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राजनीति में ककहरा सीखने के लिए एक आईकॉन की जरूरत होती है. एक ऐसा आईकॉन जिसकी छत्रछाया में रहकर हर कोई अपनी सियासत की रोटियां सेंकना चाहता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Jayprakash Narayan) एक ऐसे ही आईकॉन बनें.
आजादी के बाद शासक के रूप में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई और इसके मुखिया जवाहरलाल नेहरू बनें. उस दौरान कांग्रेस एकमात्र बड़ी पार्टी होने की वजह से अपने मनमुताबिक शासन चला रही थी जिसकी वजह से सरकार में पूरी तरह से भ्रष्टाचार व्याप्त हो गया था, लेकिन कोई ऐसा नेता नहीं था जो सरकार के इन कारगुजारियों के खिलाफ आवाज उठा सके. यह सिससिला नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री और फिर इंदिरा गांधी के शासनकाल तक चला. यह वह दौर था जब सरकार की नाकामियों और अत्याचारों से जनता पूरी तरह त्रस्त थी. उस समय कुछ लोग थे जो इंदिरा की सरकार का विरोध कर रहे थे लेकिन उनके विरोध में इतना दम नहीं था कि वह जनता की आवाज को एकजुट कर सकें.
तब जयप्रकाश नारायण (Jayprakash Narayan) के रूप में एक ऐसे व्यक्ति का आगमन हुआ जिसने तत्कालीन इंदिरा सरकार को दिन में तारे दिखला दिए. उन्होंने आपातकाल से पहले पटना के गांधी मैदना और दिल्ली के रामलीला मैदान में ऐसा भाषण दिया कि इंदिरा की सरकार हड़बड़ा सी गई. उस समय तक जनता का सब्र का बांध टूट गया था. वह जल्द से जल्द इंदिरा को सत्ता से बाहर देखना चाहते थे. अपनी सरकार को जाते देख इंदिरा ने पूरे देश में 26 जून 1975 को आपातकाल लागू कर दिया. जिसके बाद जयप्रकाश नारायण तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया.
सरकार की इस कार्यवाही का पूरे देश में विरोध हुआ. तब जयप्रकाश नारायण की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ा. बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी. जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे. सरकार पर बढ़ते दबाव के चलते जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया. जिसके बाद लोकनायक के ‘संपूर्ण क्रांति आदोलन’ के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी.
इस पूरी लड़ाई में जयप्रकाश नारायण (Jayprakash Narayan) के साथ जिन लोगों ने इंदिरा सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी, आज उनमे से कई नेता देश के प्रमुख पदों पर आसीन है. यह वह नेता हैं जो तरह-तरह के मुखौटों के साथ कांग्रेस विरोध राजनीति करके समाजवादी जेपी (जयप्रकाश नारायण) पर अपना सबसे मजबूत दावा ठोंकते हैं.
कांग्रेसियों को जेपी फूटी आंख नहीं सुहाते. जेपी के राजनीतिक शिष्यों में लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान सुशील मोदी हैं. इन्होंने आंदोलन के समय छात्र नेता के रूप में जेपी का साथ दिया था. बाद में इन्होंने जेपी के विचारों को आधार बनाकर अपनी पार्टी की नीव भी रखी थी, लेकिन आज इनमे से कई ऐसे नेता रहे हैं जो कांग्रेस की सरकार में काम चुके हैं. इससे यह जाहिर होता है कि इन राज नेताओं के लिए जेपी के विचार कोई मायने नहीं रखते.
जेपी के एक प्रमुख राजनीतिक शिष्य लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान कांग्रेस की छत्रछाया पाने के लिए बेताब-से रहते हैं. दोनों कांग्रेस के साथ सत्ता-शासन भोग चुके हैं. फिलहाल लालू तो जेल में बंद है लेकिन उनकी पार्टी और उन जैसी कई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियां आज भी जेपी की सिद्धांतों को अपनी सुविधा अनुसार इस्तेमाल करती है.
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