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मेरी आकांक्षाएं कुछ नहीं है. इस समय तो सबसे बड़ी आकांक्षा यही है कि हम स्वराज्य संग्राम में विजयी हों. धन या यश की लालसा मुझे नहीं रही. खाने भर को मिल जाता है बस वही काफी है. मोटर और बंगले की मुझे अभिलाषा नहीं. हां, यह जरूर चाहता हूं कि दो चार उच्चकोटि की पुस्तकें लिखूं, पर उनका उद्देश्य भी स्वराज्य विजय ही है. मुझे अपने दोनों लड़कों के विषय में कोई बड़ी लालसा नहीं है. यही चाहता हूं कि वह ईमानदार, सच्चे और पक्के इरादे के हों. विलासी, धनी, खुशामदी सन्तान से मुझे घृणा है. मैं शांति से बैठना भी नहीं चाहता. साहित्य और स्वदेश के लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहता हूं. हां, रोटी-दाल और तोला भर घी और मामूली कपड़े सुलभ होते रहें”.
कुछ इसी तरह की चाहत रखते थे साधारण सी जिंदगी जिने वाले स्वतंत्रता सेनानी तथा उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद. गांधीजी के विचारों से प्रभावित प्रेमचंद के अधिकतर उपन्यासों में मिल मालिक और मजदूरों, जमीदारों और किसानों तथा नवीनता और प्राचीनता का संघर्ष साफ तौर पर देखा जा सकता है. उन्होंने अपने लेखन के जरिए न केवल स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदी भाषा के विकास के लिए भी काम किया. भारतीय साहित्य में उनका योगदान हमेशा ही अग्रणीय लेखकों में रहेगा. आइए उनके जीवन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देते हैं जो शायद आप नहीं जानते होंगे.
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1. प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. उन्होंने लेखन की शुरुआत तब की जब लोग उन्हें नवाब राय के नाम जाना करते थे लेकिन अपनी रचना ‘सोजे वतन’ में जिस तरह से उन्होंने अपना विद्रोही रूप दिखाया उससे अंग्रेजी हुक्मरान भयभीत होने लगे. उन्होंने नवाब राय को अपना नाम बदलने की चेतावनी दी.
2. स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब प्रेमचंद ने कॉलेज में दाखिला लेने के लिए आवेदन दिया तो उनके आवेदन को कॉलेज ने ठुकरा दिया. इसके पीछे दो कारण बताए जाते हैं. पहला- उनका गणित में कमजोर होना, दूसरा- मैट्रिक में अच्छे नंबर न होना. उन्होंने बहुत बाद में बीए की डिग्री हासिल की.
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3. बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा कि प्रेमचंद ने एक बाल विधवा (शिवरानी देवी) से शादी की. उन दिनों प्रेमचंद के लिए यह निर्णय लेना किसी क्रांतिकारी से कम नहीं था. उन्हें विरोध का सामना भी करना पड़ा. इन सबके बीच उन्होंने इस अनुभव (बाल विवाह) को अपने किताबों में भी उकेरा.
4. प्रेमचंद के लेखन में हिंदी और उर्दू भाषा का सम्मिश्रण दिखाई देता है. इसके पीछे की वजह यह है कि उन्होंने शुरुआत में ही उर्दू और फारसी का अध्ययन कर लिया था. भाषा सिखने के लिए वह मदरसे जाया करते थे.
5. असहयोग आंदोलन के समय महात्मा गांधी ने लोगों से आह्वान किया कि वह सरकारी नौकरी को छोड़कर आंदोलन में शामिल हो जाए. प्रेमचंद ने उसी समय अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर आंदोलन में शामिल हो गए. तब वह स्कूल में डिप्टी इस्पेक्टर के पद पर थे. उन्होंने यह निर्णय तब लिया जब उनकी पत्नी गर्भवती थी और उनकी खुद की सेहत भी अच्छी नहीं थी.
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