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Profile of Govinda
आज हास्य जिंदगी की मुख्य जरूरत बन चुकी है. दिन भर की दौड़ती भागती जिंदगी में चैन के दो पल तलाशने के लिए लोग सिनेमा और टीवी का सहारा लेते हैं. लेकिन आजकल टीवी पर हास्य के स्थान पर अश्लीलता के अलावा कुछ नहीं मिलता. हिन्दी सिनेमा में भी अब हास्य का स्तर बहुत गिर चुका है. सिनेमा में हास्य तब अच्छा लगता है जब वह सही स्थान और सही वक्त पर किया जाए पर अब तो हास्य और चुटकुले ठूंसने की जैसे जंग चली हुई है. लेकिन हिन्दी सिनेमा में एक दौर “चीची” यानि गोविंदा (Govinda) का भी था जिन्होंने अपनी फिल्मों से दर्शकों को हंसने के बहुत से मौके दिए.
Govinda) जब हिन्दी सिनेमा में आए उस समय का दौर एक्शन और रोमांस का था. उस समय कॉमेडी के क्षेत्र में कोई ऐसा हीरो नहीं था जो फिल्म में लीड रोल निभा सके. गोविंदा के आगमन ने हिन्दी फिल्मों में हास्य-रस से भरपूर फिल्मों के दौर को फिर से अस्तित्व में ला दिया है ये कहना गलत नहीं होगा. गोविंदा ना सिर्फ कॉमेडी में बेहतरीन थे बल्कि डांस और ड्रामा में भी उनका कोई जवाब नहीं था. हीरो नंबर वन, राजा बाबू जैसी फिल्में आने वाले लंबे समय तक गोविंदा की मुस्कराती कलाकारी का नमूना बनकर रहेंगी.
आज गोविंदा (Govinda) का जन्मदिन है. गोविंदा का जन्म 21 दिसंबर, 1963 को मुंबई में हुआ था. गोविंदा के पिता अरुण अहुजा विभाजन से पहले पंजाब के गुजरांवाला में रहते थे. अनुभवी फिल्म निर्माता महबूब खान के कहने पर अरुण अहुजा मुंबई आ गए थे. 1937 में मुंबई आने के बाद महबूब खान ने उन्हें अपनी फिल्म एक ही रास्ता में अभिनय करने का अवसर दिया. गोविंदा की माता नजीम मुसलमान थीं. धर्म परिवर्तन करने के बाद उन्होंने अपना नाम निर्मला देवी रख लिया था. निर्मला देवी भी फिल्म अदाकारा थीं.
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छ: भाई-बहनों में सबसे छोटे गोविंदा का पारिवारिक नाम चीची है. जिसका पंजाबी में अर्थ होता है सबसे छोटी अंगुली. गोविंदा ने महाराष्ट्र के वर्तक कॉलेज से कॉमर्स विषय के साथ स्नातक की उपाधि ग्रहण की लेकिन अंग्रेजी अच्छी ना होने के कारण उन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिली. गोविंदा के परिवार में उनकी पत्नी सुनीता, बेटी नर्मदा, जो स्वयं एक उभरती हुई अदाकारा हैं और बेटा यशवर्धन हैं. गोविंदा के परिवार के अधिकांश सदस्य बॉलिवुड समेत एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का हिस्सा हैं. कॉमेडियन कृष्णा अभिषेक और टीवी एक्ट्रेस रागिनी खन्ना भी गोविंदा के परिवार से हैं.
गोविंदा का कॅरियर
साधारण परिवार में पले-बढ़े गोविंदा (Govinda) में आम दर्शक अपने आस-पास के लोगों की छवि देखता है. इसी कारण एक खास दर्शक वर्ग उनकी फिल्मों का दीवाना है और उनकी फिल्मों की बाट जोहता रहता है.
पिता के कहने और नौकरी ना मिलने के कारण गोविंदा ने हिन्दी सिनेमा में आने का निर्णय लिया. गोविंदा के मामा ने उन्हें सबसे पहले फिल्म “तन-बदन” में अभिनय का अवसर दिया. गोविंदा की पहली उल्लेखनीय फिल्म थी “लव 86” जो 1985 में रिलीज हुई थी. इसके बाद उन्होंने “इल्जाम” में अभिनय किया जो साल 1986 की सुपरहिट फिल्म साबित हुई.
