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स्वामी महावीर : त्याग और अध्यात्म की ज्योति – Mahavir Jayanti

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भगवान ने हमें जीवन तो दिया है लेकिन यह उपकार करने के साथ उन्होंने मानव को कई यातनाओं का बोझ भी दिया है जो हमें बार-बार यह याद दिलाता है कि जीवन फूलों की सेज नहीं हैं. लेकिन कभी-कभी मानवीय यातनाएं और परेशानियां इतनी ज्यादा हो जाती हैं कि जिंदगी बोझ बन जाती है. जिन्दगी की इन्हीं परेशानियों से दूर रहने के लिए ऋषि मुनि भगवान और शांति की खोज में भौतिक जीवन से दूर हो जाते हैं. कुछ जिंदगी भर भौतिक जीवन से परे रह शांति की खोज करते हैं और भगवान को ही अपना सब कुछ बना लेते हैं तो कुछ खुद शांति प्राप्त करने के बाद अन्य लोगों को भी उसी परम शांति की तरफ जाने का संदेश देते हैं.


Mahavir Jayanti ऐसे ही एक महान व्यक्ति थे भगवान महावीर (Vardhaman Mahavir) जिन्होंने भौतिक जीवन की तमाम सुविधाएं होने के बाद भी अपने जीवन में त्याग और ध्यान के जरिए परम शांति को महत्व दिया. एक राजा के घर में पैदा होने के बाद भी महावीर जी ने युवाकाल में अपने घर को त्याग कर वन में जाकर भगवान को पाने का रास्ता चुना.


महावीर जी (Vardhaman Mahavir) का जन्म बिहार (Bihar) राज्य के वैशाली (Vaishali) जिले के समीप हुआ था. चौबीस ‍तीर्थंकरों में अंतिम तीर्थंकर महावीर (Vardhaman Mahavir) का जन्मदिवस प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है. उनका जन्म राजा सिद्दार्थ और रानी त्रिशला के घर में हुआ था. महावीर (Vardhaman Mahavir) जब गर्भ में थे तभी कई विद्वानों ने इस बात के संकेत दिए थे कि महावीर राज्य के लिए सुख शांति और वैभव लेकर आएंगे और यह सब बातें महावीर के जन्म के बाद सिद्ध भी हो गईं. वर्धमान महावीर (Vardhaman Mahavir) जैसे जैसे बढ़े उनका ध्यान समाज की परेशानियों और समाज में फैली गरीबी, दुखों के सागर और अन्य चीजों की तरफ ज्यादा खिंचने लगा.


Bhagwan-Mahavirमहावीर (Vardhaman Mahavir) जब बडे हुए तो उनका विवाह  कलिंग नरेश की कन्या यशोदा किया गया लेकिन 30 वर्ष की उम्र में अपने जेष्ठबंधु की आज्ञा लेकर इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और तपस्या करके कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया. महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिमार्जित करके उसे जैन दर्शन का स्थायी आधार प्रदान किया. महावीर (Vardhaman Mahavir) ऐसे धार्मिक नेता थे, जिन्होंने राज्य का या किसी बाहरी शक्ति का सहारा लिए बिना, केवल अपनी श्रद्धा के बल पर जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा की. आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है. इनके अनेक नाम हैं- अर्हत, जिन, निर्ग्रथ, महावीर, अतिवीर आदि. इनके ‘जिन’ नाम से ही आगे चलकर इस धर्म का नाम ‘जैन धर्म’ पड़ा.


महावीर जी (Vardhaman Mahavir) ने जो आचार-संहिता बनाई वह है—

1. किसी भी जीवित प्राणी अथवा कीट की हिंसा न करना,

2. किसी भी वस्तु को किसी के दिए बिना स्वीकार न करना,

3. मिथ्या भाषण न करना,

4. आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना,

5. वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करना.


वर्धमान महावीर जी ( Vardhaman Mahavir) ने संसार में बढ़ती हिंसक सोच, अमानवीयता को शांत करने के लिए अहिंसा के उपदेश प्रसा‍रित किए. उनके ज्ञान बेहद सरल भाषा में थे जो आम जनमानष को आसानी से समझ आ जाते थे.


भगवान महावीर ने इस विश्व को एक महान संदेश दिया कि “जियो और जीने दो. ”

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