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इंदिरा को डर था कि ये अभिनेत्री उनकी सियासत के लिए खतरा बन सकती है

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इस बात का कोई कैसे यकीन कर सकता है कि आपातकाल के दौर में दुनिया के सबसे मजबूत प्रधानमंत्रियों में से एक इंदिरा गांधी तब जयप्रकाश से नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा की एक लोकप्रिय लेकिन मंझी हुई अभिनेत्री सुचित्रा सेन से ज्यादा डरती थी. यह बात सच है कि फिल्म ‘आंधी’ में अभिनेत्री सुचित्रा के दमदार अभिनय ने इंदिरा गांधी को भयभीत कर दिया था.


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दरअसल निर्देशक और गीतकार गुलजार की सुपरहिट फिल्म ‘आंधी’ सन 1975 में रिलीज होने वाली थी. यह एक पॉलिटिकल ड्रामा फिल्म थी जो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित थी. आपातकाल के उस दौर में, रिलीज से पहले हर जगह पोस्टरों पर इस फिल्म के ही चर्चे थे. पोस्टरों पर लिखा होता था ‘“वाच द रियल लाइफ ऑफ योर प्राइम मिनिस्टर’”.


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जब तक इंदिरा गांधी सत्ता में थीं फिल्म ‘आंधी’ को रिलीज करने की अनुमति नहीं दी गई. इंदिरा के जीवन के बारे में कोई जाने ना इसलिए इस पर बैन लगा दिया गया था, लेकिन स्रोत बताते हैं कि इंदिरा ने तब पीएमओ (प्राइम मिनिस्टर ऑफिस) से कहा था कि वह इस फिल्म को देखे और इस पर से बैन हटाने का विचार करे.


1977 में जब इंदिरा गांधी की हार हुई थी तब जनता पार्टी की सरकार ने इस फिल्म को रिलीज की अनुमति दी थी. साथ ही इसे नेशनल टेलीविजन पर दिखाने की बात कही थी.


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यह तो हुई सुचित्रा सेन की फिल्म ‘आंधी’ की बात. वैसे पर्दे पर सरल, सहज और बेबाकी से अपने रोल को जीने वाली सुचित्रा असल जिंदगी में भी एक मजबूत महिला थीं. कहा जाता है कि सुचित्रा के अभिनय को देखकर हिंदी फिल्म इंड्रस्टी के महान निर्देशक सत्यजीत राय चाहते थे कि वह केवल उनकी ही फिल्म में काम करें, लेकिन बड़े बेबाकी के साथ सुचित्रा ने उनके इस ऑफर को ठुकरा दिया था. वह नहीं चाहती थीं कि उनकी वजह से दूसरे निर्देशक निराश हों.


नीचे हम आपको कुछ ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं बता रहे हैं जिसे पढ़कर आपको लगेगा कि अब तक के 100 साल के हिंदी सिनेमा में सुचित्रा सेन जैसी कोई ना थी और ना है. यह घटना उनके मित्र और लेखक गोपाल कृष्णा रॉय की बातों पर आधारित है. गोपाल कृष्णा रॉय ने उनके उपर दो किताबें भी लिखी हैं.


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बहुत लोग कहते हैं कि सुचित्रा बहुत ही घंमडी और संकोची किस्म की अभिनेत्री थीं. लेकिन गोपाल कृष्णा रॉय इसे एक घटना के जरिए झूठा साबित करते हैं.


suchitra sen 2“एक शाम सर्कुलर रोड से हम चहलकदमी के लिए बाहर निकले. उस समय रात के साढ़े नौ बज रहे थे. मैंने उनसे कहा, आपको लोग पहचानते हैं आपको बाहर ऐसे दिक्कत हो सकती है. उन्होंने कहा, कुछ नहीं होगा मैं हूं ना. तभी अचानक एक व्यक्ति ने उन्हें पहचान लिया और रोकते हुए कहा कि मुझे आपका ऑटोग्राफ चाहिए. उस समय सुचित्रा सेन की क्या प्रतिक्रिया थी यह तो नहीं जानता, लेकिन उन्होंने एक अच्छी सी स्माइल देते हुए उस अनजान व्यक्ति को कहा. “एक पेपर और पेन दो”.


हैरानी की बात यह थी कि उस व्यक्ति के पास पेपर और पेन नहीं था. तब सुचित्रा ने मेरी तरफ देखा. मैंने कहा मेरे पास पेन तो है लेकिन पेपर नहीं. आप यकीन नहीं करोगे उस समय सुचित्रा सेन नीचे झुकीं और पड़ी हुई खाली सिगरेट के पेपर को उठाया और उस पर ऑटोग्राफ दिया.


सुचित्रा सेन मनमर्जी की मालिक थीं जो सोचती थीं वही करती थीं. एक घटना के जरिए गोपाल कृष्णा रॉय बताते हैं कुछ साल पहले सुचित्रा एक स्थानीय टेलर की दुकान पर जाया करती थीं, उसके साथ घंटों बात करती थी तथा उसके परिवार के बारे में भी पूछती थीं.


एक दूसरी घटना में रॉय बताते हैं कि सुचित्रा सेन ने एक बार मुझे अपने घर बुलाया और अपना वजन चेक कराने के लिए जोर देने लगीं. वजन चेक कराने के लिए हम बाहर निकले लेकिन जिस नर्सिंग होम में उन्हें वजन चेक कराना था दुर्भाग्य से वहां मशीन खराब थी. उन्होंने जोर दिया कि हमें गरिहंत क्षेत्र में जाना चाहिए जो वहां से तीन किलोमीटर थी, लेकिन वहां दुकान ही बंद थी. आखिरकार हम घर से आठ किलोमीटर दूर सेंट्रल कोलकाता में ग्रांड होटल पहुंचे जहां उन्होंने अपना वजन चेक कराया.


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