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नए साल का स्वागत हम चाहे कितने ही हर्ष और उल्लहास से कर लें लेकिन जब तक कोई त्योहार नहीं आता, हम भारतीयों का मन खुशी से नहीं भरताअ. तो हमारी इसी कामना को पूर्ण करते हुए साल के शुरू में सबसे पहला पर्व आता है ‘लोहड़ी’ का. पंजाब की खुशबू और ढोल के नगाड़ों से भरपूर यह त्योहार, हमारे दिल के कोने तक खुशियों की बौछार छोड़ कर जाता है. यह भारत में साल का पहला अहम पर्वमाना जाता है.
वैसे तो मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाने वाला यह त्यौहार मूलत: पंजाब का है लेकिन आज यह पंजाब से बाहर निकलकर हिंदुस्तान के कोने-कोने तक पहुंच गया है. ज्यादातर इसका रंग आप उत्तर भारत में काफी ज्यादा देख सकते हैं. लोहड़ी के दिन पंजाब में वर्षों से पतंगें उड़ाने की प्रथा भी चली आ रही है. वहीं दूसरी ओर बाकी राज्यों में इसे ढोल व नाच-गाने के साथ जश्न के रूप में मनाया जाता है.
साल की शुरुआत लोहड़ी पर्व के साथ
उत्तर से दक्षिण तक
पंजाब में गेहूं की फसल अक्टूबर में बोई जाती है और मार्च में काटी जाती है. लोहडी पर्व तक यह पता चल जाता है कि फसल कैसी होगी, इसलिए लोहड़ी के समय लोग उत्साह से भरे रहते हैं. इस त्यौहार की रात्रि को सभी लोग अपने घरों के बाहर व आंगन में इकट्ठे होकर मिलजुल कर अग्नि प्रज्वलित करते हैं तथा उसमें तिल, मूंगफली, फूल, मखाने आदि डालकर इस पर्व को अत्यधिक जोश व उल्लास के साथ मनाते हुए नजर आते हैं. श्रद्धा व विश्वास के प्रतीक इस त्यौहार को आसाम मे बिहू, केरल में पोंगल तथा उतर प्रदेश व बिहार में मकर संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है.
नए शादी-शुदाओं के लिए होता है खास
लोहड़ी का पर्व उन जोड़ों और बच्चों के लिए बेहद अहम होता है जिनकी पहली लोहड़ी होती है. ऐसे जोड़ों को लोहड़ी की पवित्र आग में तिल डालने के बाद घर के बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना होता है. साथ ही लोहड़ी की रात गन्ने के रस की खीर बनती है जो अगले दिन माघी के दिन खायी जाती है. इस दिन कई जगह सामूहिक रूप से भी लोहड़ी के गीत भांगड़ा-गिद्धा आदि होते हैं.
मात्र दिखावा भर रह गया है
आज के बिजी युवाओं के लिए लोहड़ी मात्र एक पर्व बनकर रह गया है जिसे बस वह “मना” लेने की औपचारिकता भर निभाते हैं लेकिन भले ही समाज में पारंपरिक ढंग से मनाए जाने वाले पर्व लोहड़ी के रीति रिवाजों में समाज के बदलते परिवेश के चलते काफी बदलाव आया है, लेकिन अब भी अधिकतर परिवारों में परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है.
पंजाब की लोक संस्कृति की झलक – लोहड़ी
गुम होते लोकगीत
लोहड़ी के पर्व की दस्तक के साथ ही पहले “सुंदर मुंदरिये हो तेरा कौन विचारा, दुल्ला भट्टी वाला, दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी” आदि लोकगीत गाकर घर-घर लोहड़ी मांगने का रिवाज था, परंतु समय के साथ-साथ यह रिवाज लुप्त होता जा रहा है. हालांकि इस समय भी लोग लोहड़ी पर्व मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, परंतु नई युवा पीढ़ी अपनी प्रथा से वंचित होती जा रही है. अब गलियों-बाजारों में लोहड़ी नहीं मांगी जाती. इसका स्वरूप अब डीजे की धुनों ने ले लिया है.
लोहड़ी का निम्नलिखित गीत काफी मशहूर है जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है:
सुंदर, मुंदरिये हो,
तेरा कौन विचारा हो,
दुल्ला भट्टी वाला हो,
दुल्ले धी (लड़की) व्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो.
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