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जब पौधा बोया जाता है तो उससे यही उम्मीद की जाती है कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ वह अपना फल और छाया अन्य लोगों को प्रदान करेगा. लेकिन जब वह पेड़ बूढ़ा हो जाता है तो किसी का ध्यान उसकी ओर नहीं जाता. कोई उस वृक्ष की ओर ध्यान नहीं देता जिसने पूरी जिंदगी दूसरों का ही हित सोचा. इतना ही नहीं उसे मात्र एक बोझ ही मान लिया यह एक पेड़ की कहानी नहीं बल्कि हर उस इंसान की कहानी है जो उम्र के बढ़ते पड़ाव में परिवार द्वारा वृद्धाश्रम में धकेल दिए जाते हैं, उन्हें अपने परिवार से ही दूर रहने के लिए विवश कर दिया जाता है. उम्र बढ़ने का एक अर्थ अनुभव बढ़ने से भी लिया जा सकता है लेकिन आज की युवा पीढ़ी जो स्वयं से आगे कुछ सोच ही नहीं पाती वह परिवार के बुजुर्गों को अपने ऊपर एक बोझ समझने लगती है.
जिस परिवार को व्यक्ति अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता है, जिसकी खुशियों के लिए अपनी खुशियां छोड़ देता है वही परिवार उसके वृद्ध होते ही उसे तुच्छ समझने लगता है. वैसे तो हम अपने संस्कारों की बात करते हैं लेकिन बुजुर्गों के साथ होते ऐसे व्यवहार को देखकर हमारी ओछी मानसिकता प्रदर्शित होने लगती है.
वृद्ध होने के बाद इंसान को कई रोगों का सामना करना पड़ता है. चलने-फिरने में भी दिक्कत होती है. लेकिन यह इस समाज का एक सच है कि जो आज जवान है उसे कल बूढ़ा भी होना होगा और इस सच से कोई नहीं बच सकता. लेकिन इस सच को जानने के बाद भी जब हम बूढ़े लोगों पर अत्याचार करते हैं तो हमें अपने मनुष्य कहलाने पर शर्म महसूस होती है. हमें समझना चाहिए कि वरिष्ठ नागरिक समाज की अमूल्य विरासत होते हैं. उन्होंने देश और समाज को बहुत कुछ दिया होता है. उन्हें जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का व्यापक अनुभव होता है.
आज का युवा वर्ग राष्ट्र को उंचाइयों पर ले जाने के लिए वरिष्ठ नागरिकों के अनुभव से लाभ उठा सकता है. अपने जीवन की इस अवस्था में उन्हें देखभाल और यह अहसास कराए जाने की जरूरत होती है कि वे हमारे लिए खास महत्व रखते हैं. हमारे शास्त्रों में भी बुजुर्गों का सम्मान करने की राह दिखलायी गई है.
अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस का इतिहास
संपूर्ण विश्व में बुजुर्गों के प्रति होने वाले अन्याय और उनके साथ दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने के साथ-साथ वृद्धों को उनके अधिकारों के प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से 14 दिसंबर, 1990 के दिन संयुक्त राष्ट्र ने यह निर्णय लिया कि हर साल 1 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस के रूप में मनाया जाएगा. इससे बुजुर्गों को भी उनकी अहमियत का अहसास होगा और समाज के अलावा परिवार में भी उन्हें उचित स्थान दिलवाया जा सकेगा. सबसे पहले 1 अक्टूबर, 1991 को बुजुर्ग दिवस मनाया गया और तब से यह सिलसिला निरंतर जारी है.
भारत में बुजुर्गों की स्थिति
वैसे तो भारत में भी बुजुर्गों की रक्षा और उन्हें अधिकार दिलवाने के लिए भारत में भी कईकानूनों का निर्माण किया गया है लेकिन आज भी उनका पालन सही तरीके से नहीं किया जाता. केंद्र सरकार ने भारत में वरिष्ठ नागरिकों के आरोग्यता और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1999 में वृद्ध सदस्यों के लिए राष्ट्रीय नीति तैयार की है. जिसके तहत व्यक्तियों को स्वयं के लिए तथा उनके पति या पत्नी के बुढ़ापे के लिए व्यवस्था करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और साथ ही परिवार वालों को वृद्ध सदस्यों की देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करने का भी प्रयास किया जाता है.
इसके साथ ही 2007 में माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक संसद में पारित किया गया है. इसमें माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्धाश्रमों की स्थापना, चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था और वरिष्ठ नागरिकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है.
लेकिन इन सब के बावजूद हमें अखबारों और समाचारों की सुर्खियों में वृद्धों की व्यथा और लूटमार की घटनाएं देखने को मिल ही जाती हैं. वृद्धाश्रमों में बढ़ती संख्या इस बात का साफ सबूत है कि वृद्धों को उपेक्षित किया जा रहा है. हमें समझना होगा कि अगर समाज के इस अनुभवी स्तंभ को यूं ही नजरअंदाज किया जाता रहा तो हम उस अनुभव से भी दूर हो जाएंगे जो इनके पास है.
सबसे बड़ी बात तो ये है कि वृद्ध एक दिन हम सभी होंगे और तब हमारे साथ क्या होगा! क्या हमें भी वृद्धाश्रम में धकेल दिया जाएगा या उपेक्षित किया जाएगा. यदि आज हमने अपने बच्चों और स्वयं अपने भीतर वृद्धों का सम्मान करने का संस्कार नहीं पैदा किए तो कल तो वाकई बड़ा भयानक होगा.
Tag: International old Days, International day of Old People, International day of Older People,
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