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आजके नेतागण जो हजारों करोड़ों के घोटाले डकार कर भी उफ तक नहीं करते वह शायद उस महान शख्स की महानता को नहीं समझ सकते जिसने प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कभी किसी गलत कार्य से नहीं की बल्कि हमेशा प्रधानमंत्री पद पर होते हुए भी अपने वेतन में से ही गरीबों को भी एक भाग दिया. ऐसे महान शख्स का नाम है लाल बहादुर शास्त्री. भारतीय राजनीति में लाल बहादुर शास्त्री का नाम अगर स्वर्णाक्षरों से लिखा है तो इसकी एक सटीक वजह भी है.
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पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री सादा जीवन और उच्च विचार रखने वाले व्यक्तित्व थे. उनका पूरा जीवन हर व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है. जय जवान-जय किसान का नारा देकर उन्होंने न सिर्फ देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों का मनोबल बढ़ाया बल्कि खेतों में अनाज पैदा कर देशवासियों का पेट भरने वाले किसानों का आत्मबल भी बढ़ाया.
50 रुपए में चलाया करते थे घर
बात उन दिनों की है जब लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे. जेल से उन्होंने अपनी माता जी को पत्र लिखा कि 50 रुपये मिल रहे हैं या नहीं और घर का खर्च कैसे चल रहा है?
मां ने पत्र के जवाब में लिखा कि 50 रुपये महीने मिल जाते हैं. हम घर का खर्च 40 रुपये में ही चला लेते हैं. तब बाबू जी ने संस्था को पत्र लिखकर कहा कि आप हमारे घर प्रत्येक महीने 40 रुपये ही भेजें. बाकी के 10 रुपये दूसरे गरीब परिवार को दे दें.
जब यह बात पंडित जवाहर लाल नेहरू को पता चली तो वह शास्त्री जी से बोले कि त्याग करते हुए मैंने बहुत लोगों को देखा है, लेकिन आपका त्याग तो सबसे ऊपर है. इस पर शास्त्री जी पंडित जी को गले लगाकर बोले, ”जो त्याग आपने किया उसकी तुलना में यह कुछ भी नहीं है, क्योंकि मेरे पास तो कुछ है ही नहीं. त्याग तो आपने किया है जो सारी सुखसुविधा छोड़कर आजादी की जंग लड़ रहे हैं.” क्या ऐसी सादगी और ऐसा त्याग आज संभव है?
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खुद सारी जिम्मेदारी लेने को रहते थे तैयार
आज भारतीय नेता बड़े-बड़े कांड होने पर भी कुर्सी का मोह नहीं छोड़ पाते हैं लेकिन शास्त्री जी एक ऐसे नेता थे जो किसी भी घटना पर अपराधबोध होने की सूरत में अपनी जिम्मेदारी लेने से नहीं हिचकते थे. बात 1952 की है जब उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया. उन्हें परिवहन और रेलमंत्रीका कार्यभार सौंपा गया. 4 वर्ष पश्चात 1956 में अडियालूर रेल दुर्घटना के लिए, जिसमें कोई डेढ़ सौ से अधिक लोग मारे गए थे, अपने को नैतिक रूप से उत्तरदायी ठहरा कर उन्होंने रेलमंत्री का पद त्याग दिया. शास्त्रीजी के इस निर्णय का देशभर में स्वागत किया गया. आज के नेताओं को इससे बहुत बड़ी सीख लेने की जरूरत है.
पाकिस्तान को दिखाई थी औकात
हाल ही में भारतीय सेना के दो जवानों को पाकिस्तानी सेना ने जान से मार डाला लेकिन इसके जवाब में भारतीय सरकार और सेना की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की गई. ऐसे में लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी बेहद प्रासंगिक है जिन्होंने देश को 1965 में पाकिस्तान हमले के समय बेहतरीन नेतृत्व प्रदान किया था.
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लालबहादुर शास्त्रीको 1964 में देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनाया गया था. 1966 में उन्हें भारत का पहला मरणोपरांत भारत रत्न का पुरस्कार भी मिला था. 1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया. परंपरानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के चीफ व मंत्रिमंडल सदस्य शामिल थे. लालबहादुर शास्त्री कुछ देर से पहुंचे. विचार-विमर्श हुआ तीनों अंगों के प्रमुखों ने पूछा सर क्या हुक्म है?
शास्त्री जी ने तुरंत कहा आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है?
इतिहास गवाह है उसी दिन रात्रि के करीब 11.00 बजे करीब 350 हवाई जहाजों ने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की ओर उड़ान भरे. कराची से पेशावर तक जैसे रीढ़ की हड्डी को तोड़ा जाता है ऐसा करके सही सलामत लौट आए. बाकी जो घटा उसका इतिहास गवाह है. शास्त्री जी ने इस युद्ध में पं. नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया. इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सब एकजुट हो गए. इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी नहीं की थी.
किसी ने सच ही कहा है कि वीर पुत्र को हर मां जन्म देना चाहती है. लालबहादुर शास्त्रीउन्हीं वीर पुत्रों में से एक हैं जिन्हें आज भी भारत की माटी याद करती है.
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लालबहादुर शास्त्री: क्या सुलझेगी मौत की गुत्थी
बहादुर शास्त्री की मौतको जब कई साल बीत चुके थे तब लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने लालबहादुर शास्त्री के मौत के रहस्यकी गुत्थी सुलझाने को कहा था. पूर्व सोवियत संघ के ताशकंद में 11 जनवरी, 1966 को पाकिस्तान के साथ ताशकंद समझौते पर दस्तखत करने के बाद शास्त्री जी की मौत हो गई थी. लालबहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री का कहना था कि जब लालबहादुर शास्त्री की लाश को उन्होंने देखा था तो लालबहादुर शास्त्री की छाती, पेट और पीठ पर नीले निशान थे जिन्हें देखकर साफ लग रहा था कि उन्हें जहर दिया गया है. लालबहादुर शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री का भी यही कहना था कि लालबहादुर शास्त्री की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी.
शास्त्रीजी को कभी किसी पद या सम्मान की लालसा नहीं रही. उनके राजनीतिक जीवन में अनेक ऐसे अवसर आए जब शास्त्रीजी ने इस बात का सबूत दिया. इसीलिए उनके बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि वे अपना त्यागपत्र सदैव अपनी जेब में रखते थे. ऐसे निस्पृह व्यक्तित्व के धनी शास्त्रीजी भारत माता के सच्चे सपूत थे.
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Profile of Lal Bahadur Shastri in Hindi
सुलझे हुए व्यक्ति थे पं. नेहरु (पुण्यतिथि पर विशेष)
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