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उम्र के हर दौर में विविध प्रकार के रोल को निभा पाना ही असली अभिनेता की पहचान होती है. भारतीय सिनेमा जगत में ऐसे कई अभिनेता हैं जो अभिनय की हर कला में निपुण हैं. नसीरुद्दीन शाह, नाना पाटेकर, अनुपम खेर जैसे अभिनेता तो कला और अभिनय की दुनियां में अपनी अलग जगह बना इसके कल्याण के लिए अग्रसर रहते हैं. ऐसे ही एक अदाकार नसीरुद्दीन शाह भी हैं जिन्हें अगर अभिनय की चलती फिरती पाठशाला कहा जाए तो गलत नहीं होगा. “नसीरूद्दीन शाह” इस नाम का जिक्र होते ही एक ऐसे साधारण पर आकर्षक व्यक्तित्व की छवि सामने आती है जिसकी अभिनय-प्रतिभा अतुलनीय है और हिन्दी सिनेमा में जिसके योगदान को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है.
चाहे कॉमर्शियल सिनेमा हो या आर्ट सिनेमा या फिर थियेटर हर जगह नसीरुद्दीन शाह ने अपनी छाप छोड़ी है. पद्म भूषण और पद्म श्री जैसे पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके नसीरूद्दीन शाह हिन्दी सिनेमा जगत के अमूल्य रत्न हैं.
नसीरूद्दीन शाह का जीवन
नसीरुद्दीन शाह का जन्म 20 जुलाई, 1950 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में हुआ था. नसीरूद्दीन शाह ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लिया. अभिनय के इस प्रतिष्ठित संस्थान से अभिनय का विधिवत प्रशिक्षण लेने के बाद वे रंगमंच और हिन्दी फिल्मों में सक्रिय हो गए. नसीरूद्दीन शाह की फिल्मों की सूची में समानांतर और मुख्य धारा की फिल्मों का अनूठा सम्मिलन देखने को मिलता है.
नसीरूद्दीन शाह का कॅरियर
नसीरूद्दीन शाहने अपने कॅरियर की शुरुआत फिल्म ‘निशांत’ से की थी जिसमें उनके साथ स्मिता पाटिल और शबाना आजमी जैसी अभिनेत्रियां थीं. ‘निशांत’ एक आर्ट फिल्म थी. यह फिल्म कमाई के हिसाब से तो पीछे रही पर फिल्म में नसीरुद्दीन शाह के अभिनय की सबने सराहना की. इस के बाद नसीरुद्दीन शाह ने ‘आक्रोश’, ‘स्पर्श’, ‘मिर्च मसाला’, ‘अलबर्ट पिंटों को गुस्सा क्यों आता है’, ‘मंडी’, ‘मोहन जोशी हाज़िर हो’, ‘अर्द्ध सत्य’, ‘कथा’ आदि कई आर्ट फिल्में कीं.
आर्ट फिल्मों के साथ वह कॉमर्शियल फिल्मों में भी सक्रिय रहे. ‘मासूम’, ‘कर्मा’, ‘इजाज़त’, ‘जलवा’, ‘हीरो हीरालाल’, ‘गुलामी’, ‘त्रिदेव’, ‘विश्वात्मा’, ‘मोहरा’, ‘सरफ़रोश’ जैसी कॉमर्शियल फिल्में कर उन्होंने साबित कर दिया कि वह सिर्फ आर्ट ही नहीं कॉमर्शियल फिल्में भी कर सकते हैं. नसीरूद्दीन शाह के फिल्मी सफर में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने मसाला हिन्दी फिल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई हिचक नहीं दिखायी. वक्त के साथ नसीरूद्दीन शाह ने फिल्मों के चयन में पुन: सतर्कता बरतनी शुरू कर दी. बाद में वे कम मगर, अच्छी फिल्मों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे.
फिल्म ‘हे राम’ में उन्होंने गांधी जी के किरदार को पर्दे पर उतार कर अपने अभिनय का लोहा मनवाया. नसीरूद्दीन शाह की अभिनय-प्रतिभा भारत तक ही सीमित नहीं रही. अंतरराष्ट्रीय फिल्म परिदृश्य में भी नसीरूद्दीन सक्रिय रहे हैं. हॉलीवुड फिल्म ‘द लीग ऑफ एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी जेंटलमैन’ और पाकिस्तानी फिल्म ‘खुदा’ जैसी अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में भी नसीरूद्दीन शाह ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करायी.
नसीरूद्दीन शाह ने एक फिल्म का निर्देशन भी किया है. हाल ही में वह “इश्किया”, “राजनीति” और “जिंदगी ना मिलेगी दुबारा” जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का जादू बिखेर चुके हैं.
नसीरूद्दीन शाह की उपलब्धियां
नसीरूद्दीन शाह को 1987 में पद्म श्री और 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया है.
1979 में फिल्म ‘स्पर्श’ (Sparsh) और 1984 में फिल्म ‘पार’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ट अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
2006 में फिल्म ‘इकबाल’ के लिए नसीरुद्दीन शाह को सर्वश्रेष्ट अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
1981 में फिल्म ‘आक्रोश’, 1982 में फिल्म ‘चक्र’ और 1984 में फिल्म ‘मासूम’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ट अभिनेता के फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया.
वर्ष 2000 में उन्हें “संगीत नाटक अकादमी अवार्ड” से सम्मानित किया गया.
अपनी अलग शैली और अभिनय कला की वजह से आज भी बॉलिवुड में उन्हें सम्मान दिया जाता है. आने वाले दिनों में उनकी कई फिल्में आने वाली हैं जिनसे उनके प्रशंसकों को काफी उम्मीदें हैं.
नसीरुद्दीन शाह की ज्योतिषीय विवरणिका देखने के लिए यहां क्लिक करें.
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