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मानवाधिकार मतलब किसी भी इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार. आज 10 दिसम्बर को पूरा विश्व मानवाधिकार दिवस के रुप में मना रहा है. मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जिस पर हमेशा से ही बहस रही है. बहस इस बात पर कि इंसान को इंसान की तरह जीने देना और साथ ही क्या इंसान की शक्ल में जो हैवान है उनका भी मानवाधिकार होना चाहिए?
जहां एक तरफ ग्वांतानामो जेल, अबू गरीब जेल जैसे कांड हृदय में मानवाधिकारों की दुहाई देते हैं वहीं जब अबु सलेम, अफजल गुरु जैसे हत्यारे और आतंकियों के मानवाधिकार की बात की जाती है तो यह निरर्थक लगती है. यहां विरोधाभास तो है ही लेकिन कहीं न कहीं मानव का हित साधना ही परम उद्देश्य है. हम सभी चाहते हैं कि बेशक कोई दोषी न सजा पा सके लेकिन किसी निर्दोष को भी तो बलि का बकरा न बनाया जाए.
मानवाधिकार दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1948 में की थी. उसने 1948 में सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा स्वीकार की थी और 1950 से महासभा ने सभी देशों को इसकी शुरुआत के लिए आमंत्रित किया था. संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के लिए तय किया. लेकिन हमारे देश में मानवाधिकार कानून को अमल में लाने के लिए काफी लंबा समय लग गया. भारत में 26 सिंतबर 1993 से मानव अधिकार कानून अमल में लाया गया है.
लेकिन ऐसा नहीं है कि भारत में ही स्थिति खराब है. आज इतने लंबे समय बाद भी विश्व स्तर पर और खासकर अमेरिका मानवाधिकारों का हनन करने में सबसे आगे है. वैसे तो दुनियाभर में किसी भी देश के कानून में यातना की इजाजत नहीं दी गई है, लेकिन फिर भी इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र में लोगों या कैदियों को यातनाएं दिए जाने के विरोध में बहुत से प्रस्ताव और कानून पारित होने के बावजूद आज भी दुनियाभर के तमाम देश इस बुराई का इस्तेमाल कर रहे हैं. कहीं अपराधियों से सच उगलवाने के नाम पर तो कहीं नागरिकों को नियंत्रण में रखने के नाम पर सरकारी एजेंसियां यातना का हथकंडा अपनाती हैं.
जब तक बात अपराधियों की है तब तक तो सब सही है क्योंकि एक बलात्कारी, आतंकवादी या हत्यारे का कोई मानवाधिकार तो होना ही नहीं चाहिए लेकिन इन्हीं अपराधियों के साये में जब कोई निर्दोष हत्थे चढ़ जाता है या प्रशासन सच उगलवाने के लिए गैरकानूनी रूप से किसी को शारीरिक या मानसिक यातना देता है तब समझ में आता है मानवाधिकार कितना जरुरी है.
मानवाधिकार एक ऐसा विषय है जो सभी सामाजिक विषयों में सबसे गंभीर है जिसे हम एक तरफा हो कर नहीं सोच सकते. पर अपने राजनीतिक या अन्य बुरे मंसूबों को सफल बनाने के लिए मानवाधिकारों का सहारा लेना बिलकुल गलत है.
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