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Lyricist Gulzar: आज की संगीत पीढ़ी भी इन्हें सिर आंखों पर बैठाती है

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जब हम आज के भारतीय सिनेमा को देखते हैं तो हमें चारों तरफ वह पीढ़ी दिखाई देती है जिसके अभिनय, निर्देशन और लेखन के अंदाज में पहले के मुकाबले बहुत ही बड़ा अंतर दिखाई देता है. ऐसे में आज के इस फिल्मी दुनिया में उन लोगों के लिए जगह नहीं रह जाती जो पुराने तरीके से अपने हुनर को प्रदर्शित करते आ रहे हैं लेकिन भारतीय फिल्म उद्योग में एक ऐसा गीतकार है जिसके द्वारा लिखे हुए गानों को लोग आज भी पसंद करते हैं. यहां बात हो रही गीतकार गुलजार की.


गुलजार के गाने

बीते कुछ सालों में उनके लिखे हुए गानों जैसे फिल्म ओमकारा से ‘बीडी जलईलै जिगर से पिया’, फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर से ‘जय हो’ तथा फिल्म इश्किया से ‘दिल तो बच्चा है जी’ को आज भी फिल्म के नाम से नहीं बल्कि गुलजार के लिखे हुए गानों से याद किया जाता है. उन्होंने अपने लिखने के अंदाज को उसी रूप में ढाल लिया है जिस रूप में आज का युवा गाने को सुनना चाहता है. गाने तो हर कोई लिख लेता है लेकिन जो बात गुलजार के गीतों में है शायद ही किसी और में मिलेगी. यही वजह है कि आज भी लोग उनके लिखे हुए गानों का उसी तरह आनंद लेते हैं जैसे पहले लेते थे.


गुलजार की जोड़ी

बतौर गीतकार गुलजार की जोड़ी आर. डी. बर्मन, एआर रहमान और विशाल भारद्वाज जैसी हस्तियों के साथ ज्यादा कामयाब रही. गुलजार के गीतों को धुन में बिठाने में अच्छी-खासी मेहनत लगती थी. संगीतकार आर. डी. बर्मन मानते थे कि गुलजार के अजीबो-गरीब कलाम की ट्यून सेट करना काफी मुश्किल होता था क्योंकि वह गीत कम, गद्य-गीत ज्यादा लिखते हैं, उनमें विचार प्रधान होते हैं. आर. डी. बर्मन ने गुलजार के साथ कई सुपरहिट गाने भी दिए.

गुलजार ने ऑस्कर विजेता ए.आर. रहमान के साथ मिलकर भी कई लोकप्रिय गाने दिए. उन्होंने रहमान के साथ मिलकर ‘दिल से’ ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ और ‘गुरु’ जैसी बड़ी फिल्मों में गाने दिए. विशाल भारद्वाज और गीतकार गुलजार की जोड़ी ‘माचिस’, ‘कमीने’ और ‘ओमकारा’, ‘इश्किया’ जैसी फिल्मों में बेहतरीन गाने दे चुकी है.


गुलजार का शुरुआती जीवन

गुलजार का जन्म पाकिस्तान के झेलम जिले के दीना गांव में 18 अगस्त, 1936 को हुआ था. उनके बचपन का नाम संपूरण सिंह कालरा था. बचपन से ही उन्हें शेरो-शायरी और लेखन का शौक था. साल 1947 में विभाजन के बाद उनका परिवार अमृतसर चला आया और यहीं से शुरु हुई गुलजार के सपनों की उड़ान. अपने सपने पूरे करने वह मायानगरी पहुंचे. शुरुआती दिनों में उन्हें काफी स्ट्रगल करना पड़ा और जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए मोटर गैराज में एक मैकेनिक की नौकरी भी करनी पड़ी.


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