Menu
blogid : 3738 postid : 3551

महदेवी वर्मा: इन्होंने वंचित तबके की औरतों का दर्द समझा

Special Days
Special Days
  • 1020 Posts
  • 2122 Comments

mahadevi vermaआज भले ही महिलाएं अपने आप को हर मोर्चे पर पुरुषों की अपेक्षा बेहतर साबित कर रही हों, पढ़-लिखकर नौकरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हों लेकिन कहीं न कहीं उन्हें आज भी वंचित होने का दर्जा प्राप्त है. आज भी उन्हें वह दर्जा नहीं मिला जिससे समाज में पुरुष आधारित सोच को मिटाया जा सके. लेकिन अपने लेखन में नारी की वेदना और आत्मपीड़ा की अभिव्यक्ति के साथ नारी स्वतंत्रता पर जोर देने वाली महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma Profile in Hindi) ने अपने लेखन के माध्यम से इस तरह की सोच को मिटाने की पूरी कोशिश की.


Read: क्या टीम के लिए बोझ बन गए सचिन ?


अपनी व्यथा कथा को भारतीय महिलाओं को केन्द्र में स्थापित कर महादेवी वर्मा ने अपने अनुभवों का सहारा लेकर उसको जागृत करने का प्रयास किया. महादेवी अपने लेखन के माध्यम से भारतीय नारी की सदियों से चली आ रही पुरातन परम्पराओं को तोड़कर आगे आने को प्रेरित करती थीं. वह नारी देह को प्रदर्शन की वस्तु समझे जाने को निकृष्ट मानती थीं.


नारी जीवन की विडम्बनाओं पर चिंतन करने वाली महादेवी वर्मा स्त्री को लेकर ऐसे समय में चिंतन करती थीं जब भारत में तो क्या पश्चिम में भी साहित्य की स्वतंत्र स्त्री दृष्टि पर कोई खास बहस नहीं हो रही थी. उनका मानना था पुरुष के द्वारा नारी का चरित्र अधिक आदर्श बन सकता है परन्तु अधिक सत्य नहीं, विकृति के अधिक निकट पहुंच सकता है यथार्थ के अधिक समीप नहीं.


महादेवी वर्मा का नारियों के प्रति चिंतन की प्रामाणिकता उनकी ‘श्रृंखला की कड़ियां’ (1942) निबंध संग्रह में संगृहीत निबंधों में देखा जा सकता है, जिसमें भारतीय नारी विषयक चिंतन व्यवस्थित है. इन निबंधों में युद्ध और नारी, नारीत्व का अभिशाप, आधुनिक नारी, हिन्दू स्त्री का पतीत्व, स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न प्रमुख है. इनमें भारतीय नारी की परवशता का रेखांकन दृष्टिगोचर होता है, किन्तु उन्होंने जिन सवालों को उठाया है, वहां आक्रोश नहीं है, वरन एक प्रकार की शालीनता है. इससे स्पष्ट होता है कि वे भारतीय समाज की विकृतियों को सृजन के द्वारा मिटाना चाहती थी, जिनसे भारतीय नारी प्रारंभ से ही अनेक कठिनाइयों का सामना कर रही है.


जब महादेवी स्त्री के अधिकारों की बात करती थी तब सवाल यह उठता था कि वह महिलाओं के लिए किस तरह के अधिकार चाहती हैं. स्त्री की स्वतंत्रता की चाह परिवार को तोड़ने की चाह नहीं हो सकती, उसे जोड़ने की होनी चाहिये. उनका मानना था कि जोड़ने के इस कार्य में पुरुष की भागीदारी उतनी ही है जितनी स्त्री की है. संवैधानिक रूप में स्त्री बिल्कुल पुरुष के बराबर है.


महिलाओं के सामाजिक अधिकारों की पैरवी करते हुए महादेवी का मानना था कि जो बंधन पुरुषों की स्वेच्छाचारिता के लिए इतने शिथिल होते हैं कि उन्हें बंधन का अनुभव ही नहीं होता और वे ही बंधन स्त्रियों को दासता में इस प्रकार कस देते हैं कि उनकी सारी जीवनी-शक्ति शुष्क और जीवन नीरस हो जाता है. स्त्री स्वतंत्रता की वकालत करते हुए महादेवी वर्मा का स्पष्ट मानना था कि “स्त्री को किसी भी क्षेत्र में कुछ करने की स्वतंत्रता देने के लिये पुरुष के विशेष त्याग की आवश्यकता होगी.


स्त्री को एक वंचित के रूप देखने वाली महादेवी जी की रचनाओं पर यदि गौर करें तो उनमें स्त्री जीवन पर नारी लेखिका की सहानुभूति मात्र ही नहीं है वरन एक गम्भीर समाजशास्त्रीय विश्लेषण भी है.


Read Also:

Mahadevi Verma Profile in Hindi

शब्दों में रंग लेकिन जिंदगी रंगविहीन


Tag: mahadevi verma, mahadevi verma stories, mahadevi verma in hindi, mahadevi verma information, mahadevi verma poems in hindi, महदेवी वर्मा, महादेवी वर्मा की कविताएं.


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh