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मोहम्मद रफी: इनकी गोल्डेन आवाज ने भाषाओं की सीमा को तोड़ा

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जब कोई गायक किसी भाषा में अपनी आवाज देता है तो ऐसा माना जाता है कि उस गायक को अपनी भाषा की गहरी समझ और जानकारी है लेकिन हिन्दी सिनेमा के लीजेंडरी सिंगर मोहम्मद रफी की तरह शायद ही कोई ऐसा गायक होगा जिन्होंने अपनी भाषा में बेहतरीन गाने तो गाये ही दूसरी भाषा में भी बिना कोई ज्ञान और जानकारी के अपनी गोल्डन आवाज दी.


मोहम्मद रफी जन्म हुआ था. महज 13 साल की उम्र से सार्वजनिक मंच पर गाने की शुरुआत करने वाले इस विरले गायक ने 13-14 भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, स्पैनिश, डच और पारसी भाषा में भी गाने गाए.  मोहम्मद रफी ने संगीत के लिए कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली. रफी साहब को संगीत का शौक अपने मोहल्ले में आने वाले एक फकीर के गाने सुनकर लगा था. फकीर के गाने रफी को अच्छे लगते थे. वे उसके गानों की नकल करने की कोशिश करते थे. धीरे-धीरे उनके बड़े भाई हमीद ने उनके अंदर छिपे असाधारण गायक को पहचाना और उन्हें संगीत की तालीम दिलाई.


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मोहम्मद रफी को गाने के अलावा अगर किसी चीज का शौक नहीं था. वैसे तो उनका अधिकतर समय गाने और रिकॉर्डिंग में बीतता था लेकिन जब कभी उन्हें मौका मिलता तो वह बैडमिंटन खेलना पसंद करते थे. 6 बार फिल्म फेयर अवार्ड हासिल करने वाले पद्मश्री मोहम्मद रफी ने दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, धर्मेद्र, राजेश खन्ना समेत तमाम बड़े अभिनेताओं के लिए गाया.


रफी साहब ने 43 साल पहले जब फिल्म ‘पगला कहीं का’ के लिए गाया था तो उन्हें पता नहीं होगा कि इसे वे अपने लिए गा रहे हैं. आज उन्हें इस दुनिया से विदा हुए 33 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन यह सच है कि लोग उन्हें आज भी भुला नहीं पा रहे. जिस तरह रफी साहब के गीत आज भी उसी आनंद के साथ गुनगुनाए जाते हैं, लगता ही नहीं कि उन्हें बिछुड़े हुए इतना लंबा अरसा हो गया है.


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