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हमारे देश के महान महापुरुषों ने इतिहास में दसवीं से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक एक ऐसा भक्ति आंदोलन चलाया, जिसने सर्व समाज को सोते से जगाया. अज्ञान का अंधेरा मिटाकर ज्ञान की रोशनी फैलाई. इन महापुरुषों में एक बड़ा नाम है भारत के सिक्ख धर्म के पहले गुरू गुरुनानक देव.
सिख सम्प्रदाय के संस्थापक, गुरुनानक का जन्म ऐसे समय में हुआ जब समाज में अंधकार काली छाया व्याप्त थी. उस समय भारत संकट से गुजर रहा था. विदेशी आक्रमणकारी देशवासियों का मान मर्दन कर देश को लूटने में लगे थे. धर्म के नाम पर अंधविश्वास और कर्मकांड का बोलबाला था. एक तरफ जहां आम जन जात-पांत और वर्गों की भेद-भावना से उलझी हुई थी वहीं दूसरी ओर मुश्लिम शासक हिन्दुओं तथा समाज के निर्बल वर्गों पर अत्याचार कर रहे थे. ऐसे कठिन और आपत्तिकाल में जनता को किसी प्रभावशाली पथ-प्रदर्शक की आवश्यकता थी. ऐसे एमं जनता की आवश्यकता को पूरा करने के लिए गुरुनानक देव भगवान का संदेश लेकर अवतरित हुए.
गुरुनानक के काल को संक्रमण का काल कहा जाता है. यह वह समय था जब देश मध्यकालीन धारणाओं से आधुनिकता की ओर अग्रसर हो रहा था. कर्मठ तथा बौद्धिक व्यक्ति भौतिकता एवं आध्यात्मिकता का क्रांतिकारी रूप से मंथन कर रहे थे. उस समय गुरुनानक ने मानव की आध्यात्मिक शक्ति को उजागर किया. साथ ही जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों को ध्यान में रखकर उन्होंने सामाजिक तथा धार्मिक सुधार के आन्दोलन को बल दिया.
खुद में सुधार के लिए गुरुनानक ने अपने व्यक्तिगत आचरण में आदर्श प्रस्तुत किया और तर्क तथा विवेक द्वारा विश्वास पैदा करने का उपाय अपनाया. बाद में भगवान में आस्था रखने वाले नर-नारी जन सेवा का व्रत लेकर उनके अनुयायी बने और वे सिख कहलाने लगे. उनके भक्तों में न केवल सिख बल्कि हिन्दू और मुसलमान दोनों थे.
गुरुनानक देव भी अपने धर्म के सबसे बड़े गुरू माने जाते हैं और उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में गुरू की महिमा का व्याख्यान किया और समाज में प्रेम भावना को फैलाने का कार्य किया. उन्होंने अपने शिष्यों से संसार छोड़ने को नहीं कहा. उनका कहना था कि अपने घरों में रहते हुए, रोज का काम-काज करते हुए भी भगवान को याद किया जा सकता है. गुरुनानक ने आचरण के कुछ साधारण नियमों की स्थापना की जिनका पालन कर के मनुष्य सार्थक तथा परिपूर्ण जीवन व्यतीत किया जा सकता है. गुरु नानक का जीवन आज भी सत्य, प्रेम विश्ववास तथा विनयशीलता के लिए याद किया जाता है.
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