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तीखे तेवर वाली तेज तर्रार शख्सियत ममता बनर्जी

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अपने तीखे तेवर से भारतीय रजनीति में हलचल मचाने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बनर्जी सीधा-सादा जीवन व्यतीत करने में ही विश्वास रखती हैं. सूती साड़ी और बस्ता ममता बनर्जी की पहचान बन गए हैं. वह एक ऐसी शख्सियत हैं जो खुद के बनाए हुए उसूलों पर चलती हैं.

ममता बनर्जी सरकार से अपनी शर्तें मनवाने के मामले में अन्य क्षेत्रीय नेताओं से काफी आगे हैं. उनकी धमकी के आगे केंद्र सरकार घुटने टेकने पर मजबूर हो जाती है. पिछले साल जब केंद्र की यूपीए सरकार एफडीआई को लेकर धड़ाधड़ फैसले ले रही थी, तब उन्होंने सरकार को धमकी दी थी कि यदि सरकार अपने फैसले को वापस नहीं लेती तो वह अपना समर्थन वापस ले लेंगी. हालांकि सरकार ने उनकी बात को नहीं माना.


mamata banerjeeकार्टून विवाद ने की फजीहत

जाधवपुर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र ने ‘ममता बनर्जी’ के खिलाफ’ बने कार्टूनों को इंटरनेट पर फैलाया था, जिसको लेकर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने अंबिकेश पर हमला भी किया. मामले में प्रोफेसर अंबिकेश की गिरफ्तारी भी की गई. बाद में मीडिया और लोगों ने सरकार के इस फैसले को अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट करार दिया. अंबिकेश की गिरफ्तारी पर तृणमूल सरकार की काफी आलोचना की गई.


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छात्र को माओवादी बताया

मामला मई 2012 का है जब एक टीवी चैनल ने ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में सत्ता में आने के एक साल पूरा होने के मौके पर कोलकाता में एक कार्यक्रम आयोजित किया था जिसमें हर कोई मुख्यमंत्री से सीधे सवाल पूछ सकता था. इस कार्यक्रम में एक छात्रा ने कार्टून मामले पर जाधवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र की गिरफ्तारी और राज्य में एक बलात्कार पीड़िता पर मंत्रियों की टिप्पणी से जुड़े सवाल पूछे, जिससे मुख्यमंत्री भड़क गईं और उस छात्रा को मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी की छात्र शाखा स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया का सदस्य और माओवादी बता दिया जिसके बाद इस मामले में काफी विवाद खड़ा किया.


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ममता की दीदीगिरी

ममता बनर्जी अपने दादागिरी के लिए जानी जाती हैं. पिछले दिनों सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद पश्चिम बंगाल में एक कार्यक्रम में ममता ने कहा था कि “मैं किसी से डरी नहीं हुई हूं और जब तक जिंदा रहूंगी, शेरनी की तरह रहूंगी.” एक बार तो उन्होंने लोकसभा में अध्यक्ष के सामने कागज उछालकर फेंका था. इनकी शख्सियत कुछ ऐसी है कि लोकतंत्र में रहने के बावजूद आलोचना बर्दाश्त नहीं करतीं. ममता का यह व्यक्तित्व उनकी पार्टी के लिए प्रेरणा तो हो सकता है लेकिन लोकतंत्र के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है. कई तरह की रैलियों और सभाओं में पत्रकारों और कार्यकर्ताओं को उनके गुस्से का सामना करना पड़ता है. उन्हें जो अच्छा लगता है वह वही करती हैं. यदि राज्य में उनका कोई विरोध भी करता है तो उसे दबा दिया जाता है.


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