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कहते हैं एक सफल आदमी के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है और इस वाक्य के हर एक शब्द को महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी, जो भारत में ‘बा’ के नाम से विख्यात हैं, ने चरितार्थ किया था. निरक्षर होने के बावजूद बा में अच्छे-बुरे को पहचानने की विवेक-शक्ति थी. वह बुराई का डटकर सामना करती थीं और अनेक मौके पर गांधीजी को चेतावनी देने से भी नहीं चूकती थीं.
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बा गुणों की भंडार थीं. उनमें ऐसे गुण थे जो दूसरी बहुत सी हिंदू स्त्रियों में न्यूनाधिक मात्रा में पाया जाता है. स्वयं गांधीजी इस बात को स्वीकार करते हुए कहते थे: “जो लोग मेरे और बा के निकट संपर्क में आए हैं, उनमें अधिक संख्या तो ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर अनेक गुनी अधिक श्रद्धा रखते हैं”.
कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) का जीवन
11 अप्रैल, 1869 को पोरबंदर में जन्मी कस्तूरबा गांधी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi की भांति शिक्षित नहीं थीं. लेकिन कई लोग मानते हैं कि अगर आप गांधी जी और कस्तूरबा गांधी का तुलनात्मक अध्ययन करें तो आपको कस्तूरबा गांधी का व्यक्तित्व गांधी की अपेक्षा अधिक बड़ा नजर आ सकता है लेकिन भारतीय समाज जो भावनाओं की नदी के समान होता है वह महात्मा गांधी को सबसे ऊपर मानता है. कई लोग इसे भारत के पुरुषवादी समाज की सोच भी मानते हैं. गांधी जी और कस्तूरबा गांधी में तुलना करना व्यवहारिक तो नहीं है लेकिन निष्पक्ष भाव से देखने में कहीं ना कहीं कस्तूरबा गांधी के त्याग गांधी जी से श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं.
गांधी जी और कस्तूरबा गांधी का विवाह
कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) के पिता गोकुलदास माकनजी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के पिता करमचंद गांधी के बेहद करीबी मित्र थे. दोनों मित्रों ने अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने का निर्णय लिया और मात्र सात बर्ष की उम्र में ही कस्तूरबा गांधी और महात्मा गांधी की सगाई और तेरह वर्ष की अल्प आयु में शादी हो गई. यह एक संयोग ही था कि गांधी जी खुद तो जिंदगी भर बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाते रहे लेकिन उनका खुद बाल विवाह हुआ था. शायद यह संयोग कम गांधी जी के लिए प्रयोग अधिक सिद्ध हुआ जिसके बाद गांधी जी ने सदैव बाल विवाह का विरोध किया.
महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) उनकी निरक्षरता से कुढ़ते रहते थे और उन्हें ताने देते रहते थे. उनका सजना, संवरना और घर से बाहर निकलना भी उन्हें नापसंद था. वे शक्की और ईर्ष्यालु पति थे. इस बात को उन्होंने भी स्वीकार किया था.
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स्वयं में एक बड़ी शख्सियत
यह सर्वविदित है कि कस्तूरबा गांधी धर्मपरायण महिला थीं और जीवनसाथी की परिभाषा को पूर्णता प्रदान करते हुए जिंदगी के हर मोड़ पर उन्होंने बापू का साथ निभाया था. कस्तूरबा गांधी जैसा आत्मबलिदान का प्रतीक व्यक्तित्व उनके साथ नहीं होता तो गांधी जी के सारे अहिंसक प्रयास इतने कारगर नहीं होते.
कस्तूरबा गांधी, महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के ‘स्वतंत्रता कुमुक’ की पहली महिला प्रतिभागी थीं. दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान रंगभेद की नीति के विरुद्ध बा कई बार जेल गईं. भारत में भी, आजादी की लड़ाई में उन्होंने बापू के कदम-से-कदम मिलाया. एक आदर्श पत्नी की तरह कस्तूरबा हमेशा अपने पति के साथ खड़ी नजर आईं, भले ही मोहनदास के कुछ विचारों से वह सहमति नहीं रखती थीं. कौन भूल सकता है कि जब गांधी जी ने 1906 में ब्रह्मचर्य का व्रत रखा था तो कस्तूरबा ने इसका कतई विरोध नहीं किया था.
कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) का अपना एक दृष्टिकोण था, उन्हें आज़ादी का मोल और महिलाओं में शिक्षा की महत्ता का पूरा भान था. स्वतंत्र भारत के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना उनके दिलों में था. 22 फरवरी, 1944 को उन्हें भयंकर दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा. भारत के गौरवशाली इतिहास में आज भी कस्तूरबा गांधी द्वारा राष्ट्र को दिए योगदान को कम नहीं आंका जाता.
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