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आजादी की लड़ाई का इतिहास क्रांतिकारियों के विविध साहसिक कारनामों से भरा पड़ा है और ऐसे ही एक वीर सेनानी थे लाला लाजपत राय जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. लाला लाजपत राय भारत में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. कांग्रेस के गरम दल के एक अहम सिपाही रहे लाला लाजपत राय का जीवन एक आदर्श जीवन है.
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लाला लाजपत राय आजादी के मतवाले ही नहीं बल्कि एक महान समाज सुधारक और महान समाजसेवी भी थे. यूं तो कांग्रेस हमेशा गांधीजी के नरम सिद्धांतों पर चला लेकिन कांग्रेस में एक दल ऐसा भी था जिसे लोग गरम दल मानते थे और इसी के एक अग्रणी नेता थे लाला लाजपत राय. लाला लाजपत राय गरम मिजाज के भी थे लेकिन इसके बावजूद भी गांधीवादियों के दिल में उनके लिए अपार स्नेह और सम्मान था. यूं तो आजादी से पहले कांग्रेस को हमेशा से ही क्रांतिकारियों के विपरीत खड़ा देखा गया है लेकिन लाला लाजपत राय ऐसे शख्स थे जो गांधीवादियों के साथ-साथ भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों के दिल में वास करते थे और यह क्रांतिकारी उनका बड़ा सम्मान करते थे. और सिर्फ सम्मान भी सिर्फ जुबां से नहीं दिल से तभी तो लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए भगतसिंह और राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों ने अपनी जान लगा दी.
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लाला लाजपत राय का जीवन
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के मोगा जिले में हुआ था. पंजाब केसरी लाला लाजपत राय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे. 1928 में इन्होंने साइमन कमीशन के खिलाफ लाहौर में एक प्रदर्शन में भाग लिया था. इस दौरान वे बर्बर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा किए गए लाठी चार्ज में बुरी तरह घायल हो गए थे. 17 नवम्बर, 1928 को इस महान नेता ने पार्थिव शरीर त्याग दिया.
कब मिली पंजाब केसरी की उपाधि
लाला जी ने 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में भाग लिया. वह गांधी जी द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में कूद पड़े जो सैद्धांतिक तौर पर रौलेट एक्ट के विरोध में चलाया जा रहा था. लाला लाजपत राय के नेतृत्व में यह आंदोलन पंजाब में जंगल में आग की तरह फैल गया और जल्द ही वह पंजाब का शेर या पंजाब केसरी जैसे नामों से पुकारे जाने लगे.
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शेर-ए-पंजाब लाला लाजपतराय: जयंती विशेषांक
साइमन कमीशन
30 अक्टूबर, 1928 को इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय आयोग लाहौर आया. उसके सभी सदस्य अंग्रेज थे. पूरे भारत में भी इस कमीशन का विरोध हो रहा था क्यूंकि सभी चाहते थे कि साइमन कमीशन में भारतीय प्रतिनिधि भी होना चाहिए. इस दौरान पंजाब में इस कमीशन का विरोध करने वाले दल की अगुवाई लाला लाजपत राय ने की. पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में बाल-वृद्ध, नर-नारी हर कोई स्टेशन की तरफ बढ़ते जा रहे थे. फिरंगियों की निगाह में यह देशभक्तों का गुनाह था.
साइमन कमीशन का विरोध करते हुए उन्होंने ‘अंग्रेजों वापस जाओ’ का नारा दिया तथा कमीशन का डटकर विरोध जताया. इसके जवाब में अंग्रेजों ने उन पर लाठी चार्ज किया. अपने ऊपर हुए प्रहार के बाद उन्होंने कहा कि उनके शरीर पर लगी एक-एक लाठी अंग्रेजी साम्राज्य के लिए कफन साबित होगी. लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी साम्राज्य का मुकाबला करते हुए अपने प्राणों की बाजी लगाई. अपने अंतिम भाषण में उन्होंने कहा, ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफन की कील बनेगी’ और इस चोट ने कितने ही ऊधमसिंह और भगतसिंह तैयार कर दिए, जिनके प्रयत्नों से हमें आजादी मिली.
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