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एक इंसान के नाम के आगे “टाइगर” शब्द जोड़ने के पीछे लोगों को एक ठोस वजह की जरूरत होती है. लेकिन कुछ अपना कद इतना अधिक ऊंचा रखते हैं जहां उन्हें किसी संबोधन से बांध पाना मुश्किल होता है. शाही परिवार में जन्मे और जीवन भर शाही अंदाज में जीने वाले टाइगर मंसूर अली खान एक ऐसी शख्सियत रहे हैं जिन्होंने ना सिर्फ क्रिकेट के मैदान पर बल्कि अपनी निजी जिंदगी में भी हमेशा रॉयल और टाइगर जैसा रवैया अपनाया. मैदान पर शेर की भांति विपक्षी पर दहाड़ मारना हो या एक आंख की रोशनी जाने के बाद भी बल्ला थाम मैदान पर उतरना, मंसूर अली ने वह सब किया जो एक शेरदिल इंसान की पहचान होती है.
भारत के पूर्व क्रिकेट कप्तान मंसूर अली खान पटौदी के फेफड़ों में संक्रमण के कारण सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां 22 सितंबर, 2011 को उनका निधन हो गया. भोपाल में 1941 में जन्में पटौदी 29 अगस्त से अस्पताल में भर्ती थे. जांच के बाद पता चला था कि वह फेफड़े की बीमारी से पीड़ित थे जिसमें दोनों फेफड़ों में आक्सीजन सामान्य मात्रा से कम हो जाती है.
मंसूर अली खान की शैली
जिस समय मंसूर अली खान ने क्रिकेट खेलना शुरू किया था उस समय अधिकतर बल्लेबाज ताबड़तोड़ खेलने से पीछे हटते थे लेकिन इन सब के विपरीत मंसूर अली खान ने हमेशा आक्रामक रवैया ही अपनाया. उनका मानना था कि अगर आप गेंदबाज पर हमला नहीं करेंगे तो वह आप पर कर देगा. अपनी कलात्मक बल्लेबाजी से अधिक कप्तानी के कारण क्रिकेट जगत में अमिट छाप छोड़ने वाले मंसूर अली खां पटौदी ने भारतीय क्रिकेट में नेतृत्व कौशल की नई मिसाल कर नए आयाम जोड़े थे. वह पटौदी ही थे जिन्होंने भारतीय खिलाड़ियों में यह आत्मविश्वास जगाया था कि वे भी जीत सकते हैं.
पटौदी वास्तव में टाइगर का दिल रखते थे और भारत का युवा कप्तान प्रतिकूल परिस्थितियों के लिए बना था. जब दुर्घटना में उनकी एक आंख की रोशनी चली गई तो सभी ने मान लिया था कि उनका क्रिकेट कॅरियर समाप्त हो गया है लेकिन इसके छह महीने बाद वह फिर से क्रिकेट मैदान पर थे.
मंसूर अली खान आक्रमक शैली की बल्लेबाजी के साथ अपने लुक के लिए भी जाने जाते थे. मैदान हो या मैदान के बाहर मंसूर अली हमेशा शाही अंदाज में रहते थे. पोलो, हॉकी जैसे खेलों में भी उन्हें खास रूचि थी. हाल के सालों में वह लगातार घोड़ों की रेस और पोलो जैसे खेलों के आयोजन का हिस्सा रहे.
मंसूर अली खान का बचपन
पटौदी का जन्म भले ही पांच जनवरी, 1941 को भोपाल के नवाब परिवार में हुआ था लेकिन उन्होंने हमेशा विषम परिस्थितियों का सामना किया. उनके पिता पूर्व कप्तान और नवाब इफ्तियार अली खान पटौदी थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के वेल्हम बॉयज स्कूल (Welham Boys’ School) में हुई. हालांकि उच्च शिक्षा प्राप्त करने वह इंग्लैण्ड के विनचेस्टर कॉलेज और ऑक्सफोर्ड भी गए.
जब वह 11 साल के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई और उन्हें नवाब बना दिया गया हालांकि आजाद भारत में रजवाड़ों का स्थान नहीं था इसलिए मंसूर अली खान को पटौदी का आखिरी नवाब माना जाता है.
मंसूर अली खान का कॅरियर
‘टाइगर’ पटौदी की क्रिकेट की कहानी देहरादून के वेल्हम स्कूल से शुरू हुई थी लेकिन अभी उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरू किया था कि उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद जूनियर पटौदी को सभी भूल गए. इसके चार साल बाद ही अखबारों में उनका नाम छपा जब विनचेस्टर की तरफ से खेलते हुए उन्होंने अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया. अपने पिता के निधन के कुछ दिन ही बाद पटौदी इंग्लैंड आ गए थे.
विनचेस्टर के खिलाफ उनका कॅरियर 1959 में चरम पर था जबकि वह कप्तान थे. उन्होंने तब स्कूल क्रिकेट में डगलस जार्डिन का रिकार्ड तोड़ा था. पटौदी ने इसके बाद दिल्ली की तरफ से दो रणजी मैच खेले और दिसंबर 1961 में इंग्लैंड के खिलाफ फिरोजशाह कोटला मैदान पर पहला टेस्ट मैच खेलने का मौका मिला. यह मैच बारिश से प्रभावित रहा था.
