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है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी
हर इंसान की एक पहचान होती है. यह पहचान कई रूपों में होती है लेकिन जो चीज सबसे पहले झलकती है वह है उस इंसान की बोली. मसलन अगर कोई पंजाबी है तो यह उसके बोलते ही पता चल जाएगा इसी तरह अगर कोई अंग्रेज है तो उसके बोलने का तरीका ही बता देगा कि उसकी असल पहचान क्या है. इसी तरह एक हिंदुस्तानी की असली पहचान हिंदी भाषा होती है.
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हिन्दी ना सिर्फ हमारी मातृभाषा है बल्कि यह भारत की राजभाषा भी है. संविधान ने 14 सितंबर, 1949 को हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया था. भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में यह वर्णित है कि “संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय होगा.
इसके बाद साल 1953 में हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है.
यह तो बात थी आजाद भारत में हिन्दी के महत्व की लेकिन हिन्दी का इतिहास आजादी के सदियों साल पुराना है. हम हिन्दी को राष्ट्रभाषा मानते हैं. इसके बिना हमारी कोई पहचान ही नहीं है. संसार में चीनी के बाद हिन्दी सबसे विशाल जनसमूह की भाषा है. भारत में अनेक उन्नत और समृद्ध भाषाएं हैं किंतु हिन्दी सबसे अधिक व्यापक क्षेत्र में और सबसे अधिक लोगों द्वारा समझी जाने वाली भाषा है.
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जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं कि राष्ट्रभाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती है लेकिन भारत जो करीब दो सौ सालों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा उसने अपनी इस अनमोल विरासत को कहीं खो सा दिया है. आलम यह है कि आज हिन्दी भाषा गौरव की नहीं बल्कि शर्म की भाषा होती जा रही है. प्रगति और विकास की राह में लोग हिन्दी को तुच्छ मानते हैं. टेक्नॉलोजी और विज्ञान के इस दौर में आपने इंग्लिश स्पीकिंग कोर्सों की दुकान तो बहुत देखी होगी लेकिन हिन्दी सिखाने के लिए प्राइवेट कोचिंग सेंटर तो दूर टीचर भी नहीं मिलते.
आज हर भारतीय अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए अच्छी से अच्छी शिक्षा की वकालत करता है और अच्छे स्कूल में डालता है. इन स्कूलों में विदेशी भाषाएं तो बखूबी सिखाई जाती हैं लेकिन हिन्दी की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दिया जाता वजह और कारण बेहद हास्यपद हैं. कुछ लोगों का कहना होता है कि “हिन्दी का मार्केट थोड़ा डाउन है और आगे जाकर इसमें कोई खास मौके नहीं मिलते.”
आज देश में हर दूसरा न्यूज चैनल हिन्दी में आता है. हजारों अखबार हिन्दी में छपते हैं. लेकिन फिर भी नौकरियों की कमी है. लेकिन हिन्दी का समर्थन करने का मतलब यह नहीं है कि आप अन्य भाषाएं सीखें ही ना. हिन्दी भाषा का सम्मान करने का अर्थ है आपको हिन्दी आनी चाहिए और सार्वजनिक स्थलों पर हिन्दी में वार्तालाप करने में आपको शर्म या झिझक नहीं होनी चाहिए.
आज “हिन्दी दिवस” जैसा दिन मात्र एक औपचारिकता बन कर रह गई है जब लोग गुम हो चुकी अपनी मातृभाषा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं वरना क्या कभी आपने चीनी दिवस या फ्रेंच दिवस या अंग्रेजी दिवस के बारे में सुना है. हिन्दी दिवस मनाने का अर्थ है गुम हो रही हिन्दी को बचाने के लिए एक प्रयास.
प्यारे पाठकों, आज का युवा अपनी जमीन से तो दूर होता ही जा रहा है लेकिन अगर वह अपने वजूद और अपनी पहचान को भी खो दे तो यह अच्छा नहीं होगा. एक हिन्दुस्तानी को कम से कम अपनी भाषा यानि हिन्दी तो आनी ही चाहिए. साथ ही हमें हिन्दी का सम्मान भी करना सीखना होगा.
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