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गुरु गोलवलकर आरएसएस के न सिर्फ दूसरे महागुरु थे बल्कि उन्होंने राष्ट्रवादी हिंदुत्व को एक नई ऊंचाई तक पहुंचाया. अपना संपूर्ण जीवन गुरुजी ने संघ और राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया था. हालांकि आज आरएसएस उनके मूल नियमों और पथ से भटक गया है पर जो स्तर उन्होंने हिंदुत्व को दिया उसे लोग राष्ट्रवादी मानते थे. आरएसएस के लिए गुरु गोलवलकर का समय एक स्वर्ण युग की तरह था जिसमें आरएसएस खूब फला फुला.
वैसे तो 20वीं सदी में भारत में अनेक गरिमायुक्त महापुरुष हुए हैं परन्तु श्रीगुरुजी उन सब से भिन्न थे, क्योंकि उन जैसा हिन्दू जीवन की आध्यात्मिकता, हिन्दू समाज की एकता और हिन्दुस्थान की अखण्डता के विचार का पोषक और उपासक कोई अन्य न था. श्रीगुरुजी की हिन्दू राष्ट्र निष्ठा असंदिग्ध थी. उनके प्रशंसकों में उनकी विचारधारा के घोर विरोधी कतिपय कम्युनिस्ट तथा मुस्लिम नेता भी थे.
गुरु गोलवलकर का पूरा नाम माधव सदाशिव गोलवलकर था. फरवरी 1906 में जन्मे गोलवलकर ने 21 जून 1940 को आरएसएस के सरसंघचालक की जिम्मेदारी संभाली. बचपन में गंभीर आर्थिक परेशानियों के बाद भी गुरुजी बेहद प्रतिभाशाली थे. 16 अगस्त, सन् 1931 को श्री गुरुजी ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राणि-शास्त्र विभाग में निदर्शक का पद संभाल लिया.
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में ही पहली बार वह आरएसएस के प्रभाव में आए. यहीं गुरुजी की मुलाकात आरएसएस के संस्थापक डा. हेगडेवार से हुई. डा. हेगडेवार गुरुजी से पहली ही मुलाकात में प्रभावित हो गए और उन्होंने गुरुजी को संघ में आने का न्यौता दे दिया. जल्द ही संघ के सभी सदस्य गुरुजी के आदर्शों से प्रभावित होने लगे और उनकी छवि दिन ब दिन मजबूत होती चली गई. और 1941 में डा. हेगडेवार जी की मृत्यु के बाद उन्हें दूसरे सरसंघचालक की भूमिका मिली.
1941 के बाद का समय इतिहास की नजर से सबसे अहम था. भारत की स्वतंत्रता मिलने से लेकर गांधीजी की हत्या तक कई बार संघ पर प्रतिबंध लगे लेकिन इन सब के बीच संघ ने देश में अपनी जड़ें फैलाना जारी रखा और देखते ही देखते राष्ट्रवादी हिंदुत्व की यह लहर देश भर में फैल गई.
संघ के विशुद्ध और प्रेरक विचारों से राष्ट्रजीवन के अंगोपांगों को अभिभूत किए बिना सशक्त, आत्मविश्वास से परिपूर्ण और सुनिश्चित जीवन कार्य पूरा करने के लिए सक्षम भारत का खड़ा होना असंभव है, इस जिद और लगन से उन्होंने अनेक कार्यक्षेत्रों को प्रेरित किया. विश्व हिंदू परिषद्, विवेकानंद शिला स्मारक, अखिल भारतीय विद्दार्थी परिषद्, भारतीय मजदूर संघ, वनवासी कल्याण आश्रम, शिशु मंदिरों आदि विविध सेवा संस्थाओं के पीछे श्री गुरुजी की ही प्रेरणा रही है.
समय समय पर सत्तारूढ़ राजनीतिज्ञों ने संघ की छवि को खराब करने की कोशिश की पर गुरुजी के नेतृत्व में संघ ने कभी घुटने नहीं टेके. गुरु गोलवलकर ने हिंदू धर्म को फैलाने के लिए जहां कई कदम उठाए वहीं उन्होंने कभी भी किसी अन्य धर्म की बुराई या ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे किसी अन्य धर्म की भावनाओं को आघात पहुंचे.
05 जून 1973 को नागपुर में गुरु गोलवलकर की कैंसर के कारण मृत्यु हो गई. गुरुजी तो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन फिर भी उनके विचारों और दिखाए गए पथ पर संघ आज भी चल रहा है और निरंतर अग्रसर है.
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