भारत के सबसे युवा कप्तान
उन्हें 1961 में इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे टेस्ट मैच में खेलने के लिए राष्ट्रीय टीम में भी शामिल कर लिया गया. इस मैच में तो वह अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाए लेकिन कोलकाता में अगले मैच में उन्होंने 64 रन बनाए. उनके करारे शाट से दर्शक तब झूमने लगे थे. भारत ने आखिर में यह मैच 187 रन से जीता था. चेन्नई में फिर से उन्होंने 103 रन की पारी खेलकर खुद को मैच विजेता साबित किया था. इस पारी में उन्होंने 14 चौके और दो छक्के लगाए थे. वेस्टइंडीज दौरे में वह मांसपेशियों में खिंचाव की समस्या से जूझते रहे लेकिन तीसरे और चौथे टेस्ट मैच में उन्होंने 48 और 47 रन की दो जुझारू पारियां खेली थी. इसके बाद 1964 में इंग्लैंड टीम के भारत दौरे के शुरू में वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए लेकिन दिल्ली में उन्होंने नाबाद 203 रन की पारी खेलकर इसकी भरपाई कर दी जो उनका उच्चतम स्कोर भी है.
पटौदी ही हैं सबसे सफल कप्तान
जब भी बात भारत के सबसे सफल कप्तानों की आती है नाम सौरभ गांगुली, अजहरुद्दीन और धोनी का आता है. पर असल मायनों में मंसूर अली खान पटौदी भारत के पहले सफल कप्तान थे. उनकी कप्तानी में ही भारत ने विदेश में पहली जीत दर्ज की. भारत ने उनकी अगुवाई में नौ टेस्ट मैच जीते जबकि 19 में उसे हार मिली. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि पटौदी से पहले भारतीय टीम ने जो 79 मैच खेले थे उनमें से उसे केवल आठ में जीत मिली थी और 31 में हार. यही नहीं इससे पहले भारत विदेशों में 33 में से कोई भी टेस्ट मैच नहीं जीत पाया था. यह भी संयोग है कि जब पटौदी को कप्तानी सौंपी गई तब टीम वेस्टइंडीज दौरे पर गई. नियमित कप्तान नारी कांट्रैक्टर चोटिल हो गए तो 21 वर्ष के पटौदी को कप्तानी सौंपी गई. वह तब सबसे कम उम्र के कप्तान थे. यह रिकार्ड 2004 तक उनके नाम पर रहा. पटौदी 21 साल 77 दिन में कप्तान बने थे. जिंबाब्वे के तातैंडा तायबू ने 2004 में यह रिकार्ड अपने नाम किया था.
मंसूर अली खान की उपलब्धियां
भारत के लिए 46 टेस्ट खेल चुके पटौदी सबसे सफल कप्तानों में से रहे हैं. पटौदी ने 34.91 की औसत से 2793 रन बनाए हैं. पटौदी ने अपने कॅरियर में छह शतक और 16 अर्धशतक जमाए थे. पटौदी को 1968 में विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर, 1964 में अर्जुन पुरस्कार और 1967 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद वह 1993 से 1996 तक आईसीसी मैच रैफरी भी रहे थे जिसमें उन्होंने दो टेस्ट और 10 वनडे में यह भूमिका निभाई थी. वह 2005 में तब एक विवाद में भी फंस गए थे जब उन्हें लुप्त प्रजाति काले हिरण के अवैध शिकार के लिए गिरफ्तार किया गया था. वर्ष 2008 में पटौदी इंडियन प्रीमियर लीग की संचालन परिषद में भी नियुक्त किए गए थे और दो साल तक इस पद पर बने रहने के बाद उन्होंने बीसीसीआई के इस पद की पेशकश को ठुकरा दिया था. उन्होंने इस साल के शुरू में बकाया राशि का भुगतान नहीं किए जाने के लिए बीसीसीआई पर मुकदमा भी दायर किया था.
नवाब पटौदी और ब्यूटी क्वीन शर्मिला टैगोर
टाइगर के नाम से मशहूर पटौदी के परिवार में पत्नी बालिवुड अभिनेत्री शर्मिला टैगोर और तीन बच्चे हैं. यह उनके स्टाइलिश लुक का ही कमाल था कि उस समय की टॉप हिरोइन शर्मिला टैगोर भी उन पर क्लिन बोल्ड हो गईं. ऐसा माना जाता है कि मंसूर अली खान अब तक के सबसे स्टाइलिश क्रिकेट प्लेयर हैं. उनकी सुंदरता पर कभी हसीनाएं मरती थीं. हमेशा शाही अंदाज में रहने वाले मंसूर खान का दूसरों से मिलने का तरीका भी बहुत शाही था और यही वजह है कि लोग उन्हें बेहद मिलनसार मानते हैं. उनका बेटा बॉलिवुड स्टार सैफ अली खान और अभिनेत्री सोहा अली खान हैं. उनकी एक बेटी सबा अली खान ‘ज्वैलरी डिजाइनर’ है.
मंसूर अली खान का जाना भारतीय क्रिकेट के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है. वह ही पहले ऐसे कप्तान थे जिन्होंने टीम में जीत का जज्बा पैदा किया. असल मायनों में वह एक नवाब की तरह जिए और अपने आखिरी समय तक उन्होंने अपना अंदाज एक समान बनाए रखा.
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