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अंतरराष्‍ट्रीय महिला दिवस : एक जंग पहचान के लिए

Special Days
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International Women's Dayनारी एक ऐसी ईश्वरीय कृति है जिसके बिना आप जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. स्त्री मातृत्व की देवी होने के साथ ही पुरुष की पूरक भी है. समाज के लिए इतना जरुरी होने के बाद भी लोग अक्सर स्त्री को वह सम्मान नहीं देते जो उन्हें देनी चाहिए. कभी नारी को गुलाम बनाकर रखा जाता है तो कभी घर की चारदीवारी में इज्जत के नाम पर बंद करके रखा जाता है. जैसे इज्जत इज्जत नहीं कोई हौव्वा है और अगर नारी बाहर निकल गई तो कोई चुरा लेगा. स्त्रियों की हालत इतनी खराब है कि आज महिलाएं घर से बाहर जाती हैं तो अपने दिल के अंदर से इस बात को अलग नहीं कर पातीं कि उनकी इज्जत खतरे में है. कुछ गिनी-चुनी महिलाओं के सशक्त होने भर से हम कहते हैं कि आज महिला सशक्तिकरण हो रहा है.


आज 8 मार्च है यानि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस. अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरूआत 1900 के आरंभ में हुई थी. वर्ष 1908 में न्यूयार्क की एक कपड़ा मिल में काम करने वाली करीब 15 हजार महिलाओं ने काम के घंटे कम करने, बेहतर तनख्वाह और वोट का अधिकार देने के लिए प्रदर्शन किया था. इसी क्रम में 1909 में अमेरिका की ही सोशलिस्ट पार्टी ने पहली बार ”नेशनल वुमन-डे” मनाया था. वर्ष 1910 में डेनमार्क के कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाने का फैसला किया गया और 1911 में पहली बार 19 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया. इसे सशक्तिकरण का रूप देने हेतु ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैलियों में हिस्सा लिया. बाद में वर्ष 1913 में महिला दिवस की तारीख 8 मार्च कर दी गई. तब से हर 8 मार्च को विश्व भर में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है.


International Womens Dayभारत में भी महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए और उन्हें सशक्त करने के लिए बहुत पहले से कार्य किए जा रहे हैं. इस कार्य की शुरुआत राजा राममोहन राय, केशव चन्द्र सेन, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एवं स्वामी विवेकानन्द जैसे महापुरुषों ने की थी जिनके प्रयासों से नारी में संघर्ष क्षमता का आरम्भ होना शुरू हो गया था. इसी क्रम को और आगे बढ़ाया अन्य नेताओं ने. इन सब के साथ महिला सशक्तिकरण की राह में गैर सरकारी संगठनों के प्रयासों को भी नहीं नकारा जा सकता.


जमीनी हकीकत: एक कड़वा सच


उपरोक्त शब्द पढ़कर या देखकर लगता है कि महिला सशक्तिकरण के लिए समाज कितना जागरुक है और इसके लिए कितने बड़े-बड़े कार्य हो रहे हैं. लेकिन जमीनी हकीकत किसी कड़वे सच से कम नहीं है. विदेशों में आज महिलाएं जरुर कुछ हद तक सशक्तिकरण की राह पर चली हैं और आगे बढ़ी हैं लेकिन वहां भी उनके साथ होने वाले यौनिक अत्याचारों में कमी नहीं आई है उलटा विदेशों में महिलाओं का ज्यादा शोषण होता है.


महिला सशक्तिकरण की बात मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए तो करना बिलकुल बेमानी होगा क्योंकि आज भी महिलाओं का दुनिया में सबसे ज्यादा शोषण मुस्लिम देशों में ही होता है जहां पर्दा और बुरके के अंदर महिलाओं को बांध कर रखा जाता है. अगर किसी गैर मर्द से आंखें लड़ गईं या किसी विवाहिता की आवाज उठ गई तो यह देश उस स्त्री को सरेआम मौत दे देते हैं. तुगलकी फरमानों का सितम हमेशा महिलाओं पर ही टूटता है. इन देशों में न जाने कब महिला सशक्तिकरण की बयार चलेगी? जो लोग महिलाओं की जागरुकता की बात करते हैं वह कभी इन देशों में जाते ही नहीं हैं और न ही इनकी बात करते हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि इन देशों में महिला सशक्तिकरण एक सपना है जिसे पूरा करने के लिए एक क्रांति की जरुरत है.


और अगर हम भारत के संदर्भ में महिला सशक्तिकरण की बात करें तो हालत कमोबेश लचर ही है. भारत में महिला सशक्तिकरण की राह में वैसे तो कई उल्लेखनीय कदम उठाए गए हैं. यहॉ कई ऐसी महिलाएं हैं जो सशक्त नारी की रुपरेखा निर्धारित करती हैं. सोनिया गांधी, मायावती, ममता बनर्जी, मीरा कुमार आदि कुछ महिलाएं जहां राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं की ओर से अग्रणी हैं वहीं महिलाओं का सबसे अच्छा कार्य मनोरंजन जगत में दिखता है जहां वाकई महिलाएं आगे जा रही हैं.


लेकिन फिर भी दिन ब दिन होने वाली महिलाओं के ऊपर शोषण की कहानी इस तस्वीर को बर्बाद कर देती है. आज महिलाएं बाहर तो दूर की बात है घर के अंदर ही सुरक्षित नहीं. अगर सशक्तिकरण की बात करें तो आज भी भारत के कई हिस्सों में महिलाओं को शिक्षा से दूर रखने पर जोर दिया जाता है. ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है जो लड़कियों को पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन वो भी सिर्फ इसलिए ताकि वह आगे अपने बच्चों को पढ़ा सकें.


भारत में भी स्त्री की भूमिका किसी बच्चा पैदा करने वाली और वासना पूर्ण करने वाली मशीन की तरह है. प्रतिदिन बढ़ते रेप, बलात्कार और शोषण की खबरें इस बात का सबूत हैं कि हम महिला सशक्तिकरण की राह पर आगे तो बढ़े हैं लेकिन हमारी सोच आज भी यह मानने को तैयार नहीं कि स्त्रियां हमसे आगे हैं.


आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर हमारे आगे कई ऐसी चुनैतियां हैं जिनका हमें सामना करना है. हमें समझना होगा कि चन्द मुठ्ठी भर महिलाओं के उत्थान करने से पूरे नारी समाज का कल्याण नहीं हो सकता. अगर महिलाओं को सशक्त करना है तो पहले समाज को जागरुक करना होगा.

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