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भारत विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों को एक साथ लेकर चलने वाला देश है. यहां हर मौसम में विविध त्यौहार आते हैं जो मिलने-मिलाने का बेहतरीन अवसर प्रदान करते हैं. हर कुछ महीने बाद देश त्यौहारों के रंग में डूबा नजर आता है. वसंत ऋतु अपने साथ देश का सबसे रंगीन त्यौहार “होली” लेकर आता है. होली भारत का एक बेहद लोकप्रिय त्यौहार है. रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है.
होली पूरे देश में एक समान हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है बस इसको मनाने के तरीके हर जगह अलग होते हैं. ब्रज, मथुरा और बरसाना की होलियां तो देश में ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध हैं. होली के दिन जैसे पूरा देश ही रंगो में डूब जाता है. होली एक ऐसा त्यौहार है जिसमें लोग आपसी दुश्मनी और बैर भूलकर एक हो जाते हैं. होली का रंग दुश्मनी को खत्म कर देता है.
होली की कथा
होली के पर्व के पीछे भी सभी भारतीय त्यौहारों की तरह कई धार्मिक कहानियां जुड़ी हुई हैं. होली मनाने के पीछे सबसे ज्यादा प्रचलित कथा है कि यह त्यौहार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के मारे जाने की स्मृति में मनाया जाता है. पुराणों के अनुसार प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नामक एक असुर था जो भगवान विष्णु का कट्टर दुश्मन माना जाता था लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद विष्णु जी का सबसे बड़ा भक्त था. अपने बेटे को अपने विरुद्ध देख हिरण्यकश्यप ने उसे मारने की योजना बनाई. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका जिसे आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था उसके साथ मिलकर प्रह्लाद को मार देने का निश्चय किया. लेकिन जैसे हिरण्यकश्यप ने सोचा था हुआ बिलकुल ठीक उसके उलट. होलिका प्रह्लाद के साथ अग्नि में बैठ गई लेकिन आग की लपटों से झुलस होलिका की ही मृत्यु हो गई और प्रह्लाद बच गए. तभी से इस त्योहार के मनाने की प्रथा चल पड़ी.
होली और कृष्ण की जोड़ी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण सांवले रंग के थे और उनकी सखा राधा श्वेत वर्ण की थीं जिससे कृष्ण को हमेशा उनसे जलन होती थी और वह इसकी शिकायत अपनी माता यशोदा से करते थे. एक दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को यह सुझाव दिया कि वे राधा के मुख पर वही रंग लगा दें, जिसकी उन्हें इच्छा हो. बस फिर क्या था कृष्ण ने होली के दिन राधा को अपने मनचाहे रंग में रंग दिया.
कृष्ण की नगरी मथुरा और ब्रज में होली की छटा देखते ही बनती है.
रंगों का त्यौहार
होली के एक दिन पहले लोग रात को होलिका जलाते हैं जिसमें वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है. उसके अगले दिन दुलेंडी मनाई जाती है. दुलेंडी को सभी एक-दूसरे पर गुलाल बरसाते हैं तथा पिचकारियों से गीले रंग लगाते हैं. पारंपरिक रूप से केवल प्राकृतिक व जड़ी-बूटियों से निर्मित रंगों का प्रयोग होता है, परंतु आज कल कृत्रिम रंगों ने इनका स्थान ले लिया है. आजकल तो लोग जिस किसी के साथ भी शरारत या मजाक करना चाहते हैं, उसी पर रंगीले झाग व रंगों से भरे गुब्बारे मारते हैं. प्रेम से भरे यह नारंगी, लाल, हरे, नीले, बैंगनी तथा काले रंग सभी के मन से कटुता व वैमनस्य को धो देते हैं तथा सामुदायिक मेल-जोल को बढ़ाते हैं. इस दिन सभी के घर पकवान व मिष्टान बनते हैं. लोग एक-दूसरे के घर जाकर गले मिलते हैं और पकवान खाते हैं.
गुझियों की मिठास
मिठाइयां होली की विशेषता हैं. होली पर भारत में विशेष रुप से गुझियां बनाने की परंपरा है. गुझिया एक बेहद मीठी और स्वादिष्ट मिठाई होती है.
गुझियों के साथ होली के दिन ठंडाई पीना भी कई जगह रिवाज में शामिल है. ठंडाई एक शीतल पेय है जिसे दूध, भांग, बादाम मिलाकर बनाया जाता है. हालांकि होली के रंग में कई बार ठंडाई रंग में भंग का काम कर देता है क्योंकि ठंड़ाई में जो भांग होती है वह एक तरह का नशीला पदार्थ होता है.
होली का त्यौहार हमें एकता और हंसी खुशी रहने का संदेश देता है. होली में मस्ती तो की जाती है लेकिन वह मस्ती अश्लीलता से दूर होती है. आज के समय में होली की हुड़दंग को युवाओं ने अश्लीलता से भरकर रख दिया है. केमिकल कलर और गुब्बारों ने पर्व की महिमा को कम किया है तो होली के दिन विशेष रुप से शराब पीना लोगों का कल्चर सा बन गया है. होली एक धार्मिक पर्व है जो हमें खुश होने का एक मौका देता है. इसे ऐसा ना बनाएं कि किसी की खुशी छिन जाए.
होली को सुरक्षित और इस अंदाज से मनाएं कि देखने वाले देखते ही रह जाएं. अपनी होली को रंगीन बनाएं और प्राकृतिक रंगों से सराबोर कर दें.
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