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हॉकी को भारत का राष्ट्रीय खेल माना जाता है. इस बात से देश के करोड़ों लोग जरूर असहज महसूस करते होंगे. ऐसा इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय खेल का दर्जा उसी खेल को मिलता है जिसकी पकड़ अपने खेल पर पूरी तरह से हो. हॉकी खेल की जो आज स्थिति है उसे देखकर ऐसा लगता है कि भारत जैसे इतने बड़े देश में क्या कोई ऐसा खिलाड़ी नहीं है जो भारतीय हॉकी टीम को पुरानी स्थिति में ले आए. पुरानी स्थिति का मतलब उस दौर से है जिस दौर में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद (Dhyan Chand) पैदा हुए थे.
अगर क्रिकेट में लोग सर डॉन ब्रैडमैन को सबसे बेहतर खिलाड़ी मानते हैं और टेनिस में रॉड लेवर जैसा कोई नहीं हुआ तो हॉकी में कुछ ऐसा ही स्थान ध्यानचंद को हासिल है. ओलंपिक खेलों में 101 गोल दागने का जो रिकॉर्ड ध्यानचंद (Dhyan Chand) बनाकर गए हैं उसे तोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
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राष्ट्रीय खेल दिवस-National Sports Day
राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त को हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद (Dhyan Chand) की जयंती के दिन मनाया जाता है. इसी दिन उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति के द्वारा विभिन्न पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं, जिनमें राजीव गांधी खेल-रत्न पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रमुख हैं. इस अवसर पर खिलाड़ियों के साथ-साथ उनकी प्रतिभा निखारने वाले कोचों को भी सम्मानित किया जाता है. राष्ट्रीय खेल दिवस के दिन देश भर में कई खेल टूर्नामेंटों का भी आयोजन किया जाता है.
ध्यानचंद का कीर्तिमान- Dhyan Chand Achievements
ध्यानचंद ने तीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया. 1928 के ओलंपिक फाइनल में भारत हॉलैंड को 3-0 से हराकर चैंपियन बना, जिसमें 2 गोल ध्यानचंद ने दागे थे. 1932 के लॉस एंजिल्स में भारत ने अमेरिका को 24-1 से रौंदा था. इस ओलंपिक में भारत के कुल 35 गोलों में से 19 गोलों पर ध्यानचंद का नाम अंकित था तो 1936 बर्लिन ओलंपिक में भारत के कुल 38 गोलों में से 11 गोल ध्यानचंद ने दागे थे. ध्यानचंद (Dhyan Chand) ने ओलंपिक खेलों में 101 गोल और अंतरराष्ट्रीय खेलों में 300 गोल दाग कर एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया जिसे आज तक कोई तोड़ नहीं पाया है.
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मेजर ध्यान चंद का जीवन-Dhyan Chand Life
मेजर ध्यान चंद का जन्म 29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद (उत्तर-प्रदेश) में हुआ था. चौदह वर्ष की उम्र में उन्होंने पहली बार हॉकी स्टिक अपने हाथ में थामी थी. सोलह साल की आयु में वह आर्मी की पंजाब रेजिमेंट में शामिल हुए और जल्द ही उन्हें हॉकी के अच्छे खिलाड़ियों का मार्गदर्शन प्राप्त हो गया जिसके परिणामस्वरूप ध्यानचंद के कॅरियर को उचित दिशा मिलने लगी. आर्मी से संबंधित होने के कारण ध्यानचंद को मेजर ध्यानचंद (Dhyan Chand) के नाम से पहचान मिलने लगी. कैंसर जैसी लंबी बीमारी को झेलते हुए वर्ष 1979 में मेजर ध्यान चंद का देहांत हो गया.
चांद से ध्यानचंद
मेजर ध्यानचंद का नाम हॉकी की दुनिया में इसलिए विख्यात है, क्योंकि हॉकी को लेकर ऐसी कई किवदंतियां हैं, जो उन पर हैं. हॉकी का जादूगर उन्हें ऐसे ही नहीं कहा गया है. ध्यानचंद (Dhyan Chand) के नाम में चंद शब्द चांद से जोड़ा गया है. हुआ यों कि हॉकी को लेकर उन पर एक जुनून सवार रहता था. वे चांदनी रात में भी हॉकी की प्रैक्टिस किया करते थे. यही चांद शब्द धीरे-धीरे चंद के रूप में सामने आया.
भारत रत्न देने की सिफारिश- Dhyan Chand Award
मेजर ध्यानचंद (Dhyan Chand) सिंह को वर्ष 1956 में भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. हाल में उन्हें भारत रत्न पुरस्कार’ प्रदान किए जाने की सिफारिश की गई है. ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी खिलाड़ी का नाम भारत रत्न के लिए भेजा गया हो. इससे पहले इस मुद्दे पर काफी बहस और चर्चा भी हुई थी.
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