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मौलाना अबुल कलाम आज़ाद पुण्यतिथि पर विशेष

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Maulana Abul Kalam Azad

भारत को स्वतंत्रता बंटवारे का मोल चुका कर लेनी पड़ी. हिंदू-मुस्लिम में आजादी के समय जमकर घमासान हुआ. लेकिन हिन्दुस्तान की आजादी में मुस्लिमों का भी विशेष योगदान रहा है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में आपको ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जहां मुस्लिमों ने भी अपना बलिदान देकर इस देश को स्वतंत्र कराने में सहायता की है. एक ऐसे ही महापुरुष मौलाना अबुल कलाम आजाद हैं. देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद को आज भी हम तहे दिल से याद करते हैं. भारत के सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार भारत-रत्न से अंलकृत मौलाना अबुल कलाम आजाद की आज पुण्यतिथि है.


मौलाना अबुल कलाम आजाद का जीवन

मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 को हुआ था. अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन 11 नवंबर को  प्रतिवर्ष शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है. मौलाना आज़ाद अफग़ान उलेमाओं के ख़ानदान से ताल्लुक रखते थे जो बाबर के समय हेरात से भारत आए थे .  उनकी मां अरबी मूल की थीं और उनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक फारसी थे.


मौलाना अबुल कलाम आजाद की शिक्षा

स्वाधीनता सेनानी, राजनेता और शिक्षाविद् मौलाना आजाद की पढ़ाई भी जमाने की रवायत के मुताबिक मस्जिद और मदरसे से शुरू हुई थी, लेकिन अंग्रेजी साहित्य, विश्व इतिहास तथा राजनीति शास्त्र जैसे कई आधुनिक विषयों में उच्च शिक्षा ग्रहण कर आजाद बाद में सिर्फ मौलाना नहीं रह गए थे. शिक्षा की तरफ उनका रवैया गैर-परंपरावादी था और वह आधुनिक शिक्षा-प्रणाली को ही सर्वोत्तम मानते थे.


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मौलाना अबुल कलाम आजाद की राय

“आजादी इंसान का पैदायशी हक है. कोई व्यक्ति खुदा के बंदे को गुलाम नहीं बना सकता. गुलामी को चाहे जितने सियासी जुल्मों के जरिए आजादी ठहराया जाए लेकिन गुलामी तो आखिर गुलामी है. यह खुदा की मंशा के खिलाफ है. भारत आजाद होगा और इसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती.” अबुल कलाम आजाद ने अपने इन्ही विचारों से अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला दी थीं. आजाद के विचार और उनकी राष्ट्रभक्ति कभी भुलाई नहीं जा सकती.


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मौलाना अबुल कलाम आजाद का संघर्ष

उन्होंने राष्ट्रीय एकता की चिंगारी को धधकता शोला बनाकर अंग्रेजों के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया. उनका जीवन और विचार आज भी प्रासंगिक है.


भारत की आजादी के बाद वे एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिज्ञ रहे. वे महात्मा गांधी के सिद्धांतों का समर्थन करते थे. उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया, तथा वे अलग मुस्लिम राष्ट्र (पाकिस्तान) के सिद्धांत का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताओ में से थे. खिलाफत आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही. 1923 में वे भारतीय नेशनल कांग्रेस के सबसे कम उम्र के प्रेसीडेंट बने. वे 1940 और 1945 के बीच कांग्रेस के प्रेसीडेंट रहे.


आजादी के समय उन्होंने बंटवारे का समर्थन नहीं किया और इसके खिलाफ खड़े हुए. हालांकि कई लोग आज भी मानते हैं कि जिस तरह गांधीजी ने बंटवारे के समय हालात को समझने में देर लगाई उसी तरह मौलान अबुल कलाम आजाद ने भी उस समय एकता के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए.


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आजादी के बाद वह भारत के सांसद चुने गए और भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने. शिक्षा मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने बहुत से अवस्मरणीय कार्य किए जिनमें देश की पहली आईआईटी (भारतीय प्राद्योगिकी संस्थान) खोलने का काम भी है.


हालांकि 22 फरवरी, 1958 को उनका देहांत हो गया. भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद हिंदू-मुस्लिम एकता के परिचायक बने रहेंगे. उन्होंने देश में एकता बढ़ाने के लिए जो भी काम किए उन्हें यह देश हमेशा याद रखेगा.


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