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भारतभूमि ने तमाम ऐसे महान पुरुष इस विश्व को दिए हैं जो आज एक आदर्श शख्सियत बनकर उभरे हैं. भारत के महापुरुषों को उभारने में एक सशक्त भूमिका बिहार ने भी निभाई है. आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी के बाद के परिवेश में हमें ऐसे हजारों नायक मिलेंगे जो बिहार से आए हैं और उन्हीं नायकों में से एक अतिविशेष व्यक्ति हैं स्व. जय प्रकाश नारायण.
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बिहार के लाल जय प्रकाश नारायण
बिहार के सिताबदियारा में जन्में जय प्रकाश नारायण को कई लोग जेपी के नाम से भी जानते हैं. 1975 के आपातकाल (Emergency in India) के दौरान जय प्रकाश नारायण एक हीरो की तरह उभरे. जाति, धर्म और राज्य से ऊपर उठकर देश सेवा के लिए संपूर्ण देश को एकत्रित कर सत्ता परिवर्तन का जो कमाल जयप्रकाश नारायण ने करके दिखाया वह काबिलेतारीफ और अद्वितीय रहा. कहते हैं जय प्रकाश नारायण जैसा दूसरा ना तो कोई था और ना ही होगा.
जेपी जैसा ना कोई था और ना ही होगा
जब देश अंग्रेजों का गुलाम था तब देश के हर इंसान में आजादी की एक अलग लौ थी, एक अलग जुनून था. लेकिन आजादी के बाद आम नागरिक अपनी रोजी-रोटी की चिंता में खो गए और ऐसे समय में तत्कालीन सरकारों ने सत्ता को पाने के लिए कई घोटाले और षड़यंत्र किए जिनसे समाज का नुकसान हुआ. लेकिन अपनों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए एक हो पाने का समाज के पास कोई औजार नहीं था और ना ही कोई ऐसा लीडर था जो उन्हें क्रांति के लिए आगे ले जा सके. ऐसे समय में जय प्रकाश नारायण ने आगे आकर युवाओं के माध्यम से जनता को एकत्रित किया. उनके आंदोलन को देखकर कुछ लोगों को तो अंग्रेजी हुकूमत के दिन याद आ गए. उनके अहिंसावादी आंदोलन की सूरत को देखकर कुछ लोगों ने उन्हें आजाद भारत के गांधी की उपाधि दी थी.
कल के जेपी और आज के अन्ना
जयप्रकाश ने जो आंदोलन चलाया था उसकी कुछ झलक हमें साल 2011 के अन्ना हजारे के आंदोलन में जरूर देखने को मिली. लेकिन 1975 के संपूर्ण क्रांति आंदोलन और अन्ना के आंदोलन की सफलता और तरीकों को किसी भी पैमाने पर हम आपस में तुलना नहीं कर सकते. हालांकि दोनों ही आंदोलनों की भूमिका और वजह लगभग समान ही थी. जहां जयप्रकाश नारायण का आंदोलन सरकार की भ्रष्ट नीतियों के खिलाफ था तो वहीं अन्ना का आंदोलन भी सरकार में फैले घोटाले और भ्रष्ट कामकाज के खिलाफ रहा. उस आंदोलन में भी कई युवा नेता उभर कर सामने आए जैसे लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान तो वहीं अन्ना के आंदोलन की वजह से ही अरविंद केजरीवाल, कुमार विश्वास जैसे लोग सामने आए हैं. लेकिन अन्ना का आंदोलन जहां भ्रष्टाचार और उनके अपनों की वजह से एक पैमाने तक निष्फल साबित हुआ वहीं जयप्रकाश नारायण का आंदोलन बेहद सफल साबित हुआ.
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कभी खूनखराबे में था जयप्रकाश का विश्वास
देश में ‘संपूर्ण क्रांति’ की अलख जगाने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण कभी घोर मार्क्सवादी हुआ करते थे. अमेरिका से पढ़ाई करने के बाद जेपी 1929 में स्वदेश लौटे. उस वक्त वह घोर मार्क्सवादी हुआ करते थे. वह सशस्त्र क्रांति के जरिए अंग्रेजी सत्ता को भारत से बेदखल करना चाहते थे, हालांकि बाद में बापू और नेहरू से मिलने एवं आजादी की लड़ाई में भाग लेने पर उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आया.
Emergency in India 1975: आखिर क्यूं लगा था 1975 में आपातकाल
यूं तो जयप्रकाश नारायण कभी कांग्रेस के साथी हुआ करते थे लेकिन जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के पश्चात जब उनकी बेटी इंदिरा गांधी की सरकार आई तो वह कांग्रेस के सबसे बड़े दुश्मन बनकर सामने आए. जयप्रकाश जी की निगाह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक होती जा रही थी. 1975 में निचली अदालत में गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने उनके इस्तीफे की मांग की. इसके बदले में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और नारायण तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया.
संपूर्ण क्रांति: सिंहासन खाली करो की जनता आती है
पांच जून, 1975 को अपने प्रसिद्ध भाषण में जयप्रकाश ने कहा था कि “भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं. वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति-’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है.”
पांच जून, 1975 की विशाल सभा में जे. पी. ने पहली बार ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के दो शब्दों का उच्चारण किया. उनका साफ कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा.
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यह क्रांति उन्होंने बिहार और भारत में फैले भ्रष्टाचार की वजह से शुरू की. बिहार में लगी चिंगारी कब पूरे भारत में फैल गई पता ही नहीं चला.
कुछ ऐसा था जयप्रकाश नारायण का जादू
साल 2011 में अन्ना के आंदोलन के दौरान रामलीला मैदान में आई भीड़ को देखकर जरूर कुछ लोगों को यह भ्रम हुआ होगा कि जयप्रकाश नारायण के समय भी ऐसा ही आंदोलन हुआ होगा लेकिन सोच कर देखिए सोशल मीडिया और तमाम मीडिया हाइप के बाद भी अन्ना के आंदोलन में वह जादू नहीं हो पाया जो जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के समय हुआ था.
जय प्रकाश नारायण की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था. बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी. जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे. लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज के कई नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे.
दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने जब जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के खिलाफ हुंकार भरी थी तब आकाश में सिर्फ उनकी ही आवाज सुनाई देती थी. उस समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह “दिनकर” ने कहा था “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”.
जेपी के सफल आंदोलन का नतीजा
जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आदोलन” के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी. इसके बाद भी जेपी का सपना पूरा नहीं हुआ. इस क्रांति का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे देशों पर भी पड़ा था. वर्ष 1977 में हुआ चुनाव ऐसा था जिसमें नेता पीछे थे और जनता आगे थी. यह जेपी के करिश्माई नेतृत्व का ही असर था.
जयप्रकाश नारायण: आज कहां खो गए????
आज स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने वाले, सर्वहारा के हक के लिए जोरदार ढंग से आवाज उठाने वाले, इंदिरा गांधी की सत्ता को हिलाने वाले व आजादी के बाद सामाजिक समानता के सबसे बड़े पैरोकार जयप्रकाश नारायण और उनकी संपूर्ण क्रांति राजनीति के गलियारे में कहीं गुम हो गई है. भ्रष्टाचार और घोटालों से ही यह सरकार आज अपनी नींव मजबूत कर रही है, जनता को सत्ता परिवर्तन के लिए एकत्रित करने वाले किसी नायक की आज कमी साफ नजर आ रही है.
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