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जरा सोचिए आपकी नई सफेद शर्ट जिसे आपने बहुत अरमानों के साथ खरीदी थी अगर वही शर्ट आपको पहनने को नसीब ना हो तो आपको कैसे लगेगा? हो सकता है आज से दस साल बाद सफेद कपड़े ही मिलना बंद हो जाए? यह सब हो सच हो सकता है अगर इसी तेजी के साथ प्रदूषण बढ़ता रहा तो.
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NATIONAL POLLUTION CONTROL DAY
आज देश में प्रदूषण इस कद्र बढ़ चुका है कि सभी को डर है कि कहीं एक दिन यह उस स्तर तक ना आ जाए जहां सुबह घर से सफेद शर्ट पहन कर निकलने के बाद वह शाम तक काली हो जाए. देश में प्रदूषण की समस्या देश में विकराल रूप धारण करती जा रही है. अगर समय रहते इस ज्वलंत समस्या के समाधान के लिए कारगर प्रयास नहीं किए गए तो आने वाले समय में इस धरती पर सांस लेना भी मुश्किल हो जाएगा.
जिस तरह से देश में गाड़ियों की मांग और खरीद बढ़ रही है, उससे वायुमंडल में प्रदूषण का खतरा और बढ़ेगा. इस वर्ष हम जो देश की राजधानी और अन्य जगहों पर धुंध की चादर देख रहे है, उसमें अगले वर्ष तक और वृद्धि देखने को मिलेगी. वैज्ञानिकों का कहना है कि सरकार को चाहिए की जल्द से जल्द इस दिशा में कार्य करना चाहिए वरना हो सकता है दस वर्ष पूर्व की स्थिति आ जाए जब सफेद शर्ट शाम तक काली हो जाती थी.
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Effects of Pollution: प्रदूषण के भयंकर प्रणाम
सिर्फ वायु प्रदूषण ही नहीं जल, ध्वनि और अन्य तरह के प्रदूषण भी देश में दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं. पटाखो, गाड़ियों और कारखानों जैसे मानवीय कारणों से तो प्रदूषण बढ़ता ही है लेकिन देश में ऐसे कई धार्मिक कारण भी है जो प्रदूषण को बढ़ावा देने में सहायक हैं.
Causes of Pollution: क्या धर्म देता है प्रदूषण को बढ़ावा
यह समझने के लिए कि धर्म किस तरह प्रदूषण फैलाता है यह जाननें के लिए आप कुछेक पर्वों और कार्यों को याद करें. हिन्दू धर्म का एक अहम कर्म-काण्ड पिंडदान माना जाता है. देश-विदेश से लोग अपने पितरों को पिण्डदान करने के लिए नदियों के पास जाते हैं. नदी किनारे पूजा करने के बाद पूजा की साम्रगी को प्लास्टिक की थैलियों के साथ ही पानी में विसर्जित कर दिया जाता है. साथ ही दुर्गापूजा और गणेश विसर्जन के समय तो बड़ी-बड़ी मूर्तियों को ही जल समाधी दे दी जाती हैं जिनपर लगा कई लीटर पेंट भी पानी में मिट्टी के साथ घुल जाता है और जल प्रदूषण को बढ़ाता है.
मनुष्य भी कम नहीं
जानकार मानते हैं कि प्रदूषण को बढ़ाने का अगर कोई दोषी है तो वह सिर्फ मानव ही है. कारखानों, मीलों और औद्यौगिकीकरण की राह में मानव प्रकृति को पूरी तरह भूल चुका है.
National Pollution Control Day 2012
हर साल देश में 02 दिसंबर को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस के रूप में मनाया जाता है लेकिन सिर्फ एक दिन प्रदूषण ना फैलाने की कसम खाने के बाद लोग लगता है पूरे साल इस संदेश को भूल जाते हैं.
राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मनाने का उद्देश्य जनता में प्रदूषण नियंत्रण के लिए जागरुकता फैलाना है. यूं तो प्रदूषण क्या होता है और इसके कितने प्रकार होते हैं इसके बारे में सब जानते हैं लेकिन आइए आज के दिन एक बार फिर जानें कि किस तरह हम पर्यावरण को हानि पहुंचा रहे हैं.
Types of Pollution: पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार –
भूमि प्रदूषण – पर्यावरण संतुलन के लिए भूमि प्रदूषण को रोकना बहुत जरूरी है. वनों का कटाव, खदानों, रसायनिक खादों का ज्यादा प्रयोग और कीटनाशकों के इस्तेमाल के कारण भूमि प्रदूषण फैलता है. इसके कारण हम जो खाद्य-पदार्थ खाते हैं वह शुद्ध नहीं होता है. इसके कारण पेट से जुडी हुई कई बीमारियां शुरू हो जाती हैं.
जल प्रदूषण – पूरी पृथ्वी का तीन-चौथाई हिस्से में पानी है, लेकिन केवल 0.3 प्रतिशत हिस्सा ही पीने के योग्य है. फैक्ट्रियों और घरों से निकलने वाले कूडे का पानी सीधे नदियों में छोडा जाता है जिसके कारण कई नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं. जल प्रदूषण के कारण कई बीमारियां पैदा होती हैं.
वायु प्रदूषण – आदमी की जिंदगी के लिए ऑक्सीजन बेहद आवश्यक है. पेडों की कटाई और बढ रहे वायु प्रदूषण के कारण हवा से ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है. घरेलू ईंधन, वाहनों से निकलते धुएं और वाहनों के बढते प्रयोग इसके लिए जिम्मेदार हैं.
वायु प्रदूषण के सबसे घातक परिणाम होते हैं. वायु में मौजूद सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन और निलंबित पदार्थ फेफड़ों को कमजोर कर देते हैं और कई तरह की सांस संबंधी बीमारियां उत्पन्न करते हैं. ओजोन आख, नाक और गले में जलन, सिरदर्द आदि का कारण बनती है. वह हृदय एवं मस्तिष्क की गड़बड़ियों को भी जन्म देती है.
ध्वनि प्रदूषण – ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या है. आए दिन मशीनों, लाउडस्पीकरों और गाडियों के हॉर्न ने ध्वनि प्रदूषण को बढाया है. पारिवारिक और धर्मिक कार्यक्रमों में लोग लाउडस्पीकर बहुत तेजी से बजाते हैं जिसके कारण कई लोगों की नींद उड जाती है. ध्वनि प्रदूषण के कारण कान से जुडी बीमारियां होने का खतरा होता है.
बढ़ती जनसंख्या, कटते पेड, बढ़ते उद्योग-धंधे, वाहनों के प्रयोग, जानकारी का अभाव, बढ़ती गरीबी ने पर्यावरण असंतुलन को बढ़ाया है. पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर हम इस पर्यावरण असंतुलन को कम कर सकते हैं. इसके लिए जरूरी है कि हम शुरुआत अपने घर से करें और समाज में भी यह संदेश फैलाएं.
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