षा प्राप्त की थी.
पतन का रास्ता भाजपा ने खुद तैयार किया
सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी
वर्ष 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले अपनी राजनैतिक लोकप्रियता के चरम पर थे. उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद उन्होंने भारतीय शिक्षा को विस्तार देने के लिए सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की. गोखले का मानना था कि स्वतंत्र और आत्म-निर्भर बनने के लिए शिक्षा और जिम्मेदारियों का बोध बहुत जरूरी है. उनके अनुसार मौजूदा संस्थान और भारतीय नागरिक सेवा पर्याप्त नहीं थी. इस सोसाइटी का उद्देश्य युवाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ उनके भीतर शिक्षा के प्रति रुझान भी विकसित करना था.
संवैधानिक सुधार
opal Krishna Gokhale) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिष्ठित चेहरे थे. उन्होंने लगातार ब्रिटिश सरकार के नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने संवैधानिक सुधारों के लिए निरंतर जोर दिया. 1909 के ‘मिंटो मार्ले सुधारों’ में बहुत कुछ श्रेय गोखले के प्रत्यनों का था.
बंग-भंग का नेतृत्व
(Gopal Krishna Gokhale) ने इसकी अगुवाई की.
जातिवाद तथा छुआछूत के खिलाफ आंदोलन
(Gopal Krishna Gokhale) ने जातिवाद तथा छुआछूत के खिलाफ भी आंदोलन चलाया. सन् 1912 में गांधी जी के आमंत्रण पर वह खुद भी दक्षिण अफ्रीका गए और वहां जारी रंगभेद की निन्दा की. जन नेता कहे जाने वाले गोखले नरमपंथी सुधारवादी थे. उन्होंने आज़ादी की लड़ाई के साथ ही देश में व्याप्त छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ आंदोलन चलाया. वह जीवनभर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम करते रहे. गोखले की प्रेरणा से ही गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के ख़िलाफ आंदोलन चलाया.
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गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा गांधी.
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