Menu
blogid : 3738 postid : 162

पंजाब केसरी – लाला लाजपत राय

Special Days
Special Days
  • 1020 Posts
  • 2122 Comments

जीवन भर ब्रिटिश हुकुमत का सामना करते हुए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले पंजाब केसरी लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक अहम सिपाही थे. देश के लिए उनकी निष्ठा और देशभक्ति के कारण वह हमारी यादों में सदैव अमर है. आज महान लाला लाजपतराय जी की जयंती है. गरम दल का एक प्रमुख नेता होने के साथ साथ लाला लाजपत राय जी हमेशा ही देश को खुद से ऊपर मानते थे.


Lala Lajpat Rai Ji28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में लाला लाजपत राय का जन्म हुआ था. लाला लाजपतराय के माता पिता उन्हें प्रेम से लाजपत राय कहकर बुलाते थे. लाजपत राय के पिता जी वैश्य थे, किंतु उनकी माती जी सिक्ख परिवार से थीं. अलग अलग धर्म के होने के बाद भी दोनों एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह से समझते थे.


लाला लाजपतराय जी ने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कानून की उपाधि प्राप्त करने के लिए 1880 में लाहौर के ‘राजकीय कॉलेज’ में प्रवेश लिया. इस दौरान वे आर्य समाज के आंदोलन में शामिल हो गए. लालाजी ने कानूनी शिक्षा पूरी करने के बाद जगरांव में वकालत शुरू कर दी. इसके बाद उन्होंने हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की. स्वामी दयानंद सरस्वती के निधन के बाद लालाजी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एंग्लो वैदिक कॉलेज के विकास के प्रयास करने शुरू कर दिए.


इसी दौरान लालाजी कांग्रेस के प्रभाव में आए. हिसार में लालाजी ने कांग्रेस की बैठकों में भाग लेना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए. 1897 और 1899 में उन्होंने देश में आए अकाल में देश की तन, मन और धन से सेवा की. देश में आए भूकंप, अकाल के समय ब्रिटिश शासन ने कुछ नहीं किया. लाला जी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा की


अंग्रेजों ने जब 1905 में बंगाल का विभाजन कर दिया तो लालाजी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले की जमकर बगावत की. देशभर में उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को चलाने और आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई.


लाला लाजपतराय के जीवन में अहम पड़ाव तब आया जब वह 1917 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर गए और उन्होंने वहां इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका नाम से एक संगठन की स्थापना की. इस संगठन का उद्देश्य भारत से बाहर रहकर भारत के लिए काम करने का था. 1920 में जब वह भारत वापस आए तब तक वह एक नायक के रुप में उभर चुके थे. इसी साल कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में वह गांधी जी के संपर्क में आए और असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए.


लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक और विपिनचंद्र पाल को ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से जाना जाता है. इन नेताओं ने सबसे पहले भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग उठाई.


लाला लाजपतराय के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन पंजाब में जंगल में आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे पंजाब का शेर और पंजाब केसरी जैसे नामों से पुकारे जाने लगे. लालाजी ने अपना सर्वोच्च बलिदान साइमन कमीशन के समय दिया.


तीन फरवरी 1928 को जब साइमन कमीशन भारत पहुंचा तो उसके विरोध में पूरे देश में आग भड़क उठी. पूरे देश में जगह जगह इस कमीशन के खिलाफ आवाजें उठाई गई. 30 अक्टूबर, 1928 में लालाजी ने लाहौर में ‘साइमन कमीशन’ के विरुद्ध आन्दोलन का नेतृत्व किया और अंग्रेज़ों का दमन सहते हुए लाठी प्रहार से घायल हो गए. इसी आघात के कारण 17 नवम्बर 1928 को उनका देहान्त हो गया. अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा, ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगी।’ और इस चोट ने कितने ही ऊधमसिंह और भगतसिंह तैयार कर दिए, जिनके प्रयत्नों से हमें आजादी मिली.


लाला जी को श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने कहा था, “भारत के आकाश पर जब तक सूर्य का प्रकाश रहेगा, लालाजी जैसे व्यक्तियों की मृत्यु नहीं होगी. वे अमर रहेंगे.”

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh