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Hindi Diwas in India
हर वर्ष 14 सितंबर को देश में हिन्दी दिवस मनाया जाता है. यह मात्र एक दिन नहीं बल्कि यह है अपनी मातृभाषा को सम्मान दिलाने का दिन. उस भाषा को सम्मान दिलाने का जिसे लगभग तीन चौथाई हिन्दुस्तान समझता है, जिस भाषा ने देश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाई. उस हिन्दी भाषा के नाम यह दिन समर्पित है जिस हिन्दी ने हमें एक-दूसरे से जुड़ने का साधन प्रदान किया. लेकिन क्या हिन्दी मर चुकी है या यह इतने खतरे में है कि हमें इसके लिए एक विशेष दिन समर्पित करना पड़ रहा है?
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Why is Hindi Diwas Celebrated
आज “हिन्दी दिवस” जैसा दिन मात्र एक औपचारिकता बन कर रह गया है. लगता है जैसे लोग गुम हो चुकी अपनी मातृभाषा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं वरना क्या कभी आपने चीनी दिवस या फ्रेंच दिवस या अंग्रेजी दिवस के बारे में सुना है. हिन्दी दिवस मनाने का अर्थ है गुम हो रही हिन्दी को बचाने के लिए एक प्रयास.
Hindi: Language of India
हिन्दी हमारी मातृभाषा है. जब बच्चा पैदा होता है तो वह पेट से ही भाषा सीख कर नहीं आता. भाषा का पहला ज्ञान उसे आसपास सुनाई देनी वाली आवाजों से प्राप्त होता है और भारत में अधिकतर घरों में बोलचाल की भाषा हिन्दी ही है. ऐसे में भारतीय बच्चे हिन्दी को आसानी से समझ लेते हैं.
उस छोटे बच्चे को सभी घर में तो हिन्दी में बात करके समझाते और सिखाते हैं लेकिन जैसे ही वह तीन या चार साल का होता है उसे प्ले स्कूल या नर्सरी में भेज दिया जाता है और यहीं से शुरू होती है अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई. बचपन से हिन्दी सुनने वाले बच्चे के कोमल दिमाग पर अंग्रेजी भाषा सीखने का दबाव डाला जाता है. पहली और दूसरी कक्षा तक आते-आते तो कई स्कूलों में शिक्षकगण बच्चे को समझाने के लिए भी अंग्रेजी भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं. अंग्रेजी को स्कूलों में इस तरह पढ़ाया जाता है जैसे यह हमारी राष्ट्रभाषा हो और यही हमें दाना-पानी देगी.
अंग्रेजी बने बॉस, हिन्दी झेले गरीबी
वहीं दूसरी ओर जिन बच्चों को अंग्रेजी सीखने में दिक्कत आती है और वह इसमें कमजोर रह जाते हैं उन्हें गंवार समझा जाता है. हालात तो यह है कि आज कॉरपोरेट और व्यापार श्रेणी में लोग हिन्दी बोलने वाले को गंवार समझते हैं. एक कंप्यूटर प्रोग्रामर को चाहे कितनी ही अच्छी कोडिंग और प्रोग्रामिंग आती हो लेकिन अगर उसकी अंग्रेजी सही नहीं है तो उसे दोयम दर्जे का माना जाता है.
हिन्दी की हालत
आज देश में हिन्दी के हजारों न्यूज चैनल और अखबार आते हैं लेकिन जब बात प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान की होती है तो उनमें अव्वल दर्जे पर अंग्रेजी चैनलों को रखा जाता है. बच्चों को अंग्रेजी का विशेष ज्ञान दिलाने के लिए अंग्रेजी अखबारों को स्कूलों में बंटवाया जाता है लेकिन क्या आपने कभी हिन्दी अखबारों को स्कूलों में बंटते हुए देखा है.
आज जब युवा पढ़ाई पूरी करके इंटरव्यू में जाते हैं तो अकसर उनसे एक ही सवाल किया जाता है कि क्या आपको अंग्रेजी आती है? बहुत कम जगह हैं जहां लोग हिन्दी के ज्ञान की बात करते हैं.
बात सिर्फ शैक्षिक संस्थानों तक सीमित नहीं है. जानकारों की नजर में हिन्दी की बर्बादी में सबसे अहम रोल हमारी संसद का है. भारत आजाद हुआ तब हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की आवाजें उठी लेकिन इसे यह दर्जा नहीं दिया गया बल्कि इसे मात्र राजभाषा बना दिया गया. राजभाषा अधिनियिम की धारा 3 [3] के तहत यह कहा गया कि सभी सरकारी दस्तावेज और निर्णय अंग्रेजी में लिखे जाएंगे और साथ ही उन्हें हिन्दी में अनुवादित कर दिया जाएगा. जबकि होना यह चाहिए था कि सभी सरकारी आदेश और कानून हिन्दी में ही लिखे जाने चाहिए थे और जरूरत होती तो उन्हें अंग्रेजी में बदला जाता.
सरकार को यह समझने की जरूरत है हिन्दी भाषा सबको आपस में जोड़ने वाली भाषा है तथा इसका प्रयोग करना हमारा संवैधानिक एवं नैतिक दायित्व भी है. अगर आज हमने हिन्दी को उपेक्षित करना शुरू किया तो कहीं एक दिन ऐसा ना हो कि इसका वजूद ही खत्म हो जाए. समाज में इस बदलाव की जरूरत सर्वप्रथम स्कूलों और शैक्षिक संस्थानों से होनी चाहिए. साथ ही देश की संसद को भी मात्र हिन्दी पखवाड़े में मातृभाषा का सम्मान नहीं बल्कि हर दिन इसे ही व्यवहारिक और कार्यालय की भाषा बनानी चाहिए.
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