गोविंदा: हास्य अभिनेता के तौर पर
अपनी अनोखी नृत्य प्रतिभा के बल पर गोविंदा डांसिंग अभिनेता के रूप में अपनी शुरूआती पहचान बनाने में कामयाब रहे. धीरे-धीरे वे उस दौर के प्रतिभाशाली अभिनेताओं की भीड़ में शामिल हो गए. हत्या, स्वर्ग, खुदगर्ज जैसी फिल्मों के बल पर गोविंदा की छवि एक संपूर्ण अभिनेता की बन गयी. समकालीन अभिनेताओं से खुद को अलग साबित करने की आकांक्षा के कारण गोविंदा ने अपना झुकाव हास्य-रस से भरपूर फिल्मों की ओर किया. फिर,दौर शुरू हुआ गोविंदा की हंसती-खिलखिलाती फिल्मों का. डेविड धवन के निर्देशन में गोविंदा का अभिनय और निखर कर आया. दर्शकों ने निर्देशक-अभिनेता की इस जोड़ी को खूब पसंद किया और सफल फिल्मों की श्रृंखला-सी बन गई. शोला और शबनम, आंखें, राजा बाबू, कुली नंबर वन, साजन चले ससुराल, हीरो नंबर वन, दीवाना-मस्ताना, बड़े मियां छोटे मियां, हसीना मान जाएगी, जोड़ी नंबर वन और हालिया रिलीज पार्टनर में डेविड धवन के निर्देशन में गोविंदा की अदायगी को दर्शकों ने बेहद पसंद किया.
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हालांकि, बीच-बीच में गोविंदा (Govinda) हास्य-अभिनेता की अपनी छवि के साथ प्रयोग करते रहे. शिकारी में उन्होंने खलनायक की भूमिका भी निभायी तो सलाम-ए-इश्क में रोमांटिक भूमिका. फिल्मी दुनिया से लगभग चौबीस वर्षो मे जुड़े रहे गोविंदा ने फिल्मों का निर्माण भी प्रारंभ कर दिया. उनके होम प्रोडक्शन के बैनर तले बनी पहली फिल्म सुख थी जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह विफल हो गयी. पर वे निराश नहीं हैं. अपने प्रोडक्शन हाउस को वे इन दिनों नयी दिशा दे रहे हैं.
राजनीति में गोविंदा के कदम
फिल्मों के साथ गोविंदा देश के राजनीतिक गलियारों में भी पिछले कुछ वर्षो से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. वर्ष 2004 में कांग्रेस के टिकट पर गोविंदा ने मुंबई से लोकसभा चुनाव जीता. लोकसभा सदस्य के रूप में उनका यह कार्यकाल हमेशा ही विवादों से घिरा रहा. कभी झूठे आयु प्रमाण पत्रों के कारण तो कभी अपने उपेक्षित दृष्टिकोण के कारण, गोविंदा आलोचनाओं में उलझते रहे. वह राजनीति में सक्रिय और अपेक्षित भागीदारी नहीं निभा पाए परिणामस्वरूप वर्ष 2008 में उन्होंने अपने एक्टिंग कॅरियर पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए राजनीति को अलविदा कह दिया.
हाल के सालों में गोविंदा ने पार्टनर, लाइफ पार्टनर, रावण जैसी फिल्मों में अभिनय किया है. गोविंदा को साल 1997 में फिल्म “साजन चले ससुराल” के लिए फिल्मफेयर स्पेशल अवार्ड दिया गया था. और साल 1999 में उन्हें फिल्म “हसीना मान जाएगी” के लिए फिल्मफेयर बेस्ट कॉमेडियन का अवार्ड दिया गया.
हालांकि उम्र के इस पड़ाव पर गोविंदा का जादू कम हो गया है पर उनमें आज भी वह क्षमता है कि वह दर्शकों को हंसी से लोट-पोट कर सकते हैं. बस जरूरत है तो एक अच्छी फिल्म की.
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हीरो नंबर वन : गोविंदा
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