- 1020 Posts
- 2122 Comments
Guru Amardas Jayanti
आज देश और विदेश में गुरुद्वारों का मुख्याकर्षण लंगर होता है जहां हर समुदाय और समाज का हर वर्ग एक साथ बैठकर खाना खाते हैं. लंगर प्रथा सिख समुदाय की खास विशेषता है. इस प्रथा को शुरू करने वाले गुरु अमरदास जी थे जिनकी आज जयंती है. गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे. उन्हें 73 वर्ष की आयु में इस पद पर नियुक्त किया गया था. गुरु अमरदास को लोग लंगर परंपरा, सिख धर्म का प्रचार और 22 सिख प्रांतों में बांटने की योजना के लिए जानते हैं. आइए इस महान गुरु के बारे में कुछ विशेष बातें जानें:
गुरु अमरदास का जीवन
गुरु अमर दास जी का जन्म 5 अप्रैल, 1479 अमृतसर के बसरका गांव में हुआ था. उनके पिता तेज भान भल्ला जी एवं माता बख्त कौर जी एक सनातनी हिन्दू थे. बचपन से ही गुरु अमरदास भक्ति की राह पर निकल पड़े थे. गुरु अमरदास जी अर्जुन देव जी की गुरुबाणी में गहरी रुचि और श्रद्धा को देखते हुए उन्हें दोहता-बाणी का बोहिथा (यानी नाती – वाणी का जहाज) कहा करते थे.
उनके कार्य और प्रसिद्धि
सती प्रथा का अंत
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का बहुत विरोध किया इसके साथ ही उन्होंने विधवा विवाह को भी बढ़ावा दिया. सती प्रथा के विरोध के साथ उन्होंने महिलाओं को पर्दा प्रथा त्यागने से मना किया.
लंगर परम्परा की शुरूआत
गुरु अमरदास जी समाज में सबको एक समान देखते थे और उनका मानना था कि अगर हम ऊंच-नीच के बीच की दीवार को गिरा दें तो समाज में अधिक प्रेम बढेगा. इसीलिए उन्होंने ऊंच-नीच, छूत-अछूत जैसी बुराइयों को दूर करने के लिये लंगर परम्परा चलाई जहां सभी धर्मों, वर्गों के लोग एक साथ बैठकर भोज करते थे. कहा जाता था कि मुगल शहंशाह अकबर उनसे सलाह लेते थे और उनके जाति-निरपेक्ष लंगर में अकबर ने भोजन ग्रहण किया था.
गुरुपद
गुरु अमरदास पहले एक सादा जीवन व्यतीत करते थे. एक बार उन्हें गुरु नानक जी का पद सुनने को मिला जिसके बाद वह सिखों के दूसरे गुरु अंगद के पास गए और उनके शिष्य बन गए. गुरु अंगद ने 1552 में अपने अंतिम समय में इन्हें गुरुपद प्रदान किया. उस समय अमरदास की उम्र 73 वर्ष की थी. हालांकि उनको गुरु बनाने का विरोध गुरु अंगद के पुत्र दातू ने किया लेकिन उसकी अपने पिता के सामने एक ना चली.
सिखों के तीसरे गुरु बनने के बाद उन्होंने सिखों का प्रचार विभिन्न स्तरों पर किया और बड़ी मात्रा में लोगों से लंगर का हिस्सा बनने का आह्वान किया. उनके द्वारा उठाए गए कदमों की वजह से ही उस समय सती प्रथा जैसी बुराइयां कम हुई थीं.
आनंद
अमरदास जी की प्रसिद्ध रचना “आनंद” आपको अक्सर सिख उत्सवों में सुनाई दे जाएगी. इन्हीं के आदेश पर चौथे गुरु रामदास ने अमृतसर के निकट ‘संतोषसर’ नाम का तालाब खुदवाया था जो अब गुरु अमरदास के नाम पर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध है.
मृत्यु
1 सितम्बर, 1574 को अमृतसर में गुरु अमरदास ने आखिरी सांसें लीं. आज भी उनके द्वारा शुरू की गई लंगर प्रथा सिख समुदाय की अहम विशेषता है.
Read More About some historical personalities: Indian Political Heros
Read Comments