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हिंदू धर्म के महान ज्ञानी और चिंतक रहे श्री रामानुजम या रामानुजाचार्य को वैष्णव धर्म के संपूर्ण दर्शनशास्त्र में सबसे अधिक पूजनीय और सम्माननीय आचार्य का दर्जा दिया जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार श्री रामानुजम का जन्म सन 1017 में श्री पेरामबुदुर (तमिलनाडु) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. हिंदू पुराणों के अनुसार श्री रामानुजम का जीवन काल लगभग 120 वर्ष लंबा था, जबकि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि इतनी आयु तक कोई भी मनुष्य जीवित नहीं रह सकता इसीलिए हो सकता है श्री रामानुजम का जन्म 20-60 वर्ष बाद हुआ हो. श्री रामानुजम ने भारतीय दर्शन शास्त्र और हिंदू धर्म में प्राण भर दिए. उनके किए गए प्रयासों का प्रभाव हिंदू धर्म के पहलू पर देखा जा सकता है.
श्री रामानुजम का जीवन
सोलह वर्ष की उम्र में ही श्रीरामानुजम ने सभी वेदों और शास्त्रों का ज्ञान अर्जित कर लिया और 17 वर्ष की आयु में उनका विवाह संपन्न हो गया. विवाह के कुछ समय पश्चात रामानुजम के पिता की मृत्यु हो गई जिसके बाद रामानुजम अपने परिवार के साथ कांचीपुरम के समीप एक छोटे से शहर में रहने चले गए जहां रामानुजम को अपने पहले औपचारिक गुरू यादवप्रकाश का सानिध्य प्राप्त हुआ. युवावस्था से ही श्री रामानुजम धर्म और दर्शन के सभी पक्षों को जान गए थे. वह बेहद बुद्धिमान थे. उनके गुरू भी उनकी प्रतिभा को समझते थे. लेकिन उन्हें हमेशा यह चिंता सताती थी कि भक्ति के क्षेत्र में रामानुजम कितना प्रभाव छोड़ पाते हैं. रामानुजम के साथ कुछ विवाद होने के बाद गुरू यादवप्रकाश को वह एक खतरा लगने लगे. इसीलिए उन्होंने रामानुजम को मारने का निश्चय किया. लेकिन रामानुजम के भाई ने उनकी जान बचा ली. जबकि कुछ स्थानों पर यह उल्लेख किया गया है कि रामानुजम को मारने का षडयंत्र उनके गुरू ने नहीं बल्कि अन्य शिष्यों ने रचा था. यादवप्रकाश से अलग होने के बाद रामानुजम अपने गुरू कांचीपूरण से मिले. कांचीपूरण ने उन्हें अपने गुरू यामुनाचार्य के पास भेज दिया, जो विशिष्टद्वैत नामक गुरूकुल के दार्शनिक थे. लेकिन इससे पहले रामानुजम उनसे मिलते, यामुनाचार्य की मृत्यु हो गई.
श्री रामानुजम ने यमुनाचार्य के सभी उद्देश्यों को पूरा करने का निश्चय किया. रामानुजम ने देश भ्रमण की शुरुआत की और सभी विष्णु मंदिरों में जाकर अन्य धार्मिक जानकारों से शास्त्रार्थ किया. उनसे पराजित होने वाले सभी लोग उनके अनुयायी बन जाते थे. इस दौरान उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं.
श्रीरामनुजम की रचनाएं
श्री रामानुजम ने लगभग 9 पुस्तकें लिखी हैं, जिन्हें नवरत्न कहा जाता है. श्री भाष्य इनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है. जो पूर्ण रूप से ब्रह्मसूत्र पर आधारित है. वैकुंठ गद्यम, वेदांत सार, वेदार्थ संग्रह, श्रीरंग गद्यम, गीता भाष्य, निथ्य ग्रंथम, वेदांत दीप, उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाएं हैं.
भारत की पवित्र भूमि ने कई संत-महात्माओं को जन्म दिया है. जिन्होंने ना सिर्फ अपने कृत्यों और विचारों द्वारा अपने जीवन को सफल किया बल्कि कई वर्षों बाद भी निरंतर रूप से अन्य लोगों को भी धर्म की राह से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं. श्री रामानुजम की उपलब्धियां और उपदेश भी आज के समय में पूरी तरह उपयोगी हैं. दक्षिण भारत के आयंगर ब्राह्मण आज भी रामानुजम के परंपरागत दर्शनशास्त्र का ही पालन करते हैं.
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