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Manmohan Singh: इनके कार्यकाल में प्रधानमंत्री पद की गरिमा सबसे ज्यादा गिरी !!

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम आते ही मन में एक ऐसे व्यक्ति की छवि बनती है जिसने तमाम तरह की आलोचनाओं को सहते हुए नौ साल तक शासन किया है. एक वह वक्त था जब 2004 में सोनिया गांधी की मंजूरी के बाद डॉ. मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) प्रधानमंत्री बने थे. उस समय लोगों को उम्मीद जगी थी कि प्रधानमंत्री कुछ अलग हटकर देश को एक नई उंचाई देंगे. एक आज का वक्त है जहां मनमोहन सिंह के नाम पर कुछ नाममात्र उपलब्धियों के साथ केवल नाकामियां ही नाकामियां हैं.


manmohan singhएक हताश और मजबूर प्रधानमंत्री !!

कभी देश के सबसे सफल वित्तमंत्री के रूप में प्रसिद्ध मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) को सोनिया गांधी ने सीधे मंत्री पद से उठाकर प्रधानमंत्री बना दिया और मनमोहन सिंह ने भी सोनिया गांधी के अहसान का बदला अपनी चुप्पी से चुका दिया. हर मौके पर देश इंतजार करता रहा कि प्रधानमंत्री कोई सख्त कदम लें कुछ सख्त बोलें लेकिन लगता है उनकी आवाज में सख्ती है ही नहीं. मुंबई पर लगातार हमले हुए, देश में आतंकवाद का राज बढ़ा, महिलाओं की इज्जत आबरू सरेआम नीलाम हुई, घोटाले हुए, भ्रष्टाचार हुए, अर्थव्यवस्था का बुरा हाल हो गया उसके बावजूद भी प्रधानमंत्री चुप रहे. प्रधानमंत्री की यही चुप्पी उनकी सबसे बड़ी नाकामी रही.


प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व की नई परंपरा शुरू हुई है


नाममात्र के प्रधान मंत्री

हमारे देश में राष्ट्रपति के पद को नाममात्र का पद माना गया है लेकिन मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के कार्यकाल में प्रधानमंत्री का पद ही नाममात्र का पद बना हुआ है. ऐसा इसलिए क्योंकि मनमोहन सिंह का अपने मंत्रियों पर नियंत्रण नहीं है. हर कोई अपनी मनमानी कर रहा है. आज भ्रष्टाचार और मंहगाई अपने चरम पर है लेकिन किसी मजबूरी की वजह से प्रधानमंत्री कोई कदम नहीं उठा पा रहे हैं. ऐसा लग रहा हैं जैसे सत्ता की कमान मनमोहन सिंह के हाथ में नहीं बल्कि किसी और के हाथ में है.


घोटालों से लदे प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री के नाकामियों में कई तरह के घोटाले हैं. आज वह पूरी तरह घोटालों के भार से लदे हुए हैं. 2जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स, एंट्रिक्स-देवास, केजी बेसिन, कोयला खदान से लेकर एयर इंडिया और रेल घूसखोरी जैसे तमाम ऐसे घोटाले हैं जो बताते हैं कि मनमोहन सिंह कितने कमजोर हैं.


वाकई सदाबहार थे देव साहब


सहयोगी पार्टियों का छिटकना

जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के नेतृत्व में यूपीए का दूसरा कार्यकाल शुरू हुआ था उस समय कई क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस से जुड़ना चाहती थी लेकिन आज हर कोई यह चाहता है कि कैसे इस कांग्रेस पार्टी से छुटकारा मिले ताकि इसकी नाकामियों का असर उनकी पार्टी पर न पड़े. सहयोगी पार्टी के रूप में तृणमूल कांग्रेस और एम करुणानिधि की डीएमके रहीं जिन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया.


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उपलब्धि

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) ने भारतीय कृषि और कृषकों की दशा सुधारने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाया ताकि किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो सके. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून की शुरुआत की. जिसके अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण बेरोजगार को 100 दिन का रोजगार प्रदान करने की योजना बनाई गई. 02 मार्च, 2006 को भारत ने परमाणु शक्ति के संबंध में तात्कालिक अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए जो समाजवादी पार्टी की मदद से संसद में पारित हुआ. हाल ही में संसद में पास किया गया खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण बिल भी उनकी उपलब्धियों में शामिल हैं.


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