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Dr. B R Amedkar Vision for Dalit :गांधी जी के प्रखर विरोधी थे बाबा भीमराव

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भारत में गांधी जी को “राष्ट्रपिता” कहा जाता है. यहां कई घरों में तो गांधी जी को भगवान तक का दर्जा दिया जाता है. लेकिन जिस देश में भगवान को भी लोग गालियां देते हों वहां गांधी जी जैसे इंसान को लोग भला कैसे छोड़ सकते हैं. चाहे एक समय देश का बच्चा-बच्चा गांधी जी का अनुयायी रहा हो लेकिन उस समय भी ऐसे लोग मौजूद थे जो गांधी जी का प्रखर विरोध करते थे और वह भी दबी जुबां में नहीं बल्कि बुलंद आवाज में अपनी बगावत को दुनिया के सामने रखते थे. उनके ऐसे ही एक विरोधी थे भारत के संविधान निर्माता बाबाभीमराव अंबेडकर.

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बाबा भीमराव अंबेडकर ने आजादी से पहले और उसके बाद भी मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुख्यत: मोहनदास करमचंद गांधी की कई बार खुलेआम आलोचना की. उन्होंने उन पर अस्पृश्य समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाया.  दरअसल महात्मा गांधी जी अछूत समझे जाने वाले लोगों को ‘हरिजन’ कहकर संबोधित करते थे जिससे भीमराव अंबेडकर कभी सहमत नहीं हुए. उन्होंने अपने अनुयायियों को गांधी जी की हरिजन बस्तियां छोड़कर शहर जाने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया.

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B R Ambedkarबाबा भीम राव अंबेडकर जी का जीवन

अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्में डॉ. भीमराव अम्बेडकर जन्मजात प्रतिभा संपन्न थे. डॉ. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था. इनका परिवार महार जाति से संबंध रखता था जिन्हें लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे. लेकिन भीमराव अंबेडकर जी का बचपन से ही शिक्षा के प्रति रुझान था.


बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के पश्चात आर्थिक कारणों से वह सेना में भर्ती हो गए. उन्हें लेफ्टिनेंट के पद पर बड़ौदा में तैनाती मिली. नौकरी करते उन्हें मुश्किल से महीना भर ही हुआ था कि एक दिन अचानक पिता की बीमारी का समाचार मिला. वह अपने अधिकारी के पास गए और अवकाश स्वीकृत करने की प्रार्थना की. अधिकारी ने कहा कि एक वर्ष की सेवा से पूर्व किसी दशा में अवकाश स्वीकृत नहीं किया जा सकता. सुनकर भीमराव असमंजस में पड़ गए. भीमराव ने पुन: अनुनय-विनय की, किंतु नियमों के अनुसार अधिकारी उन्हें अवकाश नहीं दे सकता था. विवश होकर भीमराव ने त्यागपत्र लिखकर वर्दी उतार दी. अधिकारी के पास अन्य कोई विकल्प नहीं था. उसने उनका त्यागपत्र स्वीकार कर लिया. भीमराव पिता की सेवा के लिए अंतिम समय में उनके पास पहुंच गए. पिता के निधन के पश्चात अपने मित्र की प्रेरणा और महाराजा बड़ौदा की आर्थिक मदद से भीमराव उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए. वहां के कोलंबिया विश्व विद्यालय में प्रवेश लेकर उन्होंने अपनी अध्ययनशीलता का परिचय दिया. उन्होंने अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र में एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. अर्थशास्त्र में शोध तथा कानून की पढ़ाई के लिए भीमराव इंग्लैंड गए. हालांकि वहां उन्हें पग-पग पर अपमान का सामना करना पड़ा.


1917 में अंबेडकर जी भारत लौटे और देश सेवा के महायज्ञ में अपनी आहुति डालनी शुरू की. यहां आकर उन्होंने मराठी में मूक नायक नामक पाक्षिक पत्र निकालना शुरू किया साथ ही वह ‘बहिष्कृत भारत’ नामक पाक्षिक तथा ‘जनता’ नामक साप्ताहिक के प्रकाशन तथा संपादन से भी जुड़े. उन्होंने विचारोत्तेजक लेख लिखकर लोगों को जगाने का प्रयास किया. देश के स्वतंत्र होने पर उन्हें कानून मंत्री बनाया गया.

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संविधान प्रारूप समिति‘ के अध्यक्ष के रूप में वह भारतीय संविधान के निर्माता बने. अंबेडकर द्वारा तैयार किया गए संविधान पाठ में संवैधानिक गारंटी के साथ नागरिकों को एक व्यापक श्रेणी की नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा प्रदान की जिनमें, धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया. अंबेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया. 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी.


आज के परिवेश में अंबेडकर जी

आज कई लोग भारत में फैली जातिगत खाई और आरक्षण के मतभेद को अंबेडकर जी की उपज मानते हैं लेकिन इतिहास पर अगर नजर घुमाई जाए तो यह बात साफ होती है कि अंबेडकर जी ने पिछड़ी जातियों और दलितों के उत्थान के लिए बेशक विशेष कदम उठाए थे लेकिन वह इस बात के भी समर्थक थे कि समय के साथ जब यह पिछड़ी जातियां अन्य जातियों के साथ कदम से कदम मिला लेंगी तो इस विशेष आरक्षण आदि को खत्म कर दिया जाएगा लेकिन भारतीय नेताओं ने अपनी राजनीति के चूल्हे पर रोटियां सेंकने के लिए इस आरक्षण की आग को बुझने नहीं दिया.


भारत को संविधान देने वाले इस महान नेता ने 06 दिसंबर, 1956 को देह-त्याग दिया. आज हमें अगर कहीं भी खड़े होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने की आजादी है तो यह इसी शख्स के कार्यों से मुमकिन हो सका है. भारत सदैव बाबा भीमराव अंबेडकर का कृतज्ञ रहेगा.


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