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Guru Nanak Dev Ji’s Biography in Hindi
एक गुरु वह इंसान होता है जो इंसान को हर स्थिति में संभालता और संवारता है. गुरु एक गिरते हुए बच्चे को उठाता है तो वहीं सोते बच्चे को झकझोर कर जगाता भी है. गुरु के इन्हीं गुणों को खुद में समाए हुए एक महान गुरु थे गुरु नानक देव जी. गुरु नानक देव जी को जहां लोग सिखों के पहले गुरु के रूप में याद करते हैं वहीं उनकी पहचान एक क्रांतिकारी संत की भी रही है जिन्होंने लोगों को देश की रक्षा के लिए आगे आने को कहा.
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गुरु नानक देव जी ने एक ऐसे विकट समय में जन्म लिया जब भारत में कोई केंद्रीय संगठित शक्ति नहीं थी. विदेशी आक्रमणकारी देशवासियों का मानमर्दनकर देश को लूटने में लगे थे. धर्म के नाम पर अंधविश्वास और कर्मकांड का बोलबाला था. विदेशी संस्कृति का हमला इस देश की संस्कृति पर हो रहा था.
गुरु नानक देव जी के जीवन के अनेक पहलू हैं. वे जन सामान्य की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान करने वाले महान दार्शनिक, विचारक थे. अपनी सुमधुर सरल वाणी से जनमानस के हृदय को झंकृत कर देने वाले महान संत कवि भी. वह क्रांतिकारी कवि की तरह बाबर जैसे अत्याचारी शासक की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते हैं, तो जाति वैमनस्य और धार्मिक रंजिशों में फंसे समाज को सही दिशा दिखाते हैं. आध्यात्मिक विचारक, संत होने के साथ-साथ गुरु जी एक महान देश भक्त भी थे. वे सच्चे अर्थो में एक क्रांतिकारीयुग पुरुष थे.
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Guru Nanak Dev Jayanti 2012: गुरु नानकदेव जयंती
सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गांव [पाकिस्तान में लाहौर के निकट] में वर्ष 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था. बाद में यह स्थान ननकाना साहब के नाम से प्रसिद्ध हुआ. उनका जन्मदिन हर साल प्रकाश पर्व के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस साल यह पर्व 28 नंवबर 2012 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जा रहा है.
Life of Guru Nanak Dev: गुरु नानक देव जी का जीवन
गुरु नानकदेव जी एक समन्वयवादी संत थे. देश-विदेश के व्यापक भ्रमण के पश्चात् उनका दृष्टिकोण भी विस्तृत हो गया था. उनका कहना था-मनुष्य मनुष्य में कोई भेद नहीं है, सभी मनुष्य ईश्वर की संतान है. गुरु ग्रंथ साहब में सभी संतों एवं धर्मो की उक्तियों को सम्मिलित कर उन्होंने अपने समन्वयवादी दृष्टिकोण का परिचय दिया है. पत्नी सुलक्षणा से उन्हें दो पुत्र भी हुए थे, परंतु उनका मन गृहस्थी में कभी नहीं लगा और वे आजीवन परोपकार एवं दीन-दुखियों की सेवा में लगे रहे. कार्तिक पूर्णिमा को सिख श्रद्धालु गुरु नानक के प्रकटोत्सव के रूप में धूम-धाम से मनाते है. इस जुलूस में हाथी, घोड़ों आदि के साथ नानकदेव के जीवन से संबंधित सुसज्जित झांकियां बैंड-बाजों के साथ निकाली जाती हैं. इस अवसर पर गुरुद्वारों में भजन, कीर्तन, सत्संग, प्रवचन के साथ-साथ लंगर का आयोजन भी होता है. सिख ही नहीं, बड़ी संख्या में हिंदू भी इस कार्यक्रम में भाग लेते है.
गुरु नानक किसी व्यक्ति, समाज, संप्रदाय या देश के किसी बाड़े से संबंधित नहीं थे, बल्कि वे सबके थे और सब उनके. श्री गुरु नानक देव जी का मानना था कि उनके लिए न कोई हिंदू है, न मुस्लमान.
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नानक की उदासियां
गुरु नानक देव जी ने लोक कल्याण के लिए चारों दिशाओं में चार यात्राएं करने का निश्चय किया था. वर्ष 1499 में आरंभ हुई इन यात्राओं में गुरु जी भाई मरदाना के साथ पूर्व में कामाख्या, पश्चिम में मक्का-मदीना, उत्तर में तिब्बत और दक्षिण में श्रीलंका तक गए. यात्रा के दौरान उनके साथ अनगिनत प्रसंग घटित हुए, जो विभिन्न साखियों के रूप में लोक-संस्कार का अंग बन चुके हैं. वर्ष 1522 में उदासियां समाप्त करके उन्होंने करतारपुर साहिब को अपना निवास स्थान बनाया.
भक्ति के साथ खेती भी
करतारपुर साहिब में रहते हुए गुरु नानक देव जी खेती का कार्य भी करने लगे थे. गृहस्थ संत होने के कारण वे खुद मेहनत के साथ अन्न उपजाते थे. 1532 में भाई लहिणा उनके साथ जुड़े, जिन्होंने सात वर्षों तक समर्पित होकर उनकी खूब सेवा की. बाद में लहिणा गुरु नानक देव जी के उत्तराधिकारी बने. गुरु नानक ने 25 सितंबर, 1539 को अपना शरीर त्यागा. जनश्रुति है कि नानक के निधन के बाद उनकी अस्थियों की जगह मात्र फूल मिले थे. इन फूलों का हिन्दू और मुसलमान अनुयायियों ने अपनी अपनी धार्मिक परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार किया.
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