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एक ओंकार सतनाम: गुरु नानक देव जयंती विशेषांक

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धर्म चाहे जो भी हो वह सीख यही देता है कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है और इसे मानने के बाद ही इंसान वास्तव में इंसान कहलाता है. भारत एक धार्मिक देश है और यहां समय समय पर कई धर्म गुरुओं ने अपनी शिक्षा से मानवता की सेवा करने का संदेश दिया है. ऐसे ही एक धर्म गुरु हैं गुरु नानक देव जी जो सिखों के प्रथम गुरू थे .


गुरु नानक देव जी के बारें में जानकारों का विश्वास है कि वह हिन्दु मुस्लिम एकता के बड़े समर्थक थे. उन्होंने अपने जीवन भर हिंदू और मुस्लिम धर्म की एकता का संदेश दिया और यातायात के बेहद कम साधनों वाले उस दौर में भी पूरे भारत ही नहीं आधुनिक इराक के बगदाद और सउदी अरब के मक्का मदीना तक की यात्रा की.

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Guru Nanak Devमक्का की घटना

कहा जाता है कि मक्का में ही उनके साथ वह प्रसिद्ध घटना हुई, जिसमें उनसे किसी ने काबे की तरफ पैर करके नहीं सोने को कहा था. इसके जवाब में गुरु नानक देव जी ने यह प्रसिद्ध सवाल किया था कि वह दिशा या जगह बता दो जिसमें खुदा मौजूद न हो?


गुरु नानक देव जी का महा मंत्र

गुरु नानक जी एक अच्छे कवि भी थे. उन्होंने अपनी शिक्षाओं को जन-जन की भाषा में प्रसारित किया था. गुरु जी की वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में महला पहला के अंतर्गत संकलित है. इसमें जपजी साहिब, आसा दी वार, सिधगोसदि,बारेमाहआदि प्रमुख वाणियों सहित, गुरु जी के कुल 958 शब्द और श्लोक हैं.उनका एक मूल मंत्र बहुत ही प्रसिद्ध था जो यह है:


एक ओंकार सतिनामु करता पुरखु निरभउ।

निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि॥

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एक ओंकार सतनाम

नानक बचपन से ही प्रतिदिन संध्या के समय अपने मित्रों के साथ बैठकर सत्संग किया करते थे. उनके प्रिय मित्र भाई मनसुख ने सबसे पहले नानक की वाणियों का संकलन किया था. कहा जाता है कि नानक जब वेईनदी में उतरे, तो तीन दिन बाद प्रभु से साक्षात्कार करने पर ही बाहर निकले. ज्ञान प्राप्ति के बाद उनके पहले शब्द थे- एक ओंकार सतनाम.


गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं

गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में मुख्यत: तीन बातें हैं. पहला जप यानी प्रभु स्मरण, दूसरा कीरत यानी अपना काम करना और तीसरा जरूरतमंदों की मदद.गुरु नानक की शिक्षा में सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने हमेशा लोगों को प्रेरित किया कि वह अपना काम करते रहे. आध्यात्मिक व्यक्ति होने का यह अर्थ नहीं है कि व्यक्ति को अपना काम धंघा छोड़ देना चाहिए.


Guru Nanak Dev ji ke Dohe लंगर

गुरु जी ने अपने उपदेशों को अपने जीवन में अमल में लाकर स्वयं एक आदर्श बन सामाजिक सद्भाव की मिसाल कायम की. उन्होंने लंगर की परंपरा चलाई जहां कथित अछूत लोग जिनके सामीप्य से कथित उच्च जाति के लोग बचने की कोशिश करते थे, उन्हीं ऊंच जाति वालों के साथ बैठकर एक पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे. आज भी सभी गुरुद्वारों में गुरु जी द्वारा शुरू की गई यह लंगर परंपरा कायम है. लंगर में बिना किसी भेदभाव के संगत सेवा करती है.


संगत

जातिगत वैमनस्य को खत्म करने के लिए गुरू जी ने संगत परंपरा शुरू की. जहां हर जाति के लोग साथ-साथ जुटते थे, प्रभु आराधना किया करते थे. कथित निम्न जाति के समझे जाने वाले मरदाना को उन्होंने एक अभिन्न अंश की तरह हमेशा अपने साथ रखा और उसे भाई कहकर संबोधित किया. इस प्रकार तत्कालीन सामाजिक परिवेश में गुरु जी ने इस क्रांतिकारी कदमों से एक ऐसे भाईचारे को नींव रखी जिसके लिए धर्म-जाति का भेदभाव बेमानी था.


गुरुनानक देव जी की दस शिक्षाएं
1. ईश्वर एक है.
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो.
3. ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है.
4. ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता.
5. ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए.
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं.
7. सदैव प्रसन्न रहना चाहिए. ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए.
8. मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए.
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं.
10. भोजन शरीर को ज़िंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है.


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