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आखिर क्यूं हुई गांधी जी की हत्या

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भारत के सभी स्वतंत्रता सेनानी हमारी नजरों में बेहद आदर का स्थान रखते हैं और इन सबमें से हम सबसे अधिक आदर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का करते हैं. देश की आजादी के लिए खुद को कुर्बान करने वाले इस महापुरुष की जिस तरह से हत्या हुई उसकी शायद किसी को भी उम्मीद ना थी. देश को हमेशा अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ाने वाले महापुरुष को मृत्यु हिंसा के द्वारा प्राप्त हुई. आज कई लोग पाकिस्तान के मुद्दे पर गांधी जी को गालियां देते हैं और उनकी हत्या को सही ठहराते हैं तो ऐसे मनुष्यों की कम सोच और समझ पर दयाभाव उमड़ते हैं. आज हम गांधी जी मृत्यु से जुड़े कुछ तथ्यों पर विचार करेंगे.


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Mahatma Gandhi and Kasturba Gandhi: महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी

अकसर लोग जब गांधी जी की महानता का बखान करते हैं तो वह उस नारी को पूरी तरह भुला देते हैं जिनके बिना शायद महात्मा गांधी महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) जी आज उस मुकाम पर ना होते जहां वह हैं. यह नारी है उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का. महात्मा गांधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी के बारे में यह सर्वविदित है कि वह धर्मपरायण महिला थीं और जीवनसाथी की परिभाषा को पूर्णता प्रदान करते हुए जिंदगी के हर मोड़ पर उन्होंने बापू का साथ निभाया था. मात्र 13 साल की उम्र में उनका मोहन दास कर्मचंद गांधी से विवाह हो गया. एक अच्छी पत्नी की तरह कस्तूरबा हमेशा अपने पति के साथ खड़ी नजर आईं, भले ही मोहनदास के कुछ विचारों से वह सहमति नहीं रखती थीं. कौन भूल सकता है कि जब गांधी ने 1906 में ब्रह्मचर्य का व्रत रखा था तो कस्तूरबा ने इसका कतई विरोध नहीं किया था. कस्तूरबा गांधी ने ही गांधी के आश्रम के अधिकतर कार्यों को संभाला हुआ था. 22 फरवरी, 1944 को उन्हें भयंकर दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा.

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गांधी जी की हत्या

अगस्त 1947 में देश को आजादी मिली और आजादी के एक वर्ष के भीतर ही 30 जनवरी, 1948 को एक प्रार्थना सभा के दौरान नाथू रामगोडसे नामक एक कथित एक हिंदू राष्ट्रवादी ने गोली मारकर महात्मा गांधी की हत्या कर दी.


गांधी जी की मौत की वजह कई लोग गांधी जी का मुस्लिमों का समर्थन करने और पाकिस्तान के लिए 55 करोड़ रुपए सहायता राशि देने के लिए जिद्द करना मानते हैं. इतिहासकार मानते हैं कि राष्ट्रवादी हिंदुओं को गांधी जी का पाकिस्तान मुद्दे पर अधिक जोर ना देना और मुस्लिमों पर रियायत बरतने का हिसाब-किताब बहुत बुरा लग रहा था. ऐसे तथाकथित राष्ट्रवादी हिन्दुओं की नजर में पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार और भारत पर हमला करने वालों को 55 करोड़ देने के लिए जिद्द करना गांधी जी का शैतानी रूप सामने रखता था और सिर्फ इसी वजह से ही महात्मा गांधी की मौत का षडयंत्र रचा गया.


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सर्वविदित है कि आजादी की लड़ाई के आखिरी समय और आजादी के बाद देश में जातिवादी आंदोलन चरम पर थे. अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति को सभी जगह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था. ऐसे में कुछ हिंदूवादी नेताओं के दिलों में यह बात घर कर गई कि मुसलमानों ने भारत का विभाजन करवाया, फिर भी मुसलमानों, उनके संगठन मुस्लिम लीग तथा नवनिर्मित पाकिस्तान के प्रति गांधीजी का नरम रुख अपनाना हिन्दुओं से भेदभाव है. अगर पाकिस्तान अपने देश से हिंदुओं की लाशें काट-काट कर भेज रहा है तो भारत को भी मुस्लिमों को मारने का अधिकार होना चाहिए था. लेकिन यह सब गांधी जी की अहिंसा की नीति के खिलाफ था. जिस देश ने उन्हें राष्ट्रपिता का दर्जा दिया था उसी देश के दो बच्चों को वह आपस में कैसे लड़ने दे सकते थे?


सावरकर (Vir Vinayak Sarvarkar), हेडगेवार, गोलवलकर (RSS Founder Guru Golwalkar) जैसे लोगों ने अकसर गांधी जी पर पाकिस्तान के विभाजन के विरुद्ध आमरण अनशन ना करने का अरोप लगाया लेकिन सच तो यह है कि इनमें से ही अधिकतर लोगों ने भी इस विभाजन को रोकने के लिए कुछ नहीं किया. यहां यह कहना कि गांधी जी चाहते तो पाकिस्तान का विभाजन रुक सकता था गलत नहीं होगा लेकिन हालातों और उस समय गांधी जी की स्थिति को देखते हुए शायद हमें किसी भी अनुमान पर जाने से पहले सोचना चाहिए. गांधी जी आजादी चाहते थे, उनकी राय में सभी को आजाद होने का अधिकार था किंतु यह आजादी जिस माध्यम से प्राप्त हो उसका परिष्कृत होना आवश्यक था.


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